(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : आंतरिक सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध) |
संदर्भ
एक इज़रायली अख़बार के अनुसार पिछले वर्ष 7 अक्तूबर को हमास के हमले के दौरान इज़रायली सुरक्षा बलों ने ‘हैनिबल प्रोटोकॉल’ का प्रयोग किया था।
क्या है हैनिबल प्रोटोकॉल
- ‘हैनिबल प्रोटोकॉल’ (Hannibal Protocol) एक विवादास्पद इजरायली सैन्य नीति है जिसका उद्देश्य किसी भी स्थिति में दुश्मन सेनाओं द्वारा इजरायली सैनिकों को बंधक बनाने से रोकना है।
- हैनिबल प्रोटोकॉल को हैनिबल निर्देश या हैनिबल प्रक्रिया के रूप में भी जाना जाता है।
- इसका नामकरण कार्थेजियन जनरल हैनिबल बार्का के नाम पर किया गया है, जिन्होंने शत्रु देश रोम (इटली) के हाथों बंधक बनाए जाने के बजाए स्वयं को मार डाला था।
- यह इज़रायली सैनिकों को अपने साथियों को अगवा होने से बचाने के लिए ‘अधिकतम बल’ प्रयोग की अनुमति देता है।
- इसके तहत कई सैनिक एवं अधिकारी ऐसी कार्रवाई करते हैं जिससे बंधकों (सैन्य कर्मियों) की जान भी जा सकती है। हालाँकि, सेना ने इससे इनकार किया है कि इस प्रोटोकॉल में सैनिकों को अपने साथियों को मारने की अनुमति है।
- इसमें सैनिकों को जंक्शनों, सड़कों, राजमार्गों व अन्य रास्तों पर हमले की अनुमति होती है, जिनका उपयोग दुश्मन अपहृत सैनिक को ले जाने के लिए कर सकता है।
- ये निर्देश सैन्य कमांडरों से मौखिक रूप से साझा किया जाता है। इस प्रोटोकॉल को कभी भी आधिकारिक नीति में शामिल न होने के कारण इसे कभी भी पूरी तरह से प्रकाशित नहीं किया गया।
- संभवतः यह प्रोटोकॉल जिब्रील समझौते के बाद तैयार किया गया था।
जिब्रील समझौता
- यह इज़रायल एवं फिलिस्तीन के मध्य बंधकों के अदला-बदली से संबंधित एक समझौता था।
- इसके तहत लेबनान में पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन-जनरल कमांड (PFLP-GC) द्वारा पकड़े गए तीन इजरायली लोगों के बदले में 1,150 कैदियों को रिहा कर दिया गया।
- इस समझौते से संबंधित बातचीत में लगभग एक वर्ष लग गया। इसे PFLP-GC समूह के नेता अहमद जिब्रील के नाम पर उपनाम दिया गया था।
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- प्रोटोकॉल के पीछे का विचार एक ऐसी प्रक्रिया को लागू करना था, जिसके बारे में सभी सैनिकों को पता हो ताकि किसी भी अपहरण की घटना को रोका जा सके।
- इज़रायल ने वर्ष 2014 में गाजा युद्ध के दौरान हैनिबल प्रोटोकॉल को लागू किया था।
- इसे इजरायली सेना ने ‘ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज’ नाम दिया था। हालाँकि, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस दिन को ‘ब्लैक फ्राइडे’ माना और इजरायल पर युद्ध अपराध का आरोप लगाया।
प्रोटोकॉल की आवश्यकता
- वर्ष 1986 में इजरायली सैन्य कमांडरों ने इस सिद्धांत को तैयार किया था। इस सिद्धांत के पीछे यह विचार था कि किसी सैनिक के अपहरण को शत्रु द्वारा एक रणनीतिक कदम के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- इससे शत्रु को बातचीत की शक्ति मिलने के साथ ही संघर्ष के लिए राष्ट्रीय मनोबल और सार्वजनिक समर्थन दोनों को प्रभावित करने की क्षमता मिल जाती है।
- इज़रायल में बंदी सैनिकों की रिहाई के बदले विरोधी देश के कैदियों की रिहाई को अपमान एवं राष्ट्रीय सम्मान को नुकसान पहुँचाने के रूप में देखा जाता है।
प्रोटोकॉल की आलोचना
- इज़रायल में नागरिक अधिकार एसोसिएशन (ACRI) ने वर्ष 2014 में इस प्रोटोकॉल की आलोचना करते हुए इसे 'अवैध' बताया था। ACRI के अनुसार, यह अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून में भेदभाव के सिद्धांत का मौलिक रूप से उल्लंघन करता है।
- यह युद्ध का एक अवैध तरीका है जो युद्ध कानूनों का उल्लंघन है।
- किसी सैनिक की जान लेने का जोखिम उत्पन्न करने वाला इस प्रोटोकॉल का पहलू अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत विवादास्पद है।
- राज्यों को अपने नागरिकों के जीवन के अधिकार का सम्मान करना चाहिए जो अन्य राज्यों द्वारा बंधक बनाए जाने पर भी समाप्त नहीं होता है।
प्रोटोकॉल का निरस्त होना एवं संशोधित प्रोटोकॉल
- इस प्रोटोकॉल को वर्ष 2016 में तत्कालीन इजरायली सुरक्षा बल ने निरस्त कर दिया था।
- इसका प्रमुख कारण इसमें अंतर्राष्ट्रीय कानून के दो प्रमुख सिद्धांतों का सम्मान करने की आवश्यकता का ‘स्पष्ट रूप से’ उल्लेख नहीं किया गया है :
- सैन्य एवं नागरिक लक्ष्यों के मध्य ‘अंतर या भेद’
- किसी दिए गए खतरे के खिलाफ ‘आनुपातिक’ बल का उपयोग
- उपरोक्त सिद्धांतों को किसी भी भविष्य की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में स्पष्ट रूप से अपनाए जाने पर जोर दिया गया।
- अनुमानत: इजरायली सेना ने वर्ष 2018 में इस प्रोटोकॉल के संशोधित संस्करण में सुरक्षा बलों को किसी भी अपहरण को विफल करने के लिए अपहृत व्यक्ति के जीवन को खतरे में डाले बिना कार्य करने का आदेश दिया गया था।
जेनेवा प्रोटोकॉल
- जिनेवा अभिसमय और उनके अतिरिक्त प्रोटोकॉल ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं जिनमें युद्ध की बर्बरता को सीमित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण नियम शामिल हैं।
- ये प्रोटोकॉल उन लोगों की रक्षा करते हैं जो युद्ध में भाग नहीं लेते (नागरिक, चिकित्सक, सहायता कर्मी) और जो अब लड़ नहीं सकते है (घायल, बीमार व युद्ध बंदी)। जिनेवा अभिसमय ने 12 अगस्त, 2019 को 70 साल पूरे किए।
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अन्य देशों की स्थिति
- विभिन्न देशों की सेनाएँ गोपनीय तरीके से कार्य करती हैं, इसलिए वे दुश्मनों को बहुत ज़्यादा जानकारी न देने के लिए वर्गीकृत ऑपरेशन चलाती हैं।
- ऐसे में अन्य देशों द्वारा ऐसे प्रोटोकॉल के संबंध में जानकारी प्राप्त करना कठिन है।
- कई राष्ट्रों की आधिकारिक घोषणा है कि वे अपहरणकर्ताओं और विशेष रूप से उन समूहों के साथ बातचीत नहीं करते हैं जिन्हें वे ‘आतंकवादी’ मानते हैं।
युद्ध ग्रस्त क्षेत्र में मानवाधिकारों की रक्षा
- कई सशस्त्र संघर्षों में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय एवं मानवाधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन जाता है।
- कुछ परिस्थितियों में इनमें से कुछ उल्लंघन नरसंहार, युद्ध अपराध या मानवता के विरुद्ध अपराध भी हो सकते हैं।
- सैनिकों के अधिकारों की उपेक्षा या उल्लंघन के कारण हैनिबल प्रोटोकॉल की आलोचना की जाती है। युद्ध या संघर्ष के दौरान सैन्य एवं असैन्य नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की प्रबंधन योजना का एक प्रमुख विषय संघर्ष एवं असुरक्षा की स्थितियों में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकना है। यह युद्ध ग्रस्त क्षेत्र में मानवाधिकार सिद्धांतों व अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनी दायित्वों की निगरानी करता है। इसके अन्य विभिन्न कार्य हैं :
- मानवाधिकार उल्लंघनों के बारे में शिकायतों की जांच करना
- भविष्य में इन उल्लंघनों की पहचान करने और उन्हें रोकने के लिए संधि निकायों तथा विशेष प्रक्रियाओं के विशेषज्ञों की सहायता करना
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानून के उल्लंघन को संबोधित करने में राज्यों की सहायता करने के लिए संयुक्त राष्ट्र तथ्य-खोज मिशनों का समर्थन करना