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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के दस वर्ष : एक लचीली यात्रा

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

18 अक्तूबर, 2020 को ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ की 10वीं वर्षगांठ थी।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण : एक परिचय

  • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010’ के तहत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई थी।
  • यह अधिकरण 1908 के नागरिक प्रक्रिया संहिता के द्वारा तय की गई कार्यविधि से प्रतिबंधित नहीं है परंतु यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार निर्देशित होता है।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है, जो कि पर्यावरण से सम्बंधित विवादों, बहु-अनुशासनिक मामलों सहित विशेषज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है।
  • प्रारम्भ में एन.जी.टी को पाँच स्थानों पर स्थापित किया गया है। अधिकरण की प्रधान पीठ नई-दिल्ली में तथा भोपाल, पुणे, कोलकाता व चेन्नई में अधिकरण की अन्य चार पीठें हैं।

कार्य क्षेत्र

  • इसका गठन पर्यावरण सुरक्षा तथा वन संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधन सहित पर्यावरण से सम्बंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन और क्षतिग्रस्त सम्पत्ति के लिये अनुतोष व क्षतिपूर्ति प्रदान करना और इससे जुडे़ हुए मामलों का प्रभावशाली एवं तीव्र गति से निपटारा करने के लिये किया गया है।
  • अधिकरण पर्यावरण के मामलों में द्रुत गति से पर्यावरणीय न्याय प्रदान करेगा और उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करेगा।
  • अधिकरण आवेदनों और याचिकाओं को 6 माह के अंदर निपटारा करने के हेतु अदेशाधीन है।

स्थापना का कारण : जटिलता की समस्या

  • प्रारम्भ में पर्यावरण से सम्बंधित मामलों की बढ़ती संख्या और जटिलता के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने इन मामलों को सम्भालने के लिये एक विशेष खंडपीठ का गठन किया, जिसे बाद में ‘वन पीठ’ (Forest Bench) के नाम से जाना जाने लगा।
  • इसके अतिरिक्त, विभिन्न उच्च न्यायालयों में लम्बित अनेक मामलों और दशकों से विचाराधीन मामलों के संदर्भ में भी इसकी स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।

विकास के चरण

  • संसद ने वर्ष 1995 में ‘राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण’ और वर्ष 1997 में ‘राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण’ की स्थापना से सम्बंधित कानून पारित किये।
  • इस प्राधिकरण का उद्देश्य मुख्य रूप से पर्यावरण मंजूरी से सम्बंधित चुनौतियों के लिये एक मंच के रूप में कार्य करना था, जबकि न्यायाधिकरण जीवन या सम्पत्ति के पर्यावरणीय क्षति के मामलों में सीमित मात्रा में क्षतिपूर्ति का निर्णय दे सकता था।
  • हालाँकि, यह स्पष्ट था कि पर्यावरणीय कानूनों के प्रवर्तन, संरक्षण और न्यायिक निर्णय के लिये एक विशेष और समर्पित निकाय की आवश्यकता थी।
  • ऐसे निकाय में न्यायाधीशों के साथ-साथ पर्यावरणीय विशेषज्ञों के शामिल होने और विभिन्न राज्यों में इसकी पीठ के स्थापित होने से अधिकतम नागरिकों तक पहुंच बढ़ने की सोच के तहत 'एन.जी.टी.' का विचार पैदा हुआ था।
  • इससे पूर्व भी ‘एम.सी. मेहता व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य’ (1986) के मामले में भी तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने वैज्ञानिक और तकनीकी डाटा मूल्यांकन तथा विश्लेषण के कारण क्षेत्रीय आधार पर पर्यावरण न्यायालय स्थापित करने की बात कही थी।
  • ऐसी ही टिप्पणियाँ वर्ष 1999 में उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम प्रो. एम.वी. नायडू’ के ऐतिहासिक मामले में पुनः दोहराई गईं।

ट्रैक रिकॉर्ड

  • स्थापना के बाद से ही एन.जी.टी. ने कानूनी विशेषज्ञों का एक नया वर्ग तैयार करने के साथ-साथ वन भूमि के विशाल संरक्षण और महानगरों तथा छोटे शहरों में प्रदूषणकारी निर्माण गतिविधियों को रोकने में सफलता पाई है।
  • साथ ही, इसने कानूनों का लागू न करने वाले अधिकारियों को दंडित किया है और बड़ी कॉर्पोरेट संस्थाओं के उत्तरदायित्व को भी तय किया है।
  • इसके अतिरिक्त, इसने आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा की है और ‘प्रदूषण भुगतान’ सिद्धांत के प्रवर्तन को सुनिश्चित किया है।

समस्या

इसके अधिकार क्षेत्र में वन, वन्य जीवन, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और तटीय संरक्षण शामिल है। इसके विशाल और सर्वव्यापी दायरे का एक नकारात्मक पहलू यह है कि यह समान रूप से विविध मात्रा में मुकदमेबाजी को जन्म देता है।

आगे की राह

  • एन.जी.टी. को शासन के मुद्दों पर कम तथा अधिनिर्णय पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • इस पीठ के विस्तार के साथ-साथ रिक्त पदों को शीघ्र भरे जाने की भी आवश्यकता है।
  • एन.जी.टी. को अगले दशक में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता पर कार्य करते हुए आर्थिक विकास को पारिस्थितिक रूप से अस्थिर बनाने वाली कार्रवाईयों को रोकने की आवश्यकता है।

प्री फैक्ट :

  • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010’ के तहत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई थी। इस वर्ष इसकी स्थापना के दस वर्ष पूरे हो गए हैं।
  • अधिकरण की प्रधान पीठ नई-दिल्ली में तथा भोपाल, पुणे, कोलकाता व चेन्नई में अधिकरण की अन्य चार पीठे हैं।
  • संसद ने वर्ष 1995 में ‘राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण’ और वर्ष 1997 में ‘राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण’ की स्थापना से सम्बंधित कानून पारित किये।
  • ‘एम.सी. मेहता व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य’ (1986) के मामले में भी तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने वैज्ञानिक और तकनीकी डाटा मूल्यांकन तथा विश्लेषण के कारण क्षेत्रीय आधार पर पर्यावरण न्यायालय स्थापित करने की बात कही थी।

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