संदर्भ
‘एयर ऑफ़ एंथ्रोपोसीन’ (Air of the Anthropocene) पहल के अंतर्गत भारत, इथियोपिया एवं ब्रिटेन में वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य जोखिमों को दर्शाने व संप्रेषित करने के लिए कला एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है। इसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता पर जन जागरूकता एवं चर्चा को बढ़ावा देना है।
‘एयर ऑफ़ एंथ्रोपोसीन’ पहल के बारे में
- 'द एयर ऑफ द एंथ्रोपोसीन' पहल शोधकर्ताओं एवं कलाकारों के मध्य एक सहयोगात्मक प्रयास है। इसका प्राथमिक लक्ष्य अदृश्य वायु प्रदूषण को दृश्यमान बनाना है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर प्रकाश डाला जा सके।
- कम लागत वाले वायु प्रदूषण सेंसर के साथ डिजिटल लाइट पेंटिंग तकनीकों उपयोग करके यह पहल तीन देशों भारत, इथियोपिया एवं ब्रिटेन के शहरों में प्रदूषण स्तर का फोटोग्राफिक साक्ष्य प्रदान करती है।
- ‘लाइट पेंटिंग’ तकनीक में प्रदूषित वायु के घनत्व को दर्शाने के लिए डिजिटल लाइट एवं लंबे समय तक एक्सपोजर के माध्यम से तस्वीरें ली जाती हैं।
- इस पद्धति से आकर्षक चित्रों का दृश्यीकरण एवं निर्माण संभव होता है, जो वायु में कणिका तत्व (Particulate Matter : PM2.5) की सांद्रता को दर्शाते हैं जिन्हें आसानी से नहीं देखा जा सकता है।
- इस परियोजना का उपयोग संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM), ब्रिटेन के विदेश, राष्ट्रमंडल एवं विकास कार्यालय (FCDO) और यूएन-हैबिटेट द्वारा वायु प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी किया गया है।
कणिका तत्व (Particulate Matter)
- कणिका तत्व (PM) वायु में निलंबित छोटे ठोस कणों एवं तरल बूंदों का एक जटिल मिश्रण है।
- इसमें धूल, पराग, कालिख, धुआं एवं तरल बूंद जैसे कार्बनिक व अकार्बनिक दोनों प्रकार के कणों को शामिल किया जाता हैं, जो आकार, संरचना और उत्पत्ति में अत्यधिक भिन्न होते हैं।
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- PM10 : ये कण श्वास के साथ अंदर चले जाते है। इनका व्यास प्राय: 10 माइक्रोमीटर और उससे कम होता है। ये कण अपेक्षाकृत बड़े होते हैं और महीन धूल या धुएं के रूप में देखे जा सकते हैं।
- PM 2.5 : ऐसे महीन कणिका तत्व का व्यास प्राय: 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी कम होता है। इन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है।
- विशेष रूप से PM2.5 जैसे कणिका तत्व हृदय संबंधी बीमारियों, स्ट्रोक एवं श्वसन रोगों सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से संबद्ध हैं।
क्या आप जानते हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि वैश्विक आबादी का 99% प्रदूषित वायु में सांस लेता है, जिससे प्रतिवर्ष दुनिया भर में लगभग 7 मिलियन असामयिक मौतें होती हैं।
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