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धारणीय अंतरिक्ष की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर आदि से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता)

संदर्भ

हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम ने सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन के सहयोग से लंदन में अंतरिक्ष धारणीयता (Space Sustainability) पर चौथे शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। 

अंतरिक्ष धारणीयता योजना

  • यू.के. ने अपनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष रणनीति के अनुरूप एक नई 'अंतरिक्ष धारणीयता योजना' (Plan for Space Sustainability) की घोषणा की है। इस योजना का उद्देश्य बीमा योग्यता, लाइसेंसिंग और वाणिज्यिक उपग्रहों के विनियमन के लिये एक वैश्विक वाणिज्यिक ढाँचे का निर्माण करना है।
  • साथ ही, यह उनके लिये लागत में कमी लाने का प्रयास करेगी जो सर्वोत्तम धारणीयता मानकों का अनुपालन करके इस उद्योग के लिये एक सुविकसित पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं।

धारणीय अंतरिक्ष के लिये यू.के. की योजना 

  • धारणीय अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये आर्टेमिस एकॉर्ड मॉडल के आधार पर यू.के. अंतरिक्ष धारणीयता के लिये नियमों (एस्ट्रो कार्टा) की मांग करता है। 
    • यू.के. की अंतरिक्ष धारणीयता योजना में चार प्राथमिक तत्वों का उल्लेख है : 
    • यू.के. की कक्षीय गतिविधि के नियामक ढांचे की समीक्षा 
    • अंतरिक्ष धारणीयता पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 
    • जी-7 और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों के साथ कार्य करना
    • गतिविधियों की सततता को मापने के लिये सुरक्षा और गुणवत्ता से संबंधित मैट्रिक्स विकसित करना एवं सक्रिय मलबा हटाने के लिये $6.1 मिलियन के अतिरिक्त वित्त पोषण को बढ़ावा देना। 

बाह्य अंतरिक्ष में धारणीयता का तात्पर्य 

  • पृथ्वी के कक्षीय वातावरण में कृत्रिम उपग्रहों व मिशनों की संख्या सीमित होना या उसकी व्यवस्था इस प्रकार होना, जिससे किसी प्रकार की अन्य समस्या न पैदा हो।
  • अंतरिक्ष में टक्कर रहित एवं बाधा रहित परिचालन की व्यवस्था सुनिश्चित करना। 
  • अंतरिक्ष मलबे (कचरा) की समस्या का समाधान करना। 
  • प्रत्येक स्तर पर उपग्रहों के पुनर्उपयोग और पुनर्चक्रण को सुनिश्चित करना।
  • इसके लिये अंतरिक्ष अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकीय विकास की आवश्यकता है। 
  • यू.के. की योजना सक्रिय मलबे को हटाने और कक्षा में ही उसकी मरम्मत करने की है।
  • बाह्य अंतरिक्ष को एक साझा प्राकृतिक संसाधन माना जाता है। बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (United Nation Committee on the Peaceful Uses of Outer Space : UNCOPUOS) ने वर्ष 2019 में बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक धारणीयता सुनिश्चित करने के लिये स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी दिशानिर्देशों को अपनाया।

धारणीयता में बाधक कारण एवं संबंधित चुनौतियाँ

  • विगत एक दशक में पृथ्वी के कक्षीय वातावरण में कृत्रिम उपग्रहों व मिशनों की संख्या तीन गुना से अधिक हो गई है। मिशन की लागत कम होने से इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। 
  • इससे अन्य मिशनों की जटिलता में वृद्धि होती है और उनके स्लॉट आवंटन में भी समस्या आती है। 
  • वृहद् तारामंडलों और जटिल उपग्रहों की संख्या में वृद्धि होना भी एक चुनौती है।
  • इससे टक्कर एवं रेडियो आवृत्तियों के व्यतिकरण का खतरा उत्पन्न हो जाता है। 
  • कक्षा में अत्यधिक भीड़ का होना अंतरिक्ष धारणीयता के संबंध में प्रमुख समस्याओं में से एक है। 
  • यह किसी मिशन के संचालन और सुरक्षा के लिये प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न करता है। 
  • साथ ही, यह कानूनी और बीमा-संबंधी मुद्दों का भी कारण बनता है। 
  • अंतरिक्ष मलबा (कचरा) भी एक प्रमुख मुद्दा है। किसी मिशन के पूरा होने के बाद 'इंड-ऑफ-लाइफ प्रोटोकॉल' के तहत अंतरिक्ष वस्तुओं को कम ऊंचाई पर या ग्रेवयार्ड ऑर्बिट (Graveyard Orbit) में ले जाने की आवश्यकता होती है। हालाँकि, इनमें से कोई भी विकल्प लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है। 
  • सौर एवं चुंबकीय तूफान भी संचार प्रणालियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस तरह के अंतरिक्ष खतरों को बाह्य अंतरिक्ष मिशनों के पार्थिव कार्बन पदचिह्न की पहचान करने के प्रयासों के साथ संबोधित करने की आवश्यकता है। 

अंतरिक्ष सततता पर भारत की स्थिति

  • हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre : In-SPACe) के मुख्यालय का औपचारिक उद्घाटन किया गया। इससे भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की बढ़ती हुई भूमिका की उम्मीद की जा सकती है। 
  • भारत के अग्निकुल और स्काईरूट जैसे स्टार्ट-अप छोटे पेलोड एवं ध्रुव अंतरिक्ष के लिये लॉन्च वाहन विकसित कर रहे हैं।  
  • ये लॉन्च वाहन उच्च तकनीक वाले सौर पैनलों पर कार्य करते हैं। वर्तमान में भारत वैश्विक धारणीयता के मुद्दों का समाधान करने वाला एक उप-तंत्र बनाने की राह पर है।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अंतरिक्ष मलबे की निगरानी के लिये 'प्रोजेक्ट नेत्र' की शुरूआत की  है। 
  • अप्रैल 2022 में, भारत और अमेरिका ने 2+2 संवाद के दौरान अंतरिक्ष वस्तुओं की निगरानी के लिये एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किये। 
  • नियंत्रित उपग्रह रोधी हथियार (ASAT) परीक्षण और टकराव के जोखिम का समाधान सामूहिक रूप किया जाना चाहिये।
  • कक्षा में सर्विसिंग प्रदान करने के लिये इसरो 'स्पैडेक्स' (SPADEX) नामक एक डॉकिंग परीक्षण विकसित कर रहा है। इसके अंतर्गत किसी मौजूदा उपग्रह पर अन्य उपग्रह को डॉक करके पुन: ईंधन भरने और अन्य कक्षीय सर्विसिंग में सहायता प्रदान की जाएगी ताकि उपग्रह की क्षमता में वृद्धि की जा सके। 
  • यह न केवल किसी मिशन की समयावधि में वृद्धि करेगा बल्कि मिशन/प्रयोगों को संयुक्त करने के लिये भविष्य का विकल्प भी प्रदान करेगा।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष गतिविधियों में सरलता के लिये यू.एन.सी.ओ.पी.यू.ओ.एस. या बाह्य अंतरिक्ष मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOOSA) की सक्रिय भूमिका के साथ सभी अंतरिक्ष हितधारकों द्वारा समान मानकों को निर्धारित करने की आवश्यकता है। 
  • मध्यम एवं लघु अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये धारणीयता के कई उपाय संसाधनों के अधिक प्रयोग करने वाले और महंगे हैं, जो स्थिति को अधिक चुनौतीपूर्ण बना देंगें।
  • यू.के. का एस्ट्रो कार्टा विचार बाह्य अंतरिक्ष में मार्गदर्शक सिद्धांतों और नियमों को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इसके लिये सटीक रूपरेखा और मार्गदर्शक सिद्धांतों की आवश्यकता है। 
  • भारत ने समस्या-समाधान अनुप्रयोगों के साथ लागत प्रभावी और कुशल मिशनों पर बल दिया है, जिसका मलबा पदचिह्न भी बहुत कम है। 
  • मिशनों के इष्टतम उपयोग को सुनिश्चित करने, उनकी सुरक्षा और उत्पादकता बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र को धारणीय दिशानिर्देशों के साथ प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
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