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वोट के लिए रिश्वत लेना सदन के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं: सुप्रीम कोर्ट

प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, अनु. 105(2), 194 (2), पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामला
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2 और 3

संदर्भ:

4 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया कि संसद, विधानमंडल में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेना सदन के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं आएगा।

Supreme-Court

मुख्य बिंदु:

  • CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संवैधानिक पीठ में शामिल थे; 
    • जस्टिस एएस बोपन्ना
    • जस्टिस एमएम सुंदरेश
    • जस्टिस पीएस नरसिम्हा
    • जेबी पारदीवाला
    • जस्टिस संजय कुमार 
    • जस्टिस मनोज मिश्रा
  • नया मामला तब सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की विधायक सीता सोरेन के एक कथित रिश्वत मामले की सुनवाई कर रहा था।
  • सीता सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने वर्ष 2012 में राज्यसभा के चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत ली थी।
  • इस मामले में वर्ष 1998 के सुप्रीम कोर्ट के पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले में फैसले का हवाला दिया गया।
  • वर्ष 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई, जस्टिस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। 
    • इस पीठ ने निर्णय दिया कि पीवी नरसिम्हा राव मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला बिल्कुल इसी तरह का है और वह यहां भी लागू होगा।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनु. 105(2) के अनुसार, संसद का कोई भी सदस्य संसद या उसकी किसी समिति में अपने द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए वोट के संबंध में किसी भी कोर्ट में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
    • संसद के सदन के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कोई व्यक्ति किसी प्रकाशन, रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के संबंध में किसी भी कोर्ट में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
  • अनु. 194(2) राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को इसी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने नरसिम्हा राव मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया।
    • 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कोई अकेला विधायक या सांसद इस तरह के विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
    • विशेषाधिकार सदन को सामूहिक रूप से दिया जाता है।
    • नरसिम्हा राव के मामले में दिया गया फ़ैसला संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194(2) का विरोधाभासी है।
  • अनु. 105 (2) और 194 (2) के तहत जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधानसभाओं के अंदर कुछ करने और कहने के लिए दी गई छूट सदन की सामूहिक कार्य प्रणाली से संबंधित है।
  • जैसे ही कोई जन-प्रतिनिधि रिश्वत लेता है, उसी समय उसके विरुद्ध मामला बन जाता है।
    • इस मामले में यह मायने नहीं रखता कि उसने बाद में सवाल पूछा या भाषण दिया कि नहीं।
      • सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में भाषण देते हैं या वोट देते हैं, तो उन पर कोर्ट में आपराधिक मामला चलाया जा सकता है।
      • रिश्वत लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को क़ानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा।
  • विशेषाधिकारों पर कानून की व्याख्या:
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स में संसद और राजा के बीच संघर्ष के बाद संसदीय विशेषाधिकारों की शरुआत हुई।
  • भारत में संसदीय विशेषाधिकारों के इतिहास पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में ये अधिकार औपनिवेशिक काल के दौरान भी एक क़ानून से अलग थे।
    • आज़ादी के बाद यह अधिकार एक संवैधानिक विशेषाधिकार में बदल गया। 
  • कोर्ट ने विशेषाधिकार की व्याख्या संविधान के बड़े आदर्शों के अनुरूप की।
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, संसदीय विशेषाधिकार के दो घटक हैं; 
  • एक विशेषाधिकार का प्रयोग सदन सामूहिक रूप से करता है। इसमें शामिल हैं;
  • अपनी अवमानना ​​के लिए दंडित करने की शक्ति।
  • अपने स्वयं के मामलों का संचालन करने की शक्ति, आदि। 
    • दूसरा विशेषाधिकार व्यक्तिगत अधिकारों के लिए है। इसमें शामिल हैं;
    • प्रत्येक सदस्य द्वारा बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार। 
  • कोर्ट ने कहा, इसके लिए एक परीक्षण (Test) पास करना होगा।
  • सरकार के अनुसार, आवश्यकता परीक्षण’ (necessity test) के कारण सांसद या विधायक अपने कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकेंगे।
  • यह उनके भाषण देने की स्वतंत्रता के अधिकार के विपरीत है।
  • एक कानून निर्माता के रूप में अपने कार्यों का निर्वहन करने के लिए रिश्वत लेने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
    • कोर्ट ने कहा कि संविधान सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की परिकल्पना करता है। 
      • विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है। 
      • यह संविधान के आकांक्षात्मक और विचारशील आदर्शों के लिए विनाशकारी है। 
      • यह एक ऐसी राजनीति का निर्माण करता है जो नागरिकों को एक जिम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र से वंचित करता है।
  • भ्रष्टाचार-मत या अंतरात्मा का मत:
  • सुप्रीम को यह भी देखना था कि क्या किसी सांसद या विधायक को उस समय छूट दी जा सकती है;
  • जब सांसद या विधायक रिश्वत तो लेता है, लेकिन वोट अपने विवेक या पार्टी लाइन के अनुसार देता है न कि रिश्वत देने वाले के अनुरोध के अनुसार। 
  • इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 का विश्लेषण किया, जिसका संबंध 'लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित अपराध' से है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि एक निश्चित तरीके से कार्य करने या कार्य करने से रोकने के लिए अनुचित लाभ प्राप्त करना, स्वीकार करना या प्रयास करना अपराध के लिए पर्याप्त है। 
    • यह आवश्यक नहीं है कि जिस कार्य के लिए रिश्वत ली गई है, वह वास्तव में किया जाए।
  • इसका मतलब यह है कि रिश्वत लेना एक अपराध है और यह इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि लोक सेवक ने अलग तरीके से काम किया है या नहीं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लोक सेवकों का एक ‘नाजायज वर्ग’ बनाना संविधान के अनु. 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। 
    • यदि इस वर्ग को असाधारण सुरक्षा प्रदान की जाती है।
  • न्यायालय की शक्ति:
  • संसद के पास अपने सदस्यों को अवमानना ​​के लिए दंडित करने की शक्ति है। इसके तहत; 
  • सदन से निलंबन और जेल की सजा भी हो सकती है। 
  • सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि इस संदर्भ में क्या कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि; 
    • कोर्ट और संसद दोनों समानांतर रूप से कानून निर्माताओं के कार्यों पर अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकते हैं। 
    • ऐसा इसलिए है कि सदन द्वारा दंड देने का उद्देश्य आपराधिक मुकदमे के उद्देश्य से भिन्न होता है।
    • रिश्वतखोरी का मुद्दा सदन द्वारा अपने रिश्वत लेने वाले सदस्यों पर अधिकार क्षेत्र की विशिष्टता का नहीं है। 
    • रिश्वत लेने के लिए किसी सदस्य द्वारा की गई अवमानना ​​के खिलाफ कार्रवाई करने वाले सदन का उद्देश्य आपराधिक अभियोजन से अलग उद्देश्य पूरा करता है।

पीवी नरसिम्हा राव मामले की पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1991 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
  • पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने।
    • नरसिम्हा राव की सरकार के सामने कई चुनौतियां थीं; 
    • सबसे बड़ा चुनौती आर्थिक संकट था।
    • उनकी सरकार ने वर्ष 1991 में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार किया और अर्थव्यवस्था का उदारीकरण हुआ।
    • इसी समय राजनीतिक स्तर पर राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था।
    • 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई।
  • इन्हीं दो मुद्दों को आधार बनाकर 26 जुलाई, 1993 के मानसून सत्र में CPI(M) के अजॉय मुखोपाध्याय ने नरसिम्हा राव सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
  • अविश्वास प्रस्ताव का कारण इस प्रकार बताया गया;
    • IMF और विश्व बैंक के सामने समर्पण कर जन-विरोधी आर्थिक नीतियों को लाने से बेरोज़गारी और मंहगाई बढ़ रही है।
    • इससे भारतीय उद्योग और किसानों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • सरकार द्वारा सांप्रदायिक ताकतों के प्रति समझौतावादी रवैये अपनाने के कारण अयोध्या की घटना हुई।
    • सरकार संविधान में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता की भावना को बचाने में असफल हो रही है।
    • बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा नहीं देने में सरकार असफल साबित हुई है।
  • उस समय लोकसभा में 528 सीटें हुआ करती थीं और कांग्रेस के पास 251 सीटें थीं।
  • सरकार बचाने के लिए कांग्रेस को 13 और सीटों की ज़रूरत थी।
  • 28 जुलाई, 1993 को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, तो अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया।
  • अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 251 और इसके विरोध में 265 वोट पड़े।
  • इस वोटिंग के तीन साल बाद रिश्वत का मामला सामने आया।
  • राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के सदस्य रवींद्र कुमार ने 1 फरवरी, 1996 को CBI के पास शिकायत की।
  • इस शिकायत में आरोप लगाया गया कि जुलाई, 1993 में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कुछ राजनीतिक दलों के सांसदों को रिश्वत देकर बहुमत साबित करने की साज़िश रची थी। 
  • CBI ने इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कुछ सांसदों पर मुकदमा दर्ज किया।

पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • सुप्रीम कोर्ट ने CBI की जांच के परिप्रेक्ष्य में निर्णय दिया कि;
    • JMM के सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिए रिश्वत ली है।
    • उनके और कुछ अन्य सांसदों के वोट के कारण ही राव की सरकार बच पायी।
    • इसके बावजूद ये सांसद उस सुरक्षा के हकदार हैं, जो संविधान उन्हें देता है।
  • वर्ष 1998 में 3-2 के बहुमत से पांच जजों की पीठ ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले में महत्वपूर्ण फ़ैसला दिया थाच 
  • इस फैसले के अनुसार, जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधानमंडल में अपने भाषण तथा वोटों के लिए रिश्वत लेने के मामले में आपराधिक मुक़दमे से छूट होगी।
  • ये उनका विशेषाधिकार है।
  • सदन में किए गए किसी भी कार्य के लिए उन पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

 प्रश्न- पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए

  1. जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधानमंडल में अपने भाषण तथा वोटों के लिए रिश्वत लेने के मामले में आपराधिक मुक़दमे से छूट होगी।
  2. ये उनका विशेषाधिकार है।
  3. सदन में किए गए किसी भी कार्य के लिए उन पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर- (d)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है। विवेचना कीजिए।

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