(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्न पत्र -3 भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बाद आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी से सुधार हो रहा है। नोमुरा इंडिया का बिज़नेस रिजम्पशन इंडेक्स, जो कि व्यापार के पुनः शुरू होने की गति को दर्शाता है, मार्च 2020 की तालाबंदी के बाद अगस्त 2021 में पहली बार 100 के आँकड़े को पार कर गया। 15 अगस्त को यह 101.2 के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया। हालाँकि, देश की आर्थिक गतिविधियों में आई इस तेज़ी के बावजूद बेरोज़गारी की समस्या में विशेष सुधार नहीं हुआ है।
रोज़गार पर असमान प्रभाव
- कोविड महामारी ने रोज़गार पर असमान प्रभाव डाला है। आई-टी एवं वित्त जैसे क्षेत्रों में उच्च कुशल नौकरियों के लिये वर्क फ्रॉम होम का विकल्प था, परंतु होटल, रेस्तरां, पर्यटन जैसी संपर्क घन सेवाओं में ऐसा संभव नहीं था। अतः ये क्षेत्र अधिक प्रभावित हुए।
- बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटी फर्मों पर अधिक प्रभाव पड़ा है। इसके परिणामस्वरूप रोज़गार गहन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र के पास मजदूरी लागत में कमी करना ही एकमात्र विकल्प था। इससे अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक और दिहाड़ी मजदूर काफी प्रभावित हुए हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, जुलाई 2021 में कुल रोज़गार 399.4 मिलियन था। यह फरवरी 2020 की तुलना में 406 मिलियन कम था। इससे 6.6 मिलियन श्रमिकों के लिये रोज़गार का नुकसान हुआ है। लगभग 10.9 मिलियन श्रमिक श्रम बल से बाहर हो गए हैं तथा अब वे सक्रिय रूप से काम की तलाश नहीं कर रहे हैं।
- इसके अतिरिक्त, निजी क्षेत्र के नौकरीपेशा लोगों के वेतन में कटौती करनी पड़ी है अथवा वे कम घंटे काम कर रहे हैं या अवैतनिक अवकाश पर हैं।
महामारी का रोज़गार पर प्रभाव
- महामारी के कारण बेरोज़गारी के आँकड़ों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, जुलाई से सितंबर 2020 में शहरों में बेरोज़गारी की दर बढ़कर 13.3 प्रतिशत हो गई, जबकि एक वर्ष पूर्व की समान अवधि में यह 8.4 प्रतिशत थी।
- जुलाई से सितंबर 2020 में सबसे अधिक बेरोज़गार 15 से 29 वर्ष के युवा रहे। इस अवधि में इनकी शहरी बेरोज़गारी दर 27.7 प्रतिशत रही।
- जुलाई से सितंबर 2020 में महिलाओं की बेरोज़गारी दर 15 .8 प्रतिशत थी। यह एक वर्ष पूर्व की समान अवधि की तुलना में 9.7 प्रतिशत अधिक है।
रोज़गार में वृद्धि की संभावना
- कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद बाज़ार ने प्रभावी तरीके से वापसी की है। देश में एक बड़ी आबादी के टीकाकरण किये जाने के बाद संपर्क गहन सेवा क्षेत्रों में भी उछाल आने की संभावना है। इससे रोज़गार में भी वृद्धि होगी।
- आर्थिक गतिविधियों में सुधार से माँग में सुधार होगा। परंतु कंपनियाँ पूर्ण पैमाने पर भर्ती करने से पहले माँग के स्थायित्व का आकलन करना चाहेंगी। इससे रोज़गार वृद्धि की प्रक्रिया धीमी एवं क्रमिक रहने की संभावना है।
- रोज़गार में सुधार की गति के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रहने की संभावना है। अनौपचारिक क्षेत्र की तुलना में औपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों की वापसी तीव्र होगी। औपचारिक क्षेत्र के भीतर अधिक माँग वाले क्षेत्रों, जैसे- ई-कॉमर्स, आई. टी., सॉफ्टवेयर और फार्मा आदि में तेज़ी से उछाल की संभावना है, जबकि पारंपरिक क्षेत्र, जैसे- बुनियादी ढाँचा, रियल स्टेट, मनोरंजन आदि के धीमे रहने की संभावना है।
- अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के रोज़गार में वापस लौटने में अधिक समय लग सकता है। श्रमिक स्वयं कोविड महामारी के भय से घरों को छोड़ने में संकोच कर सकते हैं। हालाँकि, टीकाकरण में वृद्धि होने से इनके भय में कमी आएगी।
सरकार द्वारा प्रयास
कोविड महामारी के बाद रोज़गार में आई गिरावट के बाद रोज़गार में वृद्धि के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं –
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना: इस योजना की शुरुआत 1 अक्तूबर 2020 को की गई। इसके अंतर्गत किसी पंजीकृत प्रतिष्ठान में नई नियुक्ति पर 2 वर्ष तक कर्मचारी भविष्य निधि की राशि का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा। इससे प्रतिष्ठान अधिक श्रमिकों को काम पर रखने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
- मनरेगा- सरकार द्वारा महामारी के मद्देनजर 1 अप्रैल, 2020 को मनरेगा की मजदूरी में 20 रुपए की वृद्धि करने का निर्णय लिया गया है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने वित्त वर्ष 2020 -21 के बजट में मनरेगा के लिये 61500 करोड़ रुपए का आवंटन किया था, तथा बाद में इसमें 40000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया गया।
- स्वनिधि योजना (पीएम-स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि)- इस योजना का प्रारंभ 1 जून 2020 को किया गया। इसके अंतर्गत देश के रेहड़ी-पटरी वाले छोटे विक्रेताओं को अपना काम नए सिरे से शुरू करने के लिये 10000 रुपए तक का ऋण दिया जाएगा।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना- सरकार ने इस योजना के अंतर्गत दिये जाने वाले शिशु श्रेणी के ऋणों पर 12 महीनो तक ब्याज में 2 प्रतिशत सब्सिडी देने का निर्णय लिया है। ध्यातव्य है कि शिशु श्रेणी के ऋणों के अंतर्गत लाभार्थियों को 50000 रुपए तक का ऋण बिना किसी गारंटी के प्रदान किया जाता है।
निष्कर्ष
कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद आर्थिक गतिविधियों में सुधार रोज़गार के लिये अच्छा संकेत है, परंतु रोज़गार के स्वरूप को अधिक प्रभावी बनाने के लिये नीति में लंबी अवधि के बदलावों के साथ श्रमिकों के कौशल विकास की भी आवश्यकता है।