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उच्च समुद्र संधि : समुद्री जैव विविधता संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय प्रयास 

(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने समुद्री जैव विविधता संरक्षण से संबंधित ‘संयुक्त राष्ट्र उच्च समुद्र संधि’ पर हस्ताक्षर करने की मंजूरी दे दी है। आधिकारिक स्तर पर इस संधि को ‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता समझौता’ (United Nations Agreement on Biodiversity Beyond National Jurisdiction : BBNJ Agreement) के रूप में जाना जाता है। 

क्या है उच्च समुद्र (High Seas)

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, उच्च समुद्र को उन महासागरीय क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो अनन्य आर्थिक क्षेत्र, प्रादेशिक समुद्र या किसी देश के आंतरिक जल में शामिल नहीं होते हैं।
    • महासागरों का लगभग 64% हिस्सा ‘उच्च समुद्र’ माना जाता है। 
  • उच्च समुद्र एवं उससे जुड़े संसाधनों पर किसी भी देश का प्रत्यक्ष स्वामित्व या विनियमन नहीं होता है।

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संयुक्त राष्ट्र उच्च समुद्र संधि के बारे में 

  • क्या है : संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि
  • उद्देश्य : देश की सीमाओं से परे महासागर में समुद्री जैव विविधता के दीर्घकालिक संरक्षण पर बढ़ती चिंताओं को दूर करना 
  • कार्यान्वयन : अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समन्वय के माध्यम से समुद्री जैव विविधता के सतत उपयोग के लिए सटीक तंत्र निर्धारित करके 
  • सदस्यता स्थिति : अब तक 91 देशों द्वारा हस्ताक्षर और आठ देशों द्वारा अनुमोदन 
    • यह समझौता 60 देशों द्वारा अनुमोदित किए जाने के 120 दिन बाद लागू होगा।

संयुक्त राष्ट्र उच्च समुद्र संधि के प्रमुख प्रावधान 

संरक्षण प्रयास एवं उद्देश्य 

  • उच्च समुद्र की जैव विविधता के संरक्षण के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी यह पहली संधि है जिसका समर्थन संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा किया गया है।
  • इस संधि में समुद्री पर्यावरण की संरक्षा, जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने, समुद्री पारितंत्र की समग्रता बनाए रखने और समुद्री जैव विविधता के अंतर्निहित मूल्यों का संरक्षण करने के उद्देश्य से 75 अनुच्छेद शामिल हैं।

संधि में शामिल चार प्रमुख विषय 

  • यह संधि मुख्यतः चार विषयों पर केंद्रित है : 
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधन (MGR) और उनकी डिजिटल अनुक्रम जानकारी : इसके अंतर्गत लाभों का उचित व न्यायसंगत बंटवारा शामिल है।
    • क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (ABMT) : इसके अंतर्गत समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) शामिल हैं। 
      • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के माध्यम से यह संधि वर्ष 2030 तक महासागरों के 30% हिस्से का संरक्षण करेगी। यह दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP 15) में अपनाया गया लक्ष्य हैं।
      • विशेषज्ञों के अनुसार, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देशों को प्रतिवर्ष लगभग 10 मिलियन वर्ग किमी. महासागरीय क्षेत्र को समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) के अंतर्गत लाना होगा। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) : इस संधि के प्रावधानों के तहत पक्षकारों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी भी नियोजित गतिविधि के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करना होगा। 
  • क्षमता निर्माण एवं समुद्री प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण : इस समझौते में क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया गया है। इसमें शामिल हैं :  
    • सूचना एवं अनुसंधान परिणामों को साझा करना
    • मैनुअल, दिशानिर्देश एवं मानक विकसित करना और साझा करना
    • समुद्री विज्ञान में सहयोग एवं संस्थागत क्षमता विकसित करना
    • राष्ट्रीय विनियमन या तंत्र को विकसित करना तथा मजबूत करना।

अन्य प्रावधान 

  • इस संधि में प्रदूषणकर्ता-भुगतान सिद्धांत के साथ-साथ विवादों के लिए तंत्र आधारित समाधान के प्रावधान शामिल हैं।
  • यह जलवायु परिवर्तन एवं महासागरीय अम्लीकरण के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए पारितंत्र को लचीला बनाने तथा कार्बन चक्रण सेवाओं सहित पारितंत्र की समग्रता को बनाए रखने और पुनर्स्थापित करने का प्रयास करता है।
  • इस संधि के प्रावधानों में स्वदेशी लोगों एवं स्थानीय समुदायों के अधिकारों व पारंपरिक ज्ञान तथा वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता को भी मान्यता दी गई है।
  • इस संधि में लघु द्वीपीय एवं स्थल-रुद्ध विकासशील देशों के समक्ष उपस्थित विशेष परिस्थितियों पर भी विचार किया गया है।

उच्च समुद्र संधि की आवश्यकता 

वर्तमान ढांचे का अपर्याप्त होना  

  • वर्तमान में मौजूद ढांचा राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत उपयोग को प्रभावी ढंग से सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त नही है।
    • ऐसे में एक अधिक सुसंगत महासागरीय शासन ढांचे की तत्काल आवश्यकता है। 
  • यह संधि मौजूदा संस्थानों, रूपरेखाओं एवं निकायों के साथ सामंजस्य व समन्वय को बढ़ावा देकर नियामक अंतराल को संबोधित करने का प्रयास करती है। 

संयुक्त राष्ट्र का दृष्टिकोण 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार निम्नलिखित कारणों से उच्च सागर संधि वर्तमान समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है : 

सीमाओं से परे सुरक्षा

  • वर्तमान में सभी देश अपने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जलमार्गों के संरक्षण व सतत उपयोग के लिए जिम्मेदार हैं। 
  • इस संधि के लागू होने के बाद उच्च समुद्रों को प्रदूषण एवं असंधारणीय तरीके से मछली पकड़ने की गतिविधियों जैसी प्रवृत्तियों से अतिरिक्त सुरक्षा मिल जाएगी। 

स्वच्छ महासागर

  • वर्तमान मे लाखों टन प्लास्टिक कचरा एवं जहरीला रसायन समुद्री पारितंत्र को प्रभावित कर रहा है, जिससे समुद्री जीव जंतुओं आदि पर अस्तित्व का संकट हैं।
  • नवीनतम सतत विकास लक्ष्य (SDG) रिपोर्ट के अनुसार, 17 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक दुनिया के महासागर में प्रवेश कर गया है, जो समुद्री कूड़े का 85% है। 
    • अनुमान है कि वर्ष 2040 तक यह प्रतिवर्ष दोगुना या तिगुना हो जाएगा।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यदि कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक अधिक हो सकता है।

मछली भंडार का टिकाऊ प्रबंधन

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक मछली भंडार के एक-तिहाई से अधिक का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
  • इस संधि में संस्थागत क्षमता एवं राष्ट्रीय नियामक तंत्र के विकास व क्षेत्रीय समुद्री संगठनों और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों के बीच सहयोग बढ़ाना शामिल है।

तापमान नियंत्रण 

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है तथा तटीय भूमि व जलभृतों का लवणीकरण हो रहा है।
  • इन तात्कालिक चिंताओं को संबोधित करते हुए इस संधि में महासागरीय प्रबंधन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण शामिल है। 

एजेंडा 2030 को साकार करना  

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार नया समझौता महासागर के समक्ष मौजूद खतरों से निपटने और एजेंडा 2030 सहित महासागर संबंधी लक्ष्यों व उद्देश्यों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सतत विकास लक्ष्य (SDG) 14 के अनुसार, वर्ष 2025 तक सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषण कम करना और कम-से-कम समय में मछली स्टॉक को बहाल करने के लिए विज्ञान आधारित प्रबंधन योजनाओं के माध्यम से अति मत्स्य पालन को समाप्त करना आदि शामिल है।

निष्कर्ष 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, इस संधि में किसी उपयुक्त अंतर्राष्ट्रीय प्रवर्तन एजेंसी की चर्चा का अभाव है जो इस संधि द्वारा निर्धारित नियमों की निगरानी व प्रवर्तन कर सके। 
  • इस प्रकार, नई संधि अंतर्राष्ट्रीय महासागरों में मानव उपयोग के विभिन्न पहलुओं को विनियमित करने की एक अच्छी शुरुआत है। हालाँकि, इसकी सफलता के लिए विभिन्न देशों द्वारा इसका शीघ्रता से अनुमोदन एवं बेहतर क्रियान्वयन करना आवश्यक होगा। 
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