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सिंथेटिक मेडिकल इमेज

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

वर्तमान में स्वास्थ्य सेवा में उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सकीय इमेज (Medical Images) की मांग, आपूर्ति से कहीं अधिक है। साथ ही, वास्तविक दुनिया की चिकित्सकीय इमेज, जैसे- एम.आर.आई., सी.टी. स्कैन या एक्स-रे से प्राप्त इमेज महंगी व समय लेने वाली होती हैं और रोगी के डाटा के बारे में गोपनीयता संबंधी चिंताएं भी उत्पन्न करती हैं। उपरोक्त स्थितियों में सिंथेटिक मेडिकल इमेज (Synthetic Medical Images) एक नैतिक, स्केलेबल एवं लागत प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकती है। 

क्या है सिंथेटिक मेडिकल इमेज (Synthetic Medical Images)

  • सिंथेटिक मेडिकल इमेज वास्तविक मेडिकल इमेज की नकल (Mimic) करते हुए कृत्रिम रूप से बनाई जाती है, जैसे कि एक्स-रे, एम.आर.आई. या सी.टी. स्कैन इमेज की नकल।
    • वस्तुतः यह किसी भी वास्तविक रोगी से सीधे डाटा प्राप्त नहीं करता है।
  • ये इमेज विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके बनाई जाती हैं, जिसमें पूर्णतया गणितीय मॉडल या एआई तकनीकों, जैसे- जनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GAN), डिफ्यूजन मॉडल एवं ऑटोएनकोडर का उपयोग शामिल हैं।
  • जनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क (जीएएन) : यह एक प्रकार का मशीन लर्निंग मॉडल है जिसे प्रशिक्षण डेटासेट के समान नए डेटा नमूने उत्पन्न करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।जीएएन के दो भाग होते हैं-
    • जनरेटर (Generator) : यह यादृच्छिक (Random) डेटा से सिंथेटिक इमेज बनाता है। 
    • डिस्क्रिमिनेटर (Discriminator) : यह निर्धारित करता है कि इमेज असली है या सिंथेटिक।
  • डिफ्यूजन मॉडल (Diffusion model) : यह एक जनरेटिव मॉडल है। इसका उपयोग प्रशिक्षित किए गए किसी डेटा के समान, अन्य डेटा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • ऑटोएनकोडर (Autoencoder): यह कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क का एक वर्ग है जिसे बिना किसी पर्यवेक्षण के सीखने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें एक एनकोडर और एक डिकोडर होता है।

सिंथेटिक मेडिकल इमेज के लाभ

  • इंट्रा-मोडैलिटी एवं इंटर-मोडैलिटी ट्रांसलेशन को सुविधाजनक बनाना : इंट्रा-मोडैलिटी ट्रांसलेशन का तात्पर्य है एक ही तरह की इमेजिंग मोडैलिटी के भीतर सिंथेटिक इमेज बनाना। उदाहरण के लिए, एम.आर.आई. डाटा के आधार पर एम.आर.आई. स्कैन को बेहतर बनाना या फिर से बनाना। 
    • दूसरी ओर, इंटर-मोडैलिटी ट्रांसलेशन में अलग-अलग तरह की इमेजिंग मोडैलिटी के बीच ट्रांसलेट करके सिंथेटिक इमेज बनाना शामिल है । उदाहरण के लिए, एम.आर.आई. डाटा से सी.टी. स्कैन बनाना।
  • डाटा गोपनीयता : सिंथेटिक इमेज मरीज की गोपनीयता के बारे में चिंताओं को लगभग समाप्त कर देती हैं क्योंकि उनमें मरीज की वास्तविक जानकारी नहीं होती है।
  • विविध डाटासेट : ये विभिन्न स्थितियों, चरणों एवं शारीरिक विविधताओं को कवर करते हुए कई तरह की इमेज बना सकते हैं, जो वास्तविक डाटासेट में दुर्लभ हो सकती हैं।
  • लागत-प्रभावी : सिंथेटिक इमेज बनाने से बड़ी मात्रा में वास्तविक मेडिकल इमेज को एकत्रित करने और एनोटेट (Annotate) करने से जुड़ी लागत कम हो सकती है।
  • नियंत्रित प्रयोग : शोधकर्ता सिंथेटिक इमेज के चर (जैसे- नॉइज़, रिज़ॉल्यूशन) को नियंत्रित कर सकते हैं ताकि निदान एल्गोरिदम पर उनके प्रभावों का अध्ययन किया जा सके।
  • तीव्र प्रोटोटाइपिंग : सिंथेटिक इमेज नई इमेजिंग तकनीकों या एल्गोरिदम को विकसित करने और उनका परीक्षण करने के लिए त्वरित पुनरावृत्ति में सहायक है।
  • वर्ग वितरण को संतुलित करना : सिंथेटिक इमेज मॉडल प्रशिक्षण में सुधार करते हुए निम्न प्रतिनिधित्व वाले वर्गों के उदाहरण उत्पन्न करके डाटासेट को संतुलित करने में मदद कर सकती है।
    • जैसे- यदि किसी डाटासेट में दुर्लभ ट्यूमर प्रकार के कुछ उदाहरण हैं तो मॉडल को इसे प्रभावी ढंग से पहचानने के लिए सिंथेटिक इमेज बनाई जा सकती हैं।
  • एल्गोरिदम को प्रभावी बनाना : सिंथेटिक डाटा का उपयोग करके एल्गोरिदम की प्रभावशीलता को बेहतर बनाया जा सकता है क्योंकि इससे उन्हें कई तरह के परिदृश्यों के संपर्क में लाया जा सकता है जो वास्तविक डाटासेट में मौजूद नहीं हो सकते हैं।

सिंथेटिक मेडिकल इमेज संबंधी चुनौतियाँ

  • यथार्थवाद एवं गुणवत्ता : उपयोगी होने के लिए सिंथेटिक इमेज को वास्तविक इमेज से अत्यधिक मिलता-जुलता होना चाहिए; अन्यथा उनसे प्रशिक्षित मॉडल का प्रदर्शन वास्तविक डाटा की स्थिति में निम्न हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, एक सिंथेटिक एम.आर.आई. शारीरिक विवरणों को सटीक रूप से प्रस्तुत करने में विफल रहता है और वह एक ऐसे डायग्नोस्टिक एल्गोरिदम को जन्म दे सकता है जो ट्यूमर की गलत पहचान करता है।
  • सामान्यीकरण : सिंथेटिक डाटा पर प्रशिक्षित मॉडल को नॉइज़, कलाकृतियों या इमेजिंग स्थितियों में अंतर के कारण वास्तविक दुनिया के डाटा को अच्छी तरह से सामान्यीकृत करने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिए, सिंथेटिक चेस्ट एक्स-रे पर प्रशिक्षित एक एल्गोरिदम अलग-अलग गुणवत्ता व रोगी जनसांख्यिकी के साथ वास्तविक दुनिया के एक्स-रे में स्थितियों का सटीक रूप से निदान करने में संघर्ष कर सकता है।
  • एल्गोरिदम पर निर्भरता : सिंथेटिक इमेज की गुणवत्ता उन्हें उत्पन्न करने के लिए उपयोग किए जाने वाले एल्गोरिदम पर बहुत अधिक निर्भर करती है, अत: खराब एल्गोरिदम भ्रामक परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं।
  • मौजूदा प्रणालियों के साथ एकीकरण : सिंथेटिक इमेज डाटसेट को मौजूदा वर्कफ़्लो एवं सिस्टम में एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेषकर स्थापित चिकित्सा प्रणाली में।
  • दुर्भावनापूर्ण अनुप्रयोग : सिंथेटिक डाटा एल्गोरिदम में दुर्भावनापूर्ण अनुप्रयोगों की संभावना है, जिसमें अस्पताल प्रणालियों में ‘डीपफेक’ शामिल है।
    • वस्तुतः डीपफेक व्यक्तिगत रोगियों की नकल कर सकते हैं और ऐसे नैदानिक निष्कर्ष पेश कर सकते हैं जो मौजूद नहीं हैं। इससे गलत निदान या उपचार हो सकते हैं।
  • स्वास्थ्य बीमा फ्रॉड : सिंथेटिक डाटा एल्गोरिदम में दुर्भावनापूर्ण अनुप्रयोग के माध्यम से स्वास्थ्य बीमाकर्ताओं को धोखाधड़ी वाले दावे प्रस्तुत करने के लिए उनका शोषण किया जा सकता है।
  • विनियामक एवं नैतिक चिंताएँ : अभी भी अनिश्चितताएँ हैं कि सिंथेटिक इमेज को नियामक निकायों द्वारा कैसे देखा जाएगा, जो नैदानिक प्रणाली में उनकी स्वीकृति को प्रभावित कर सकता है।

सुझाव 

  • अंतरविषयी सहयोग को बढ़वा : भारतीय रेडियोलॉजिस्ट, आई.आई.टी. जैसे संस्थानों के ए.आई. शोधकर्ता और चिकित्सा नैतिकतावादियों को शामिल करने वाली एक पहल सिंथेटिक डाटासेट विकसित कर सकती है।
    • यह भारत में प्रचलित सामान्य स्थितियों, जैसे- तपेदिक या मधुमेह की जटिलताओं का प्रतिनिधित्व करती है।
  • डाटा प्रोटोकॉल का मानकीकरण : चिकित्सा अनुप्रयोगों में स्थिरता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए सिंथेटिक इमेज के निर्माण व उपयोग के लिए दिशानिर्देश और मानक स्थापित किए जाने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) सिंथेटिक इमेज बनाने के लिए मानकीकृत प्रोटोकॉल जारी कर सकता है जो भारतीय रोगियों की अनूठी जनसांख्यिकीय और महामारी विज्ञान विशेषताओं को दर्शाता है। 
  • नियामक निरीक्षण : सिंथेटिक मेडिकल इमेज की सुरक्षा एवं प्रभावकारिता सुनिश्चित करने वाले नियम बनाने के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) के साथ सहयोग किया जा सकता है। 
    • डी.सी.जी.आई. सिंथेटिक इमेज पर प्रशिक्षित एआई मॉडल के मूल्यांकन के लिए एक रूपरेखा स्थापित कर सकता है।
  • संतुलित निर्भरता : मानव स्वास्थ्य की अपनी समझ को आकार देने के लिए सिंथेटिक मेडिकल इमेज पर अत्यधिक निर्भर होने के बारे में सतर्कता बरतनी चाहिए क्योंकि नवाचार एवं वास्तविकता के बीच संतुलन नाजुक है।
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