(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की कला के रूप तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
- हाल ही में, तमिलनाडु के ‘थूथुकुडी ज़िले के शिवकलाई’ में पुरातत्त्व खुदाई के दौरान मिले एक ‘कलश से प्राप्त चावल और मिट्टी’ के अध्ययन से पता चला कि ‘थामीराबरानी नदी के तट पर 3200 साल’ पहले एक सभ्यता का विकास हुआ था।
- उल्लेखनीय है कि इसका अध्ययन ‘अमेरिकी बीटा एनालिटिक लैब’ द्वारा कार्बन डेटिंग के माध्यम से किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- इस खोज से ज्ञात होगा कि सिंधु घाटी सभ्यता से पहले भी एक द्रविड़ शहरी/नगरीय सभ्यता मौजूद थी।
- वहाँ के लोग ऐसी भाषा बोलते थे, जो या तो प्रोटो-द्रविड़ियन के सबसे करीब थी या वास्तविक द्रविड़ियन के करीब, जो तमिल है।
- इस खुदाई द्वारा पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का दक्षिण भारत और श्रीलंका के मध्य कुछ भाषाई संबंध हो सकता है।
- कलश से प्राप्त चावल (धान) 1155 ईसा पूर्व के थे, जो शिवगंगा ज़िले के कीलाड़ी में मिले अवशेषों से 600 वर्ष पूर्व के हैं।
- कार्बन डेटिंग के माध्यम से पता चलता है कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व में तमिल लोग व्यापक रूप से साक्षर थे।
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने थूथुकुडी ज़िले के आदिचनल्लूर, शिवगलाई और कोरकई में मिली दुर्लभ कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिये तिरुनेलवेली में एक संग्रहालय के निर्माण की घोषणा की है। इस संग्रहालय का नाम पोरुनाई रखा जाएगा, जो थामीराबरानी नदी का पुराना नाम है।
- ध्यातव्य है कि ‘थामीराबरानी नदी’, राज्य की सबसे छोटी नदी है। यह अंबासमुद्रम तालुका में पश्चिमी घाट की पोथिगई पहाड़ियों से निकलकर तिरुनेलवेली, थूथुकुडी ज़िले में बहती हुई कोरकई (तिरुनेलवेली) में मन्नार की खाड़ी (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है।
- इसके अतिरिक्त, कीझाड़ी में हाल ही में हुए उत्खनन से एक चाँदी का सिक्का भी प्राप्त हुआ है। इस सिक्के पर सूर्य, चंद्रमा, टॉरिन और अन्य ज्यामितीय पैटर्न के प्रतीक बने हुए थे।
- इस सिक्के पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि सिक्का चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का है। जो प्राचीन मौर्य साम्राज्य के समय से भी पहले का है।
- गौरतलब है कि भारत में छठी सदी ईसा पूर्व चाँदी के ‘आहत सिक्कों’ का प्रचलन प्रारंभ हुआ, जिसने मौद्रिक अर्थव्यवस्था को जन्म दिया।
- वहीं भारत में ज्ञात प्राचीनतम सभ्यता ‘सिंधु नदी घाटी सभ्यता’ रही है।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता
- वर्ष 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा (वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत) नामक स्थान पर उत्खनन के पश्चात् भारत की प्राचीनतम सभ्यता का पता लगाया गया।
- कालांतर में हड़प्पा से इतर भौगोलिक क्षेत्रों में भी अन्य पुरास्थलों की खोज की गई, जिनमें प्राप्त बहुतायत स्थल सिंधु नदी के किनारे पर स्थित थे। इसी कारण से इसे ‘सिंधु नदी घाटी सभ्यता’ नाम दिया गया।
- इस सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू और कश्मीर), दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र), पश्चिम में सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) तथा पूर्व में गंगा-यमुना दोआब में आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तरप्रदेश) तक था।
- इस सभ्यता के अधिकांश भवन पक्की इंटों से निर्मित थे तथा यहाँ कि जल-निकास प्रणाली सुनियोजित एवं उन्नत अवस्था में थी।
- साथ ही, यहाँ से विभिन्न प्रकार की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं, जिन पर मानव, पशु तथा वृक्ष आदि की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता में लोथल तथा रंगपुर से चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
कृषि संबंधी प्राचीनतम साक्ष्य
- भारत में प्राचीनतम कृषि और बस्ती के साक्ष्य मेहरगढ़ नामक नव पाषाण कालीन स्थल से प्राप्त हुए हैं।
- वहीं भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र में बेलन घाटी (उत्तरप्रदेश) के आसपास कोल्डिहवा, महागरा, दमदमा तथा चोपनी मांडो प्रमुख स्थल हैं।
- कोल्डिहवा से धान उगाए जाने का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है।
- चोपानी मांडो से मधुमक्खी के छत्ते जैसी संरचना वाली झोपड़ियों एवं साझा चूल्हे के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- मध्यवर्ती क्षेत्र से प्राप्त अन्नागार के साक्ष्य मानव को कृषि उत्पादक के रूप में नहीं, बल्कि खाद्य संग्राहक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।