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किसानों की आय दो-गुनी करने का लक्ष्य तथा संबंधित पहलू

संदर्भ

किसानों की आय दो-गुनी करने के उद्देश्य से गठित ‘दलवई समिति’ के अध्यक्ष अशोक दलवई ने हालिया साक्षात्कार में कहा है कि “कृषि आय के संदर्भ में वास्तविक परिणामों की बजाय केवल रणनीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी की जा रही है”। इसके अतिरिक्त, विशेषज्ञों ने भी कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी लक्ष्य प्राप्ति को लेकर आशंकाएँ व्यक्त की हैं।

चुनौतियाँ

  • सरकार द्वारा इस लक्ष्य के लिये आधार वर्ष तथा 2022 की समय-सीमा तक प्राप्त की जाने वाली लक्षित आय के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है।
  • विदित है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने इस संबंध में कृषि परिवारों पर अंतिम सर्वेक्षण वर्ष, 2013 में आयोजित किया था, जिसके बाद से कृषि आय का कोई वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया गया है।
  • वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिये वार्षिक कृषि विकास दर लगभग 14% होनी चाहिये, परंतु वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अनुमानित विकास दर प्राप्त कर पाना संभव प्रतीत नहीं होता। विगत कुछ वर्षों में तो कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों की वार्षिक विकास दर में गिरावट दर्ज की गयी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में कृषि विकास दर केवल 2.8% रहने का अनुमान है।
  • इसके अतिरिक्त, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये कृषि क्षेत्र को औसतन 10% की दर से वार्षिक वृद्धि करनी होगी, जबकि वर्तमान में यह दर 5% से भी कम है।
  • कृषि की लागत में निरंतर वृद्धि हो रही है किंतु कृषि उपज की वाजिब कीमत अभी भी किसानों को नहीं मिल पाती। विगत 4 वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य केवल 25-30% तक ही बढ़ा है।
  • कृषि उपज के रखरखाव तथा भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था का भी अभाव है और सब्जियों की खेती में तो और भी अधिक अस्थिरता है, जिस कारण किसानों को नुक्सान उठाना पड़ता है।
  • सरकार की कृषि नीतियों का पूरा ध्यान कृषि उत्पादक की बजाय कृषि उत्पादन पर रहता है, जिस कारण जमीनी स्तर पर नीतियों का निर्माण तथा कार्यान्वयन नहीं हो पाता।
  • इसके अतिरिक्त, किसानों की आय बढ़ाने की राह में सबसे बड़ी बाधा संगठित निजी क्षेत्र की कृषि में कम भागीदारी का होना भी है।
  • भारत में वर्ष 1991 में हुए आर्थिक सुधारों में कृषि को शामिल नहीं किया गया था।
  • भारतीय कृषि-खाद्य नीतियाँ उपभोक्ता-केंद्रित अधिक रहीं, इनमें गरीबों की खाद्य सुरक्षा पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया।

सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों के अनुसरण की आवश्यकता

  • भारत को अपनी कृषि पद्धति में सुधार करने के लिये चीन और इज़रायल से कृषि-बाज़ार सुधार और जल लेखांकन जैसी महत्त्वपूर्ण पद्धतियों को अपनाने की ज़रूरत है।
  • गौरतलब है कि भारत, चीन तथा इज़रायल ने 1940 के दशक के अंत में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, किंतु वर्तमान में भारत की तुलना में चीन की प्रति व्यक्ति आय लगभग पाँच गुना तथा इज़रायल की आय लगभग 20 गुना अधिक है।
  • चीन, भारत की तुलना में लघु कृषि जोतों से तीन गुना अधिक कृषि उत्पादन करता है। चीन ने सबसे पहले वर्ष 1978 में आर्थिक सुधार की शुरुआत कृषि के माध्यम से ही की थी।
  • चीन ने भू-जोत की सामुदायिक प्रणाली (Commune System) को समाप्त कर दिया तथा कृषि-बाज़ारों को मुक्त कर दिया, जिससे किसानों को उपज़ की अधिक कीमत प्राप्त हुई तथा उनकी आय में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप, 1978-84 के बीच किसानों की आय में लगभग 14% प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई, जो 6 वर्षों में दोगुने से अधिक थी।
  • इज़रायल, समुद्री जल का वि-लवणीकरण और शहरी अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रित करके कृषि के लिये जल की प्रत्येक बूँद का उपयोग कर निर्यात-योग्य उच्च मूल्य वाली फसलों (खट्टे फल, खजूर, जैतून) की खेती करता है। इस संदर्भ में इज़राइल का जल लेखांकन अनुकरणीय है।
  • वर्ष 2016-18 में चीन में जोत का औसत आकार सिर्फ 0.9 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2015-16 में भारत के 1.08 हेक्टेयर की तुलना में छोटा था।
  • इससे यह परिलक्षित होता है कि छोटी जोतों को भी बुनियादी ढाँचा और अनुसंधान सहायता तथा संचालन के लिये संस्थागत ढाँचा आधार प्रदान कर कृषि उपज में वृद्धि की जा सकती है।

आगे की राह

  • भारतीय कृषि को सब्सिडी-आधारित कृषि अर्थव्यवस्था से निवेश-संचालित अर्थव्यवस्था तथा उपभोक्ता-उन्मुख से उत्पादक-उन्मुख होने की आवश्यकता है। आपूर्ति-उन्मुख अर्थव्यवस्था से माँग-संचालित अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिये कृषि उपज को सीधे कारखानों और विदेशी बाज़ारों से जोड़ने की आवश्यकता है।
  • साथ ही, भारत को व्यवसाय केंद्रित से नवाचार-केंद्रित होने के लिये नीतिगत ढाँचे को परिवर्तित करने की भी आवश्यकता है। भारत जब तक कृषि कार्यों के लिये मुफ्त विद्युत आपूर्ति की नीति को खत्म करने की ओर कदम नहीं बढ़ाएगा, तब तक किसान जल संरक्षण हेतु प्रोत्साहित नहीं होंगे।
  • पंजाब जैसे राज्य में जहाँ लगभग 80% खंड अत्यंत संकटपूर्ण स्थिति में हैं क्योंकि यहाँ जल उपभोग, जल पुनर्भरण की तुलना में बहुत अधिक है। खुली खरीद तथा अत्यधिक रियायती दरों पर यूरिया उपलब्ध होने के कारण पंजाब जैसे राज्यों में प्राकृतिक संपदा का ह्रास हो रहा है।
  • सतत् विकास के लिये इस प्रतिगामी चक्र को तोड़ने के साथ-साथ भारत को चीन और इज़राइल से सीखते हुए कृषि उपज में वृद्धि तथा अन्य कारकों पर ध्यान केंद्रित करके कृषि-खाद्य नीतियों और जल लेखांकन में सुधार करना होगा।
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