New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

तालिबान एवं भारत के संबंध

संदर्भ

हाल ही में, तालिबान ने अफगानिस्तान के विश्वविद्यालयों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में दिन-प्रतिदिन बढ़ते दमनकारी तालिबानी शासन के साथ अपने संबंधों पर फिर से समीक्षा करने का वक्त है। 

तालिबान के बारे में 

  • तालिबान एक इस्लामी कट्टरपंथी राजनीतिक और सैन्य संगठन है, जो अफगानिस्तान की राजनीति में सक्रिय है।
  • मुल्ला उमर को तालिबान का संस्थापक माना जाता है। 
  • पश्तो भाषा में 'तालिबान' शब्द का अर्थ है 'छात्र'।
  • तालिबान आधिकारिक तौर पर खुद को 'अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात' के रूप में संदर्भित करता है।

तालिबान- उत्पत्ति 

  • 1978 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के प्रभाव में हुई सौर क्रांति ने वहां एक कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता में स्थापित किया।
  • इस घटना को संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने सोवियत आक्रमण के रूप में देखा।
  • यूएसएसआर के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, ईरान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और मिस्र द्वारा मुजाहिद्दीन को प्रशिक्षण और हथियार देकर समर्थन दिया गया।
  • 1992 में मुजाहिद्दीन से निकले विद्रोहियों ने काबुल पर अधिकार कर लिया। एक खूनी गृहयुद्ध हुआ क्योंकि मुजाहिदीन स्वयं विभिन्न गुटों में बंटे हुए थे और सत्ता के लिए होड़ कर रहे थे।
  • 1994 में, छात्रों के एक समूह ने कंधार शहर पर नियंत्रण कर लिया और पूरे देश को नियंत्रित करने के लिए सत्ता की लड़ाई शुरू कर दी। उन्हें तालिबान कहा जाता था। वे इस्लामी कट्टरपंथी थे। वास्तव में, उनमें से कई को पाकिस्तान में शिविरों में प्रशिक्षित किया गया था जहाँ वे शरणार्थी थे।
  • 1995 में तालिबान ने हेरात प्रांत और 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया।
  • 1998 तक लगभग पूरा देश तालिबान के नियंत्रण में था। 

तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति 

  • तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में शांति और समृद्धि बहाल करने हेतु देश में शरिया का कानून लागू किया गया है।
  • महिलाओं को चेहरे सहित अपने पूरे शरीर को ढकने के लिए बुर्का पहनना आवश्यक है।
  • महिलाएं अपने साथ परिवार के किसी पुरुष सदस्य के बिना घर से बाहर नहीं जा सकती हैं। वे बाहर काम नहीं कर सकती हैं।
  • तालिबान ने लड़कियों को स्कूल जाने से हतोत्साहित किया, और आठ वर्ष से ऊपर आयु की लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • हत्या और व्यभिचार के अभियुक्तों के लिए सार्वजनिक निष्पादन आयोजित किए गए हैं, जिसमें चोरी के आरोपितों के अंग-भंग भी किया जाना शामिल है
  • उन्होंने टेलीविजन, संगीत, पतंगबाजी, सिनेमा, फोटोग्राफी, पेंटिंग आदि पर प्रतिबंध लगा दिया। महिलाओं को खेल आयोजनों में भाग लेने या उन्हें खेलने से रोक दिया गया।
  • मानवाधिकारों का व्यापक दुरुपयोग देखा गया, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ लक्षित अधिकार। 

अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार को लेकर भारत का नज़रिया 

  • वर्ष 1990 और 2000 के दशक में, भारत लगातार तालिबान के साथ किसी भी समझौते या सौदे के विरोध में था, किंतु विगत कुछ समय से भारत के इस रवैये में बदलाव आया है।
  • वर्ष 2018 में, जब रूस ने ‘अफगान-तालिबान वार्ता’ की मेज़बानी की थी, तब भारत ने इसमें शामिल होने के लिये एक राजनयिक प्रतिनिधिमंडल भेजा था।
  • सितंबर 2020 में, दोहा में संपन्न ‘अंतर-अफगान शांति वार्ता’ में एस. जयशंकर ने एक डिजिटल मंच के माध्यम से उद्घाटन सत्र में भाग लिया। उन्होंने भारत का पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘कोई भी शांति स्थापित करने से संबंधित प्रक्रिया अफगान-नेतृत्व में, अफगान-अधिकृत और अफगान-नियंत्रित होनी चाहिये’।
  • भारत ने ‘अफगान-तालिबान शांति वार्ता’ पर अपने पूर्ववर्ती रुख में परिवर्तन करते हुए बाइडन प्रशासन द्वारा प्रस्तुत योजना ‘संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में बहुपक्षीय सम्मेलन के आयोजन’ का समर्थन किया है और तालिबान से निपटने की इच्छा व्यक्त की है।
  • ‘अफगान-तालिबान’ मामले पर भारत की नीति अफगानिस्तान की वास्तविक परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित होती रही है। चूँकि अफगानिस्तान में तालिबान अब कोई बाहरी शक्ति नहीं है तथा देश के ग्रामीण क्षेत्रों पर इसका प्रभावी नियंत्रण है, अतः भारत अब अफगानिस्तान में अपना पक्ष मज़बूत करने के लिये ‘अंतर-अफगान शांति वार्ता’ का समर्थन कर रहा है। 

अफगानिस्तान और भारत के हित

  • समय के साथ भारत ने शिक्षा, विद्युत उत्पादन, सिंचाई और आधारभूत अवसंरचनाओं के विकास से जुड़ी अनेक परियोजनाओं में निवेश के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ संबंध मज़बूत किये हैं।
  • भारत की अफगानिस्तान के लिये 3 बिलियन यू.एस. डॉलर की विकास साझेदारी है, जिसमें इसके सभी 34 प्रांतों के लिये 550 से अधिक सामुदायिक विकास परियोजनाएँ भी शामिल हैं।
  • ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत और अफगानिस्तान के शहरों के मध्य समर्पित ‘एयर फ्रेट कॉरिडोर’ परियोजना भी शुरू की गई  है।
  • भारत कोविड वैक्सीन की पहली खेप अफगानिस्तान को फरवरी में प्रदान कर चुका है।
  • हाल ही में, भारत ने काबुल के पास शहतूत बाँध के निर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। 

भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्व क्या है ?

प्राकृतिक संसाधन 

  • अफगानिस्तान अपने भू-रणनीतिक महत्व और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के लिए जाना जाता है। 
  • पेंटागन और यूएस जियोलॉजिकल सर्वे की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में अनुमानित 1 ट्रिलियन अमरीकी डालर के अप्रयुक्त संसाधन हैं। 

सुरक्षा 

  • भारत के लिए क्षेत्रीय और घरेलू सुरक्षा और स्थिरता के लिए एक स्थिर अफगानिस्तान महत्वपूर्ण है। 
  • अफगानिस्तान मार्ग से मादक पदार्थों की तस्करी का खतरा है। इस प्रकार शांतिपूर्ण अफगानिस्तान भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे को कम करने के लिए एक आवश्यकता है। 

कनेक्टिविटी

  • अफगानिस्तान को हमेशा मध्य एशिया के लिए भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है। उदाहरण के लिए, चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान के साथ भारत के जुड़ाव का मुख्य कारण अफगानिस्तान और आगे मध्य एशिया के साथ संपर्क रहा है।
  •  इसी तरह, डेलाराम-जरंज हाईवे अफगानिस्तान के रास्ते भारतीय अर्थव्यवस्था को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है।

ऊर्जा महत्वाकांक्षाएं

  • अपने आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ईरान और मध्य एशिया से पाइपलाइन बेहद महत्वपूर्ण होंगी। भारत अफगानिस्तान को TAPI (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन के एक आवश्यक घटक के रूप में देखता है। एक अस्थिर अफगानिस्तान इस पाइपलाइन के निर्माण और उसके बाद गैस के प्रवाह को प्रभावित करेगा।

व्यापार

  • व्यापार के मामले में, अफगानिस्तान विदेशी मुद्रा प्राप्त करके भारत को अपने उत्पादों को यूरोप में निर्यात करने में मदद कर सकता है।
  • अफगानिस्तान में चाबहार से ज़ाहेदान तक की रेलवे लाइन नई दिल्ली को ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ने की परिकल्पना करती है।

यदि अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व बढ़ता है तो भारत के साथ इसके आर्थिक, सामरिक और सुरक्षा संबंध प्रभावित हो सकते हैं, अतः भारत को अफगानिस्तान और तालिबान, दोनों ही पक्षों के साथ एक संतुलन स्थापित करना होगा। 

वैश्विक शक्तियों का पक्ष

  • बाइडन प्रशासन ने ‘अफगान- तालिबान शांति स्थापना’ के लिये दो प्रस्ताव प्रस्तुत किये हैं; पहला, युद्धरत दलों के बीच आपसी सामंजस्य से परिवर्तित एकल-सरकार का गठन और दूसरा, संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक बहुपक्षीय सम्मेलन का आयोजन, जिसमें भारत, चीन, ईरान, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका के प्रतिनिधि शामिल हों।
  • चीन ने काफी समय पूर्व ही तालिबान तक अपनी पहुँच सुनिश्चित कर ली थी। रूस भी ‘अफगान-तालिबान शांति वार्ता’ की मेज़बानी कर चुका है। साथ ही, वार्ता को प्रायोजित करने में यूरोपीय शक्तियों ने भी रुचि दिखाई है। 

तालिबान से वार्ता के नकारात्मक पक्ष 

  • पूर्व में तालिबान, भारतीय मिशनों पर हमलों और हत्याओं के लिए जिम्मेदार रहा है। 
  • ऐसे में तालिबान के प्रति भारत की उदार नीतियों ने भारत को लक्षित करने वाले आतंकवादी संगठनों सहित अन्य अलगाववादी गुटों को अधिक बढ़ावा मिल सकता है। 

आगे की राह 

  • वास्तव में, एक शासन जो दिन-प्रतिदिन क्रूर और कम तर्कसंगत होता जा रहा है तो ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अब तालिबान 2.0 शासन के प्रति अपनी वर्तमान नीति की समीक्षा करनी चाहिए।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR