(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन-2 : केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
नाबालिग बच्चों में बलात्कार की बढ़ती प्रवृत्ति एक गंभीर सामाजिक समस्या बनती जा रही है। ऐसी प्रवृत्तियों का उभरना न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती प्रस्तुत करती हैं, बल्कि ये समाज के नैतिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को भी कमजोर करती हैं।
भारत में बच्चों से बलात्कार के बढ़ते मामले
- बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था क्राई (CRY) द्वारा NCRB डेटा के विश्लेषण के अनुसार, 2016 से 2022 तक बच्चों के साथ बलात्कार के मामलों में 96% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसमें सभी प्रकार के प्रतिघात शामिल हैं।
- क्राई द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि 2020 को छोड़कर 2016 से इन बलात्कार की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2021 और 2022 के बीच ऐसे मामलों में 6.9% की वृद्धि हुई है।
- भारतीय दंड संहिता और विशेष और स्थानीय कानूनों के अंतर्गत आने वाले सभी प्रकार के पेनेट्रेटिव प्रतिघातों को शामिल करते हुए विस्तृत जांच में 2016 से 2022 तक कुल वृद्धि 96.8 प्रतिशत है।
- वर्ष 2022 में बाल बलात्कार और पेनेट्रेटिव प्रतिघातों के 38,911 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में 36,381 मामलों दर्ज किए गए थे।
प्रमुख कारक और प्रभाव
- शिक्षा और जागरूकता की कमी : कई मामलों में, बच्चों को यौन शिक्षा के बारे में उचित जानकारी नहीं होती है। यौन शिक्षा के अभाव में बच्चे गलत जानकारियों और मिथकों का शिकार हो जाते हैं।
- स्कूलों और परिवारों में यौन शिक्षा पर खुलकर बात नहीं की जाती, जिससे बच्चे अपने सवालों का जवाब इंटरनेट या गलत संगत से पाने की कोशिश करते हैं।
- सोशल मीडिया और तकनीक का दुरुपयोग : सोशल मीडिया और स्मार्टफोन का बढ़ता उपयोग भी इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर अश्लील सामग्री तक पहुंच आसान हो गई है और इससे बच्चों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- कई मामलों में, बच्चे इस तरह की सामग्री देखकर अस्वस्थ मानसिकता विकसित कर लेते हैं जो बाद में बलात्कार जैसी घटनाओं में बदल जाती है।
- कानूनी दृष्टिकोण : भारत में नाबालिगों द्वारा किए गए अपराधों पर कड़े कानून हैं, लेकिन यह देखा गया है कि कानूनी प्रक्रिया की कमी और लचर क्रियान्वयन के कारण ऐसे अपराधों में वृद्धि हो रही है।
- पीड़ितों और अपराधियों के परिवारों की ओर से रिपोर्टिंग में हिचकिचाहट, न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति और कुछ मामलों में समाज की उदासीनता भी इस समस्या को बढ़ावा देती है।
- नाबालिग अपराधियों को सुधारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है, लेकिन उनके पुनर्वास के प्रयास अक्सर अपर्याप्त होते हैं जिससे वे पुनः अपराध की ओर मुड़ सकते हैं।
भारत में बलात्संग रोकने संबंधित क़ानूनी ढांचा
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 : यह एक लैंगिक तटस्थ कानून है। यह 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चा मानता है और सभी बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है।
- इस अधिनियम में वर्ष 2019 में संशोधन भी किया गया था जिसमें बच्चे की सुरक्षा, संरक्षण और सम्मान सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न अपराधों के लिये सज़ा बढ़ाने के प्रावधान किए गए।
- IPC की धारा 376 (1) एवं BNS की धारा 64 (1) : कम-से-कम 10 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है एवं अर्थदण्ड।
समाधान और रोकथाम
- शिक्षा प्रणाली में व्यापक यौन शिक्षा को शामिल करना आवश्यक है। बच्चों को सही उम्र में यौन शिक्षा देने से वे शरीर के बारे में सही जानकारी पा सकते हैं और गलत धारणाओं से बच सकते हैं।
- सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर ऐसे कार्यक्रम चलाने चाहिए, जो बच्चों और उनके माता-पिता को यौन हिंसा के खतरों और उससे बचने के उपायों के बारे में जानकारी दें।
- कानूनी प्रणाली को भी अधिक सक्षम और संवेदनशील बनाना जरूरी है। बच्चों से जुड़े मामलों में त्वरित और न्यायपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया को मजबूत किया जाना चाहिए। साथ ही अपराधियों के पुनर्वास के लिए भी पर्याप्त संसाधन और योजनाओं की आवश्यकता है, ताकि वे अपराध की दुनिया से बाहर आ सकें।
- हाई-प्रोफाइल मामलों की व्यापक मीडिया कवरेज और एक सहायक वातावरण बनाने में समुदायों और नागरिक समाज संगठनों की सक्रिय भागीदारी द्वारा निभाई गई भूमिका पर जोर देना होगा।
- परिवार और समाज की भूमिका भी अहम है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए, उनकी समस्याओं को समझना चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए।
- बाल यौन शोषण के बारे में खुली बातचीत को प्रोत्साहित करके सामाजिक दबाव और कलंक के डर के बिना पीड़ितों को बोलने और दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिए सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ाना, बाल संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कार्यान्वयन तंत्र और पीड़ितों के लिए पर्याप्त सहायता प्रणाली का निर्माण आवश्यक कदम हैं।
- गरीबी, आजीविका की कमी, सामाजिक मानदंड और प्रणालीगत कमजोरियों जैसे अंतर्निहित सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों को संबोधित करते हुए बच्चों के खिलाफ अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।