प्रारंभिक परीक्षा
(समसामयिक घटनाक्रम)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप तथा उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे; आपदा और आपदा प्रबंधन)
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संदर्भ
लोकसभा द्वारा ध्वनिमत से आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया गया। इसका उद्देश्य मौजूदा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में संशोधन करना है।
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 के बारे में
- लोक सभा में प्रस्तुत : 1 अगस्त, 2024
- लोक सभा में पारित : 12 दिसंबर, 2024
- प्रमुख लक्ष्य :
- राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर विभिन्न संस्थाओं की भूमिका में स्पष्टता व एकरूपता लाना।
- यह सुनिश्चित करना है कि राज्यों को संकट के समय धन की कमी का सामना न करना पड़े।
- राज्यों द्वारा चिह्नित चुनौतियों का समाधान करना तथा आपदा तैयारी एवं प्रतिक्रिया तंत्र में सुधार करना।
- 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप विकास योजनाओं में आपदा प्रबंधन को मुख्यधारा में लाना।
- महत्त्व : आपदा प्रबंधन राज्य सूची का एक विषय है, इसलिए यह विधेयक राज्यों के अधिकारों एवं सहकारी संघवाद के लिए महत्वपूर्ण है।
- वर्तमान संरचना : आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 निम्नलिखित प्राधिकरणों की स्थापना करता है :
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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) : प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां, योजनाएं और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए जिम्मेदार।
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राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) : मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में, राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए जिम्मेदार।
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जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) : जिला मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में, जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार।
हालिया संशोधित विधेयक में प्रस्तावित प्रमुख प्रावधान
आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी
- वर्तमान स्थिति : वर्तमान अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कार्यकारी समिति और राज्य कार्यकारी समिति के गठन का प्रावधान है जो क्रमश: एनडीएमए और एसडीएमए के कार्यों में सहायता करती हैं।
- इन समितियों का एक प्रमुख कार्य क्रमशः राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करना है।
- एनडीएमए और एसडीएमए संबंधित योजनाओं को मंजूरी देते हैं और उन योजनाओं के कार्यान्वयन को समन्वित करते हैं।
- प्रस्तावित संशोधन : इसके बजाय विधेयक में प्रावधान है कि एनडीएमए और एसडीएमए आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करेंगे।
एन.डी.एम.ए. एवं एस.डी.एम.ए. के कार्य
- वर्तमान स्थिति : अधिनियम के तहत, अपने संबंधित स्तरों पर एनडीएमए और एसडीएमए के प्रमुख कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) सरकारी विभागों की आपदा प्रबंधन योजनाओं की समीक्षा करना।
(ii) स्वयं से निचले प्राधिकरणों के लिए आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी हेतु दिशानिर्देश निर्धारित करना।
(iii) आपदा शमन के लिए धनराशि से संबंधित प्रावधानों का सुझाव देना।
- प्रस्तावित संशोधन : प्रस्तुत विधेयक में इन प्राधिकरणों के लिए कुछ कार्य जोड़े गए हैं जो वे अपने-अपने स्तर पर पूर्ण करेंगे। इनमें निम्नलिखित शामिल है:
(i) मौसम की चरम घटनाओं से उभरते संकट सहित आपदा जोखिमों का समय-समय पर जायज़ा लेना।
(ii) स्वयं से निचले प्राधिकरणों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
(iii) राहत के न्यूनतम मानकों के लिए दिशानिर्देशों का सुझाव देना।
(iv) राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय आपदाओं के लिए डेटाबेस तैयार करना।
- डाटाबेस में निम्नलिखित जानकारी प्रदर्शित की जाएगी :
(i) आपदा जोखिमों के प्रकार और उनकी गंभीरता
(ii) धनराशि का आवंटन और व्यय
(iii) आपदाओं की तैयारी और शमन योजनाएं
- एन.डी.एम.ए. के कार्यों में निम्नलिखित भी शामिल होंगे :
(i) आपदाओं के संबंध में राज्यों की तैयारियों का आकलन करना
(ii) आपदा के बाद उससे संबंधित तैयारियों और प्रतिक्रियाओं को ऑडिट करना
अन्य महत्वपूर्ण संशोधन
- विनियामक अधिकार : प्रस्तुत विधेयक एन.डी.एम.ए. को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से अधिनियम के तहत विनियम बना सकता है।
- शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन : यह विधेयक राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वह राजधानी और नगर निगम वाले शहरों के लिए एक अलग शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बना सकती है।
- शहरी प्राधिकरण की अध्यक्षता नगर निगम आयुक्त द्वारा की जाएगी और जिला कलेक्टर द्वारा उसकी उपाध्यक्षता।
- अन्य सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।
- यह शहरी प्राधिकरण अपने तहत आने वाले क्षेत्र के लिए आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करेगा और उन्हें लागू करेगा।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल का गठन: वर्तमान अधिनियम आपदाओं की स्थिति में विशेष प्रतिक्रिया के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के गठन का प्रावधान करता है।
- प्रस्तुत विधेयक राज्य सरकार को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) गठित करने का अधिकार देता है।
- राज्य सरकार एसडीआरएफ के कार्यों को परिभाषित करेगी और इसके सदस्यों के लिए सेवा की शर्तें निर्धारित करेगी।
- मौजूदा समितियों को वैधानिक दर्जा: प्रस्तुत विधेयक मौजूदा निकायों जैसे राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (NCMC) और उच्च स्तरीय समिति (HLC) को वैधानिक दर्जा प्रदान करता है।
- एन.सी.एम.सी. : एन.सी.एम.सी. एक नोडल निकाय के तौर पर काम करेगा और गंभीर या राष्ट्रीय प्रभाव वाली मुख्य आपदाओं से निपटेगा।
- एन.सी.एम.सी. की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा की जाएगी।
- एच.एल.सी. : आपदा के दौरान राज्य सरकारें एच.एल.सी. को वित्तीय सहायता प्रदान करेंगी।
- यह राष्ट्रीय आपदा शमन कोष से वित्तीय सहायता को मंजूर करेगी।
- आपदा प्रबंधन पर प्रशासनिक नियंत्रण वाले विभाग के मंत्री द्वारा एचएलसी की अध्यक्षता की जाएगी।
- एन.डी.एम.ए. में नियुक्तियां : वर्तमान अधिनियम में प्रावधान है कि केंद्र सरकार एन.डी.एम.ए. को आवश्यकतानुसार अधिकारी, सलाहकार एवं कर्मचारी उपलब्ध कराएगी।
- इसके बजाय विधेयक में कहा गया है कि एन.डी.एम.ए. को केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के साथ अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या व श्रेणी निर्दिष्ट करने का अधिकार है।
- एन.डी.एम.ए. आवश्यकतानुसार विशेषज्ञों और सलाहकारों की नियुक्ति भी कर सकता है।
प्रस्तुत विधेयक की आलोचना के प्रमुख बिंदु
- विधेयक में जलवायु परिवर्तन को शामिल नहीं किया गया है तथा ‘मुआवजा’ शब्द के स्थान पर ‘राहत’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
- यह अति केंद्रीकरण को बढ़ावा देता है और विधेयक में संसद के निर्वाचित सदस्यों की किसी भूमिका का वर्णन नहीं किया गया है।
- विधेयक एन.डी.एम.ए. के रूप में केंद्र को पर्याप्त नियम-निर्माण और विनियामक शक्तियां प्रदान करता है। इससे राज्य के अधिकारों का हनन होगा, जिससे नौकरशाही में अतिव्यापन होगा।
- यह संविधान में निहित सहकारी संघवाद के सिद्धांत को कमजोर करता है।
- वर्तमान विधेयक आपदा राहत को 'न्यायसंगत अधिकार' के रूप में सुनिश्चित करने में विफल रहा है। इसमें परिवर्तन हेतु कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
- चक्रवात मिचांग से बुरी तरह प्रभावित होने के बाद तमिलनाडु को सहायता के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाना पड़ा।
आगे की राह
आपदा किसी एक व्यक्ति या किसी क्षेत्र के लिए नहीं होती है और जब कोई आपदा आती है, तो वह पूरे देश को प्रभावित करती है। इसलिए आपदा प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण और योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन की आवश्यकता है। इस विधेयक को अंतिम रूप से संसद से पारित करने से पहले इस पर और अधिक विचार-विमर्श, बहस और चर्चा की जानी चाहिए।