प्रारंभिक परीक्षा
(समसामयिक घटनाक्रम)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास व प्रबंधन से संबंधित विषय)
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संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के अनुसार, सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती से संबंधित कानून, नियम एवं प्रक्रिया को समानता व गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकारों के व्यापक सिद्धांतों द्वारा शासित होनी चाहिए।
पृष्ठभूमि
- यह मामला राजस्थान उच्च न्यायालय के कर्मचारियों के लिए तेरह अनुवादक पदों की भर्ती प्रक्रिया से संबंधित था। उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा और उसके बाद व्यक्तिगत साक्षात्कार देना था।
- इस परीक्षा में 21 अभ्यर्थी शामिल हुए। उनमें से केवल 3 को ही उच्च न्यायालय (प्रशासनिक पक्ष) द्वारा सफल घोषित किया गया। बाद में पता चला कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि इन पदों के लिए केवल उन्हीं अभ्यर्थियों का चयन किया जाना चाहिए जिन्होंने कम-से-कम 75% अंक प्राप्त किए हों।
- अपीलकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक का मानदंड लागू करने का निर्णय ‘खेल समाप्त होने के बाद खेल के नियमों को बदलने’ के समान है, जोकि अस्वीकार्य है।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मामले में यह कानूनी प्रश्न था कि क्या किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति के मानदंडों को संबंधित प्राधिकारियों द्वारा चयन प्रक्रिया के बीच में या उसके शुरू होने के बाद बदला जा सकता है।
- दूसरे शब्दों में, सवाल यह था कि क्या 'खेल' (नौकरी चयन प्रक्रिया) के नियमों को बीच में बदला जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में के. मंजूश्री आदि बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2008) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय की सत्यता पर जोर दिया है, जिसमें कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया के नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता है।
- संविधान पीठ ने आगे कहा कि के. मंजूश्री निर्णय अच्छा कानून है और इसे केवल इसलिए गलत नहीं माना जा सकता है क्योंकि इसमें हरियाणा राज्य बनाम सुभाष चंद्र मारवाह एवं अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1973 के फैसले पर विचार नहीं किया गया।
- मरवाहा मामला : इस मामले में न्यायालय ने माना था कि सार्वजनिक सेवा परीक्षा में निर्धारित न्यूनतम अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को चयनित होने का पूर्ण अधिकार नहीं है।
- न्यायालय ने मरवाहा निर्णय में कहा था कि सरकार उच्च मानकों को बनाए रखने के हित में उपयुक्त उम्मीदवारों का चयन करने के लिए पात्रता के लिए ‘न्यूनतम अंकों से अधिक अंक’ निर्धारित कर सकती है।
दो श्रेणियों पर निर्णय
- भर्ती प्रक्रिया के 'नियम' मोटे तौर पर दो श्रेणियों में आते हैं :
- एक, जो रोजगार चाहने वाले उम्मीदवारों की पात्रता मानदंड या आवश्यक योग्यताएं निर्धारित करता है।
- दूसरा, जो योग्य उम्मीदवारों में से चयन करने की विधि और तरीके को निर्धारित करता है।
हालिया फैसले में संविधान पीठ के प्रमुख निष्कर्ष
- भर्ती प्रक्रिया आवेदन आमंत्रित करने से शुरू होती है और रिक्तियों को भरने के साथ समाप्त होती है।
- चयन सूची में शामिल होने के लिए भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित पात्रता मानदंड को भर्ती प्रक्रिया के बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता है जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें, या विज्ञापन (जो मौजूदा नियमों के विपरीत न हो) इसकी अनुमति न दे।
- यदि मानदंडों में बदलाव करना भी पड़े तो यह बदलाव संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में भेदभाव न करना) के मानक के अनुरूप होने चाहिए; वैधानिक शक्ति वाले मौजूदा नियम मनमाने नहीं होने चाहिए।
- चयनित सूची में स्थान मिलने से उम्मीदवार को रोजगार पाने का पूर्ण अधिकार नहीं मिल जाता है।
- चयनित उम्मीदवार को नियुक्ति देने से इनकार करने को उचित ठहराना राज्य का दायित्व होगा।
- के. मंजूश्री निर्णय तार्किक एवं न्यायसम्मत कानून है और केवल इसलिए गलत नहीं है क्योंकि यह मारवाह निर्णय को ध्यान में नहीं रखता है।
- भर्ती प्रक्रिया के नियमों के बारे में न्यायालय ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया और पात्रता दोनों के संदर्भ में विज्ञापन में प्रकाशित नियम भर्ती निकाय पर बाध्यकारी है।
- भर्ती प्रक्रिया या पात्रता मानदंड में ऐसे बदलाव नहीं किये जाने चाहिए जिससे उम्मीदवार/परीक्षक/साक्षात्कारकर्ता के लिए आश्चर्य (Surprise) की स्थिति उत्पन्न हो।
- न्यायालय ने कहा कि खेल के नियमों को खेल के बीच में या खेल के बाद नहीं बदला जाना चाहिए।