New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan. 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan., 10:30 AM | Call: 9555124124

प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंक  (D-SIBs)

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास से संबंधित विषय) 

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय स्टेट बैंक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक तथा एच.डी.एफ.सी. बैंक को ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंक’ (D-SIBs) के रूप में बनाए रखने का निर्णय लिया है।

पृष्ठभूमि

  • वैश्विक आर्थिक मंदी जैसी स्थितियों एवं वित्तीय प्रणाली संबंधी अन्य जोखिमों से निपटने के लिये वर्ष 2010 में अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘वित्तीय स्थिरता बोर्ड’ (FSB) ने प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण संस्थाओं/बैंकों (SIFIs/Banks) के जोखिमों को कम करने के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करने पर जोर दिया।
  • विकसित एवं विकासशील देशों के सदस्यों द्वारा गठित बैंकिंग पर्यवेक्षण पर ‘बेसल समितिने भी वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-SIBs) के लिये नवंबर, 2011 में एक रूपरेखा तैयार की और सदस्य देशों से घरेलू स्तर भी डी.-एस.आई.बी. के लिये विनियामक रूपरेखा अपनाने की अनुशंसा की।

प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंक (Bank as Domestic Systemically Important Banks : D-SIBs)

  • आर.बी.आई. के अनुसार, कुछ बैंक अपने आकार, क्रॉस-जूरीडिक्शनल गतिविधियों, जटिलता, परस्पर संबंध तथा स्थानापन्नता के अभाव के कारण प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण होते हैं और जिन बैंकों की संपत्ति कुल जी.डी.पी. के 2% से अधिक है उन्हें डी.-एस.आई.बी. के रूप में चिन्हित किया जाता है।
  • प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों को ‘टू बिग टू फेल’ (Too BigTo Fail) के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
  • इन्हें प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक इसलिये कहा जाता है क्योंकि ये बैंक अपने कार्यों तथा अपनी विशेषताओं के कारण इतने महत्त्वपूर्ण होते हैं कि ये आसानी से विफल नहीं हो सकते।
  • इनमें से किसी भी बैंक की विफलता का वित्तीय प्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और इससे अर्थव्यवस्था भी व्यापक रूप से बाधित होगी।
  • ये बैंक प्रणालीगत तथा नीतिगत जोखिमों से निपटने के लिये अतिरिक्त नीतिगत उपायों के अधीन होते हैं।
  • मानदंडो के अनुरूप निरंतर संचालन के लिये सरकार द्वारा इन बैंकों के लिये अलग से पूंजी का प्रावधान किया जाता है।
  • ये बैंक फंडिंग मार्केट में कुछ खास फायदों का भी लाभ प्राप्त करते हैं।

आर.बी.आई. द्वारा प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों’ को चिन्हित करने की प्रक्रिया

  • आर.बी.आई. ने 22 जुलाई 2014 को डी.-एस.आई.बी. के लिये बी.सी.बी.एस. (Basel Committee on Banking Supervision) प्रारूप पर आधारित एक फ्रेमवर्क जारी किया था। इस फ्रेमवर्क के तहत आर.बी.आई. के लिये यह अपेक्षित था कि वह अगस्त 2015 से लेकर प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में डी.-एस.आई.बी. के रूप में वर्गीकृत बैंकों के नाम घोषित करे।
  • इस प्रारूप के आधार पर ही आर.बी.आई. ने 31 अगस्त, 2015 को प्रथम’ ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों’ की सूची जारी की।
  • आर.बी.आई, डी.-एस.आई.बी. की पहचान के लिये बैंक का आकार, अंतर-संबंध, प्रतिस्थापन तथा जटिलता जैसे संकेतकों को अपनाता है।
  • इन बैंकों को चिन्हित करने के लिये आर.बी.आई. एक कट-ऑफ स्कोर निर्धारित करता है जिससे ऊपर बैंकों को डी.-एस.आई.बी. माना जाता है
  • प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण स्कोर (Systemic Important Scores - SIC) के आधार पर बैंकों को चार विभिन्न समूहों में रखा जाता है।
  • डी.-एस.आई.बी. के तहत बैंकों को अपने-अपने समूहों के आधार पर जोखिम भारित आस्तियों (RWA) के रूप में 20% से 0.80% तक अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर- I (CET-1) पूंजी बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
  • डी.-एस.आई.बी. के लिये अतिरिक्त सी.ई.टी.-1 की आवश्यकता 1 अप्रैल, 2016 से चरणबद्ध और 1 अप्रैल, 2019 से पूरी तरह से प्रभावी हो गई।

आर.बी.आई. के प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंक

  • आर.बी.आई. की ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण घरेलू बैंकों’ की सूची में शुरुआत में (वर्ष 2015 में) भारतीय स्टेट बैंक (SBI) तथा आई.सी.आई.सी.आई. (ICICI)  बैंक को शामिल किया गया था। सितंबर 2017 में एच.डी.एफ.सी. बैंक को भी इसमें शामिल किया गया।
  • वर्तमान में इस सूची में केवल तीन बैंक; एस.बी.आई.(SBI), आई.सी.आई.सी.आई. (ICICI) तथा एच.डी.एफ.सी. (HDFC) ही शामिल हैं। यह सूची 31 मार्च, 2020 तक बैंकों से एकत्र किये गए आंकड़ों पर आधारित है।
  • केंद्रीय बैंक के अनुसार अगर भारत में विदेशी बैंक की शाखा, एक वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक (G-SIB) है, तो उसे अपने आर.डब्ल्यू.ए. के अनुपात के अनुसार, देश में अतिरिक्त सी.ई.टी.-1 पूंजी अधिभार को बनाए रखना होगा।
  • एस.बी.आई. के संदर्भ में आर.डब्ल्यू.ए. के प्रतिशत के रूप में अतिरिक्त सी.ई.टी.-1 की आवश्यकता 0.60% है, जबकि आई.सी.आई.सी.आई. तथा एच.डी.एफ.सी. बैंकों के लिये यह 0.20% है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR