(प्रारम्भिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास)
चर्चा में क्यों?
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने पाइप आधरित पेयजल आपूर्ति प्रणाली के लिये एक मानक प्रारूप तैयार किया है। इस पर दिल्ली जल बोर्ड सहित जल उपयोग करने वाले निकायों से टिप्पणियाँ आमंत्रित की गईं हैं।
पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार के ‘जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को पाइप के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्तमान में ग्रामीण घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति लगभग 18% है। इसको ध्यान में रखते हुए ‘पेयजल आपूर्ति गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली- पाइप आधारित पेयजल आपूर्ति सेवा के लिये आवश्यकताएँ’ नाम से इस प्रारूप को तैयार किया गया है। यह प्रारूप जल स्रोतों से घर तक जलापूर्ति की प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। नीति आयोग के ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (CWMI) के अनुसार, देश में 70% जलापूर्ति दूषित है। एन.जी.ओ. ‘वाटरएड’ के गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है।
प्रारूप के प्रमुख बिंदु
- यह प्रारूप जल आपूर्तिकर्ता के लिये आवश्यकताओं को रेखांकित करता है, जिसमें पाइप आधारित पेयजल आपूर्ति सेवा की स्थापना, संचालन, रखरखाव और सुधार की आवश्यकताओं के बारे में बताया गया है।
- जलापूर्ति की प्रक्रिया जल स्रोत की पहचान के साथ शुरू होती है। ये स्रोत भूजल के साथ-साथ नदियों व जलाशयों जैसे सतही जल स्रोत हो सकते हैं। प्रारूप में इस बात का उल्लेख नहीं है कि जल का उपचार किस प्रकार किया जाए। हालाँकि, यह कहा गया है कि उपचार के बाद पेयजल बी.आई.एस. द्वारा विकसित भारतीय मानक (IS) 10500 के अनुरूप हो।
- आपूर्ति सेवा के लिये एक गुणवत्ता नीति स्थापित करना, आपूर्ति किये गए पानी की गुणवत्ता की निगरानी करना और जल लेखा परीक्षण को भी इसमें शामिल किया गया है।
IS 10500
1. IS 10500 पेयजल में विभिन्न पदार्थों की स्वीकार्य सीमा को रेखांकित करता है, जिसमें भारी धातुएँ जैसे- आर्सेनिक के साथ-साथ पानी का पी.एच. मान (pH value), मैलापन, घुलित ठोस पदार्थ और रंग व गंध जैसे अन्य पैरामीटर शामिल हैं।
2. IS 10500 से गुणवत्ता प्रमाणित जल का सीधे उपभोग किया जा सकता है। यह दर्शाता है कि जल कोलीफॉर्म, कीटनाशक अवशेषों और अन्य रासायनिक संदूषकों से मुक्त है। यह प्रमाण पत्र जल शोधन की प्रक्रिया के स्थान पर जल की अच्छी गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करता है।
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जलापूर्ति की प्रक्रिया
- आपूर्ति प्रणाली की प्रक्रिया पानी के स्रोत की पहचान के साथ शुरू होनी चाहिये। इसके बाद पानी को पीने के स्वीकार्य मानकों के अनुरुप उपचारित किया जाना चाहिये।
- वितरण प्रणाली में संयंत्रों से पानी छोड़े जाने के बाद इसके भंडारण हेतु जलाशय की आवश्यकता होती है। वितरण के किसी भी स्तर पर संदूषण को ख़त्म करने के लिये कीटाणुशोधन सुविधाएँ होनी चाहिये।
- सम्पूर्ण वितरण प्रणाली में प्रवाह के उचित स्तर को बनाए रखने के लिये पर्याप्त मात्रा में दबाव की ज़रूरत होती है। प्रारूप के अनुसार वितरण प्रणाली को स्वचालित मोड में संचालित पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- यह भी उल्लेख किया गया है कि गुणवत्ता मानकों के अनुसरण में प्रत्येक चार घंटे में उपचार संयंत्र से पानी का नमूना लिया जाना चाहिये, जबकि वितरण प्रणाली में पानी के जलाशयों से प्रत्येक आठ घंटे में नमूने को एकत्र किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त घरेलू स्तर पर रैंडम सैम्पलिंग भी की जानी चाहिये।
जलापूर्ति प्रक्रिया के अतिरिक्त प्रारूप में क्या है?
- प्रारूप में पानी के ऑडिट पर दिशा निर्देश को भी शामिल किया गया है, जो उपभोग की गई जल राशि और वितरित किये जाने वाले पानी की मात्रा की गणना है। साथ ही यह भी कहा गया है कि जल लेखा परीक्षण त्रैमासिक आधार पर किया जानी चाहिये।
- नियंत्रण प्रणाली और पानी के ऑडिट के लिये पूरे सिस्टम में वॉल्व, मीटर तथा अन्य मूल्यांकन यंत्र लगाए जाएँ। जल लेखा परीक्षण को मज़बूत करने के लिये घरेलू उपभोक्ताओं और जलापूर्ति निकायों को पानी के मीटर उपलब्ध कराए जाने चाहिये।
- प्रारूप के अनुसार उपभोक्ताओं के बीच सर्वेक्षण करने और सेवा पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने की आवश्यकता है। प्रारूप मानक में जवाबदेही और ग्राहको के संदर्भ में जल उपयोगिता के शीर्ष प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश भी शामिल हैं।
देश में पाइप आधारित जल की गुणवत्ता –
- जल जीवन मिशन के तहत वर्ष 2024 तक देश भर में पाइप द्वारा पयेजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ‘हर घर नल से जल’ के सामने कई चुनौतियाँ हैं। पाइप आधारित जल की गुणवत्ता भारत के अधिकांश हिस्सों में मानकों के अनुसार नहीं है।
- पिछले वर्ष जारी बी.आई.एस. के आधिकारिक जलापूर्ति गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली अंतिम स्थान पर था तथा केवल मुम्बई ही सभी मानकों को पूरा करता था।
- 13 राजधानियों- चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, गुवाहाटी, बेंगलुरु और गांधीनगर के साथ-साथ लखनऊ, जम्मू, जयपुर, देहरादून, चेन्नई और कोलकाता में भी नमूने मानदंडो के अनुरूप नहीं थे।
विश्व स्तर पर जल की गुणवत्ता –
- उच्च विकास सूचकांक वाले देशों में अच्छी गुणवत्ता वाले नल के जल की उपलब्धता है। फिनलैंड, डेनमार्क, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में मीठे जल की झीलों के साथ-साथ ग्लेशियर तक पहुँच आसान है, जो बेहद साफ और खनिज समृद्ध जल उपलब्ध कराते हैं। इस जल को और फिल्टर किया जाता है।
- सिंगापुर और इज़राइल मुख्यतः रीसाइक्लिंग पर निर्भर हैं और यहाँ तक कि सीवेज के जल को भी पीने योग्य बनाते है।
- भारत की तुलना में सीमित जनसंख्या दबाव और सार्वजनिक संसाधन इन देशों को स्वच्छ पेयजल सुनिश्चित करने में सहायक हैं परंतु विश्व के अधिकांश हिस्सों में सार्वजनिक आपूर्ति द्वारा जल की पहुँच एक चुनौती बनी हुई है।
महत्त्व
- प्रारूप मानक इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे पाइप आधारित जलापूर्ति की प्रक्रिया को और अधिक समरूप बनाने में सहायता प्राप्त होगी, विशेष रूप से देश के उन ग्रामीण और अविकसित क्षेत्रों में जहाँ यह प्रक्रिया विभिन्न सरकारी आदेशों और परिपत्रों के अनुसार चलती है।
- वर्तमान में मानक को अनिवार्य किये जाने की उम्मीद नहीं है। प्रारूप के अधिसूचित होने के बाद मानक को लागू करने की योजना बनाने वाले राज्य लाइसेंस ले सकते हैं।