(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: सरकारी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, हल्के मोटर वाहन (Light Motor Vehicle : LMV) श्रेणी के लाइसेंस धारक मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत अतिरिक्त प्राधिकरण (Additional Authorisation) की आवश्यकता के बिना ही 7,500 किग्रा. से कम वजन वाले परिवहन वाहन चला सकता है। यह निर्णय मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में दिया गया है।
हालिया निर्णय के बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया है कि केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 तथा इसके अंतर्गत वर्ष 1989 के केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में हल्के मोटर वाहनों और परिवहन वाहनों का अलग-अलग उल्लेख किया गया है।
- ऐसे में 7,500 किग्रा. से कम वजन वाले परिवहन वाहनों के लिए चालक के पास अलग ड्राइविंग लाइसेंस या अनुमोदन की आवश्यकता का तर्क उचित नहीं है।
- न्यायालय के कानूनी निहितार्थ के अनुसार ‘परिवहन वाहन’ केवल उन वाहनों को कवर करेंगे जिनका सकल वाहन भार 7,500 किग्रा. से अधिक है।
- इस तरह की व्याख्या इस अधिनियम के संशोधनों के व्यापक उद्देश्य के साथ संरेखित होती है और यह सुनिश्चित करती है कि लाइसेंसिंग व्यवस्था वाहन मालिकों एवं चालकों के लिए कुशल व व्यावहारिक बनी रहे।
- न्यायालय ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 2(28) में ‘मोटर वाहन’ की परिभाषा का उल्लेख किया जो दो प्रकार के वाहनों के बीच अंतर न बनाए रखने का संकेत करता है।
- इस अधिनियम की धारा 2(21) के अनुसार यह निष्कर्ष निकालना तर्कसंगत होगा कि हल्के मोटर वाहन का अर्थ ऐसे परिवहन वाहन, ओमनीबस, रोड रोलर, ट्रैक्टर या मोटर कार होगा जिनका वजन 7,500 किलोग्राम से अधिक न हो।
मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड वाद, 2017
- वर्ष 2017 में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि हल्के मोटर वाहन वर्ग के लिए लाइसेंस धारक को परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है यदि वह 7,500 किग्रा. से कम वजन वाले हल्के मोटर वाहन वर्ग के अंतर्गत आता है।
- इस निर्णय को चुनौती देते हुए बीमा कंपनियों ने सड़क सुरक्षा के बारे में चिंता जताई और तर्क दिया कि यदि मुकुंद देवांगन मामले में निर्धारित कानून में हस्तक्षेप नहीं किया गया तो अयोग्य चालक परिवहन वाहन चलाना शुरू कर देंगे, जिससे हजारों लोगों की जान जोखिम में पड़ जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय का तर्क
- न्यायालय के अनुसार कोई ऐसा अनुभवजन्य डाटा प्रस्तुत नहीं किया गया है जो यह दर्शाता हो कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि LMV लाइसेंसधारक चालकों द्वारा LMV श्रेणी के परिवहन वाहन चलाने का प्रत्यक्ष परिणाम है जिसका सकल वजन 7,500 किग्रा. से कम हो।
- न्यायालय के अनुसार, सड़क सुरक्षा वस्तुतः मोटर वाहन अधिनियम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है किंतु यह बिना किसी अनुभवजन्य डाटा के असत्यापित मान्यताओं पर आधारित नहीं होना चाहिए।
न्यायालय के अनुसार सड़क दुर्घटना के लिए उत्तरदायी कारक
- लापरवाह ड्राइविंग व तेज गति
- सड़क की खराब डिजाइन
- यातायात कानूनों का पालन न करना
- ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का उपयोग
- थकान
- सीट बेल्ट या हेलमेट नियमों का पालन न करना
लाइसेंसिंग व्यवस्था की अस्थिरता
- पीठ ने कहा कि सड़क सुरक्षा वैश्विक स्तर पर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। यह उल्लेखनीय है कि भारत में वर्ष 2023 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.7 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है।
- हालाँकि, ऐसी दुर्घटनाओं के विभिन्न कारण हैं और LMV लाइसेंस धारकों द्वारा हल्के परिवहन वाहन चलाने वाले ड्राइवरों को इसका कारण मानने की धारणा निराधार हैं।
- न्यायालय के अनुसार स्वायत्त या चालक रहित वाहन और ऐप-आधारित यात्री प्लेटफ़ॉर्म जैसे आधुनिक युग में लाइसेंसिंग व्यवस्था स्थिर नहीं रह सकती है।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय परिवहन वाहनों को चलाने वाले ड्राइवरों के लिए आजीविका के मुद्दों को भी प्रभावी ढंग से संबोधित करेगा, जो अपने LMV ड्राइविंग लाइसेंस के साथ कानूनी रूप से ‘परिवहन वाहन’ (7,500 किग्रा. से कम) चलाते हैं।