(प्रारंभिक परीक्षा,सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3: भारतीय विरासत एवं संस्कृति,विश्व का इतिहास और जैव-विविधता) |
संदर्भ
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) के एक हालिया प्रकाशन में दक्षिण एशिया के सबसे पुराने व्यापारिक मार्गों में से एक ‘रेशम मार्ग’ की वनस्पतियों और परिदृश्यों को 'ए सदर्न सिल्क रूट: सिक्किम एंड कलिम्पोंग वाइल्ड फ्लावर्स एंड लैंडस्केप्स' नामक पुस्तक में दस्तावेजीकरण किया गया है। इस पुस्तक के लेखक राजीब गोगोई हैं।
पुस्तक में वर्णित कुछ विषय
- विभिन्न प्रजातियाँ : इस पुस्तक में 1,137 फूलदार पौधों, अनेक तितलियों, कीटों, पक्षियों व स्तनधारियों का दस्तावेजीकरण किया गया है।
- इसके अलावा, रेशम मार्ग के ऐतिहासिक महत्व और इस क्षेत्र के वनस्पति विज्ञान व राजनीति के बीच संबंधों का भी विवरण दिया गया है।
- विंडमेयर पाम (Windamere Palm) : यह रेशम मार्ग के किनारे पाया जाने वाला प्रमुख फूलदार पौधा हैं। यह एक जंगली ताड़ की प्रजाति है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘ट्रैचीकार्पस लैटिसेक्टस’ है।
- यह प्रजाति विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है और कलिम्पोंग क्षेत्र में केवल कुछ ही वृक्ष बचे हैं।
- रोडोडेंड्रोन नीवम (Rhododendron Niveum) : यह सिक्किम का राज्य वृक्ष है, जो पूर्वी हिमालय की स्थानिक प्रजाति है और रेशम मार्ग के साथ क्योंगनोसला अल्पाइन अभयारण्य में पाया जाता है।
- अन्य प्रजातियाँ : रेशम मार्ग में पाई जाने वाली अन्य महत्वपूर्ण वनस्पतियों में शामिल हैं :
- इम्पेतिन्स सिक्कीमेन्सिस (Impatiens Sikkimensis) : यह एक संकटग्रस्त बाल्सम प्रजाति है।
- डाफ्ने लुडलोवी (Daphne Ludlowii) : इसका उपयोग बौद्ध पांडुलिपियों के लिए कागज बनाने के उद्देश्य से किया जाता था।
रेशम मार्ग के बारे में
- रेशम मार्ग (सिल्क रूट) को आमतौर पर इतिहास में पहला वैश्विक व्यापार मार्ग के रूप में माना जाता है।
- इस शब्द की उत्पत्ति चीन के लिए प्राचीन ग्रीक शब्द ‘सेरेस’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘रेशम की भूमि’।
- हालांकि, ‘रेशम मार्ग’ (सिल्क रोड) शब्द को व्यापार मार्गों का वर्णन करने के लिए जर्मन भूगोलवेत्ता एवं इतिहासकार फर्डिनेंड वॉन रिचथोफेन ने पहली बार सन् 1877 ईस्वी में गढ़ा था।
- यह चीन एवं सुदूर पूर्व (कोरिया व जापान) को मध्य एशिया और यूरोप (तुर्की व इटली) से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों का एक नेटवर्क था, जो सुदूर पूर्व तथा यूरोप के मध्य पूर्वी हिमालय में भारत के कलिम्पोंग व सिक्किम से होकर तिब्बत में ल्हासा तक जाता था।
- इसका निर्माणचीन के हान राजवंश (206 ईसा पूर्व से 220 ईस्वी तक) द्वारा 130 ईसा पूर्व में कराया गया था।
- ओटोमन साम्राज्य द्वारा चीन के साथ व्यापार का बहिष्कार किए जाने के साथ ही ये मार्ग सन् 1453 ई. में बंद कर दिया गया।
- आधिकारिक तौर पर यह पश्चिमी देशों के साथ व्यापार करने के लिए मार्ग था।
- साथ ही, इस मार्ग से आपस में जुड़े असंख्य अन्य मार्ग कला, धर्म, संस्कृतियों, विचारों और प्रौद्योगिकी के उपयोगी आदान-प्रदान के लिए एक पूल के रूप में काम करते थे।
- इस मार्ग ने चीन, भारत, फारस, यूरोप व अरब की सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।