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गैर संचारी रोगों का बढ़ता बोझ

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध(स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ

हाल ही में बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (BMTC) के एक बस चालक की ड्यूटी के दौरान हृदयाघात (cardiac arrest) से मृत्यु हो गई। इस घटना ने पुनः शहरी क्षेत्रों में बढ़ते गैर संचारी रोगों के बढ़ते बोझ (non-communicable disease burden) पर चर्चा को केंद्र बिंदु पर ला दिया है। 

क्या होते हैं गैर-संचारी रोग (non-communicable disease)

  • गैर-संचारी रोग (NCD) ऐसे रोगों का समूह है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सीधे संचारित नहीं होते है। इन्हे क्रॉनिक रोग(chronic diseases) भी कहते हैं जिनका जोखिम लंबे समय तक होता है । 
    • NCD के अंतर्गत मुख्यतः हृदय संबंधी रोग (दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोग (जैसे दीर्घकालिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग और अस्थमा) और डायबिटीज आदि रोगों को शामिल किया जाता है।
    • इसे "लाइफ़स्टाइल" बीमारी के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि इनमें से अधिकांश रोकथाम योग्य बीमारियाँ हैं। 

प्रमुख आँकड़े 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार NCD से प्रत्येक वर्ष 41 मिलियन लोगों की मृत्यु होती हैं, जो वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों का लगभग 74% है।
    • गैर संचारी रोगों से होने वाली कुल मौतों में सबसे अधिक मौतें हृदय संबंधी रोगों के कारण होती हैं जिससे  प्रतिवर्ष 17.9 मिलियन लोगों की मृत्यु होती हैं, इसके बाद कैंसर (9.3 मिलियन), दीर्घकालिक श्वसन रोग (4.1 मिलियन) और मधुमेह का स्थान है।
  • WHO के अनुसार वर्ष 2008 में 33 मिलियन मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण हुईं जिसके वर्ष 2030 तक 52 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।

भारत की स्थिति 

  • वर्ष 2017 में, यह अनुमान लगाया गया था कि NCD के कारण भारत में लगभग 4.7 मिलियन मौतें हुई हैं, जो कि सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर का 49% है, जिनमें से हृदय रोग (23%), पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियाँ (9%), कैंसर (6%) और मधुमेह (2.4%) प्रमुख कारण थे। 
    • WHO के अनुसार दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में NCD से संबंधित कुल मौतों में से दो-तिहाई से अधिक मौतें भारत में हुईं।
  • पिछले एक दशक में भारत में गैर संचारी रोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है जो मुख्यतः जीवनशैली में बदलाव, अस्वास्थ्यकर खान-पान की आदतें , तंबाकू धूम्रपान और शराब के सेवन में वृद्धि तथा शहरीकरण में वृद्धि के परिणामस्वरूप देखी जा सकती हैं।
  • वर्ष 2021 में, एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 101 मिलियन लोग डायबिटीज एवं 136 मिलियन लोग प्री-डायबिटीज से पीड़ित थे। इसके आलावा, 315 मिलियन लोगों को उच्च रक्तचाप एवं 213 मिलियन लोगों को हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया था (जिसमें धमनियों में वसा जमा हो जाती है और व्यक्तियों को दिल के दौरे तथा स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है) 

जोखिम कारक 

  • जीवनशैली और व्यवहार संबंधी जोखिम कारक : इसके अंतर्गत तंबाकू का सेवन, शारीरिक निष्क्रियता, अस्वास्थ्यकर आहार और शराब का हानिकारक उपयोग जैसे परिवर्तनीय व्यवहार गैर संचारी रोगों के जोखिम को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 
  • मेटाबोलिक जोखिम कारक : इसके अंतर्गत चार प्रमुख कारक चयापचय परिवर्तनों में योगदान करते हैं जो NCD के जोखिम को बढ़ाते हैं:
    • उच्चरक्तचाप(Highblood pressure)
    • अधिक वजन/मोटापा(overweight/obesity)
    • हाइपरग्लाइसेमिया (hyperglycemia)(उच्च रक्त शर्करा स्तर)
    • हाइपरलिपिडेमिया (hyperlipidemia) (रक्त में वसा का उच्च स्तर)
  • NCD के होने वाली मौतों के संदर्भ में मेटाबोलिक कारकों में उच्च रक्तचाप प्रमुख है जिसमें वैश्विक मौतों का लगभग 19% हिस्सा शामिल है इसके बाद बढ़ा हुआ रक्त शर्करा स्तर और अधिक वजन एवं मोटापा है।
  • पर्यावरणीय जोखिम कारक : गैरसंचारी रोगों में कई पर्यावरणीय जोखिम कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।इनमे वायु प्रदूषण प्रमुख है, जो वैश्विक स्तर पर 6.7 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है। 
    • इनमे से लगभग 5.7 मिलियन मौतें NCD के कारण हैं, जिनमें स्ट्रोक(stroke), इस्केमिक हृदय रोग(ischaemic heart disease) क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (chronic obstructive pulmonary disease) और फेफड़ों का कैंसर (lung cancer) शामिल है।

शहरों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ

  • वर्तमान में दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी शहरी इलाकों में निवास करती है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक यह आँकड़ा 70% तक पहुँच जाएगा। 
  • एक अध्ययन के अनुसार वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में प्रीडायबिटीज को छोड़कर, सभी मेटाबोलिक NCD  की दरें ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक हैं। 
  • शहरी गरीब आबादी में वृद्धि : यूएन-हैबिटेट के अनुसार भारत में शहरी आबादी का लगभग 49% झुग्गियों में रहता है, जो शहरों के जटिल सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को रेखांकित करता है।
  • स्वास्थ्य समस्याओं का तिहरा बोझ : वर्तमान में शहरी गरीब समुदायों को स्वास्थ्य संबंधी तिहरे बोझ का सामना करना पड़ता है जिसमें खतरनाक कार्य वातावरण, सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच और स्वास्थ्य संकट के दौरान वित्तीय कमज़ोरी शामिल हैं। 
  • नीतियों का ख़राब कार्यान्वयन : गैर संचारी रोगों से संबंधित  भारत में एक राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग (NCD) निगरानी नीति है, जिसमें समुदाय स्तर पर NCD जोखिमों की जाँच की जाती है, हालाँकि इनका ख़राब क्रियान्वयन अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाता। 
  • लचर स्वास्थ्य सेवाएं : शहरी सीमांत क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता और पहुँच बेहद खराब है। ऐसे में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का विचार पूरी तरह से सफल नहीं हो पाता और आउट ऑफ पॉकेट व्यय (OOP)  में भी निरंतर वृद्धि होती है। 

प्रभाव 

  • NCD मौन (silent) रोग हैं, जिसके लिए नियमित जाँच की आवश्यकता होती है ऐसे में इनके स्क्रीनिंग, और निवारक उपायों की आवश्यकता के बारे में समझ की कमी के कारण आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में वृद्धि के परिणामस्वरूप वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ जाती है और पूरे परिवार की समग्र आजीविका प्रभावित होती है।
  • हाशिए पर पड़े समुदायों में स्वास्थ्य, सामाजिक पहचान, कार्य एवं रोजगार, भाषा, प्रवासन स्थिति और प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों तक पहुँच पर निर्भर करता है।

रोकथाम और नियंत्रण

वैश्विक प्रयास 

  • वैश्विक गैर-संचारी रोग नेटवर्क : वर्ष 2009 में WHO द्वारा वैश्विक गैर-संचारी रोग नेटवर्क (Non-communicable Disease Network)की घोषणा की गई । इसमें कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए दुनिया भर के प्रमुख स्वास्थ्य संगठन और विशेषज्ञ शामिल हैं। इसके  दीर्घकालिक उद्देश्यों में शामिल हैं:
    • सभी के लिए NCD /रोग राष्ट्रीय योजनाएँ
    • तम्बाकू मुक्त विश्व
    • उन्नत जीवनशैली
    • सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणालियाँ
    • सस्ती एवं अच्छी गुणवत्ता वाली दवाओं तथा प्रौद्योगिकियों तक वैश्विक पहुँच 
    • NCD से पीड़ित लोगों के लिए मानवाधिकार 
  • सतत विकास एजेंडा : वर्ष 2030 के लिए सतत विकास एजेंडा गैर-संचारी रोगों को सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में मान्यता देता है। 
    • एजेंडा के हिस्से के रूप में विभिन्न देश की सरकारों ने वर्ष 2030 तक, रोकथाम और उपचार (एसडीजी लक्ष्य 3.4) के माध्यम से गैर-संचारी रोगों से होने वाली समय पूर्व मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करने के लिए महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ विकसित करने की प्रतिबद्धता जताई। 
  • संयुक्त राष्ट्र टास्क फोर्स : संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2013 में गैर-संचारी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण पर संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी टास्क फोर्स की स्थापना की गई 
    • इसका उद्देश्य गैर-संचारी रोगों से निपटने के लिए विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों की सरकारों का समर्थन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में बड़े पैमाने पर कार्रवाई करना था। 
  • WHO वैश्विक कार्य योजना: WHO गैर-संचारी रोगों के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के समन्वय और संवर्धन तथा सतत विकास लक्ष्य लक्ष्य 3.4 की प्राप्ति में एक प्रमुख नेतृत्व की भूमिका निभाता है। इस संदर्भ में वर्ष 2019 में, विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए WHO वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 को वर्ष 2030 तक बढ़ा दिया 
    • इसके अलावा NCD की रोकथाम एवं नियंत्रण पर प्रगति में तेजी लाने के लिए वर्ष 2023 से 2030 तक कार्यान्वयन रोडमैप विकसित करने का आह्वान किया। 

भारत सरकार के प्रयास 

  • राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग निगरानी नीति : इस नीति के अंतर्गत समुदायिक स्तर पर NCD  जोखिमों की जाँच की जाती है, जिसका उद्देश्य NCD देखभाल और उपचार मार्गों के लिए निवारक एवं प्रोत्साहनकारी मार्ग बनाना है।
  • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS): भारत सरकार ने देश भर के सभी राज्यों में प्रमुख गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए NPCDCS कार्यक्रम लागू किया है। 
    • इसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी ढाँचा को मजबूत करना, मानव संसाधन का विकास, स्वास्थ्य संवर्धन पर बल, जनसंख्या आधारित जाँच (आयु 30 वर्ष और उससे अधिक), शीघ्र निदान, प्रबंधन और रेफरल पर ध्यान केंद्रित करना है। 

सुझाव 

  • कारकों की पहचान : NCD  को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण उपाय इन बीमारियों से जुड़े जोखिम कारकों की पहचान करने के साथ ही एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 
  • पर्याप्त निवेश की आवश्यकता : सरकारों को NCD के बेहतर प्रबंधन के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी। NCD  प्रबंधन के अंतर्गत इन बीमारियों का पता लगाना, जाँच और उनका इलाज करना तथा ज़रूरतमंद लोगों को उपशामक देखभाल तक पहुँच प्रदान करना शामिल है। 
  • तकनीक आधारित समाधान : वर्तमान डिजिटल प्रौद्योगिकी और तकनीक-आधारित निगरानी प्रणाली के युग में उच्च रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए 'स्वास्थ्य हमारे हाथों में' की तर्ज पर मापदंडों की वास्तविक समय की निगरानी की जा सकती है।  जिसके निम्नलिखित लाभ हैं -
    • यह जनसंख्या स्तर से साक्ष्य प्रदान करता है जिसका उपयोग महामारी विज्ञान मॉडलिंग (epidemiological modeling) और सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना (Public Health Planning) के लिए किया जा सकता है।
    • यह  आउट ऑफ़ पॉकेट व्यय को सीमित करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल, रेफरल और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में जानकारी के लिए जागरूकता प्रसार भी करता है।
  • सहयोग आधारित समाधान : NCD  जोखिमों को कम करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों,स्वास्थ्य विभागों तथा समुदाय-आधारित संगठनों, विशेषज्ञों और थिंक टैंक को एक मंच पर आकर सभी के लिए स्वस्थ शहर बनाने के विचारों पर चर्चा करनी चाहिए। 
    • इसके अलावा  हाशिए पर पड़ी शहरी बस्तियों के लिए समुदाय-नेतृत्व वाली, समुदाय-आधारित NCD  निगरानी प्रणालियों  के विस्तार पर भी चर्चा की जानी चाहिए।
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