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भारत में ‘तकनीकी मंदी’

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, जारी किये गए सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितम्बर) में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5% की गिरावट दर्ज की गई। इस संकुचन के साथ भारत में पहली बार आधिकारिक तौर पर तकनीकी मंदी (Technical Recession) दर्ज की गई है।

मुख्य बिंदु

  • अप्रैल से जून तिमाही (पहली तिमाही, वित्त वर्ष 2020-21) में भारत की अर्थव्यवस्था में 23.9% की गिरावट दर्ज की गई थी, जो विगत 40 वर्षों में अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा संकुचन था। कोविड -19 महामारी के कारण उपभोक्ता माँग और निजी निवेश पर पड़े नकारात्मक प्रभाव के कारण यह संकुचन देखा गया था।
  • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अनुसार, सकल मूल्य वर्धित (GVA) वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के दौरान शून्य से भी 7% नीचे आ गया था।
  • यदि क्षेत्रवार देखा जाए तो रियल एस्टेट, वित्तीय और पेशेवर सेवा क्षेत्र में 8.1% और निर्माण क्षेत्र में 8.6% की गिरावट देखी गई।
  • यद्यपि कुछ क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों में पुनः विकास भी देखा गया, क्योंकि बिजली, पानी की आपूर्ति, गैस और अन्य उपयोगी सेवाओं में 4.4% की वृद्धि दर्ज की गई। कृषि, मत्स्य उद्योग तथा वानिकी सहित अन्य क्षेत्रों में भी 3.4% की वृद्धि दर्ज की गई और विनिर्माण क्षेत्र में 0.6% की मामूली वृद्धि देखी गई।
  • ध्यातव्य है कि जब किसी वित्त वर्ष में लगातार दो तिमाहियों में जी.डी.पी. वृद्धि दर ऋणात्मक रहती है या इसमें गिरावट आती है तो इसे तकनीकी मंदी कहते हैं।
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