(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी प्रमुख ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट (आधार अंकों) की कटौती की है। यह पिछले 4 वर्षों में पहली ब्याज दर कटौती है।
कोविड-19 के दौरान आपातकालीन दर कटौतियों के अतिरिक्त अमेरिकी केंद्रीय बैंक की दर निर्धारण समिति ‘फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC)’ ने 50 बेसिस पॉइंट की कटौती वर्ष 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान की थी।
अमेरिकी फेड की मौद्रिक नीति
भारतीय रिज़र्व बैंक एवं अन्य केंद्रीय बैंकों के समान ही अमेरिकी फेड मौद्रिक नीति का संचालन करता है।
यह मुख्यत: अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता और लागत को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत उपकरणों का उपयोग करके रोजगार एवं मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है।
अमेरिकी फेड का वैधानिक अधिदेश अधिकतम रोजगार और स्थिर कीमतों को बढ़ावा देना है।
इन लक्ष्यों को सामान्यत: अमेरिकी केंद्रीय बैंक के दोहरे अधिदेश के रूप में जाना जाता है।
फेड की मौद्रिक नीति का प्राथमिक उपकरण संघीय निधि दर है जिसमें होने वाले परिवर्तन अन्य ब्याज दरों को प्रभावित करते हैं।
यह घरों एवं व्यवसायों के लिए उधार लेने की लागत के साथ ही व्यापक वित्तीय स्थितियों पर भी प्रभाव डालते हैं।
फेड द्वारा ब्याज दरों में कटौती के कारण
बढ़ती मुद्रास्फीति
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत
बेरोज़गारी में वृद्धि
बंधपत्र (Mortagage), कार ऋण और अन्य ऋण पर कटौती का प्रभाव
फेड की मुख्य उधार दर अमरीकी वित्तीय कंपनियों द्वारा विभिन्न ऋणों पर लोगों से लिए जाने वाले शुल्क को निर्धारित करती हैं।
यद्यपि इस कटौती से उधारकर्ताओं को कुछ राहत मिलेगी किंतु इससे बैंकों द्वारा बचतकर्ताओं को प्रदान किए जाने वाले ब्याज में कमी आएगी।
इस कदम की प्रत्याशा से ही आंशिक रूप से अमेरिका में बंधपत्र (Mortagage) की दरों में पहले से ही थोड़ी गिरावट आई है।
दरों में कटौती का वैश्विक प्रभाव
डॉलर से संबद्ध मुद्राओं वाले केंद्रीय बैंक प्राय: अपने मौदिक दर निर्णयों को फ़ेड से जोड़ते हैं। ऐसे में उन देशों के उधारकर्ताओं पर भी इसका प्रभाव होगा।
अमेरिकी शेयर बाज़ार में निवेश करने वाले विदेशियों पर फेड दर में कटौती एक सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है क्योंकि निम्न ब्याज दरों से शेयर की कीमतों में वृद्धि होती है।
किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दर में कमी आने पर उधार लेना सस्ता हो जाता है जिससे मांग में वृद्धि होने के साथ ही व्यवसायों के विस्तार को प्रोत्साहन मिलता है।
वस्तुओं एवं सेवाओं की बेहतर मांग से मजदूरी (पारिश्रमिक) में वृद्धि होती है जो विकास चक्र को पुनर्जीवित करती है।
फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दर में कमी से अमेरिका में विकास को अधिक प्रोत्साहन मिलेगा जो वैश्विक विकास के लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है।
यह उन परिस्थितियों में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब चीन में रियल एस्टेट संकट के प्रभाव के साथ ही आर्थिक मंदी का संकेत दिख रहा है।
भारत पर प्रभाव
अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती से दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच का अंतर बढ़ सकता है, जिससे भारत जैसे देश करेंसी कैरी ट्रेड के लिए अधिक आकर्षक बन सकते हैं।
वैश्विक निवेशक ऐसे देश से ऋण लेते हैं जहाँ ब्याज दरें निम्न हों और उसको (मुद्रा बदलने के बाद) ऐसे देश में निवेश करते हैं जहाँ ब्याज दरें बहुत उच्च हों, इसे कैरी ट्रेड कहा जाता है।
विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा उनकी विशिष्ट आर्थिक स्थितियों के अनुकूल ब्याज दरों को निर्धारित करने के कारण ऐसे अवसर उत्पन्न होते हैं।
अमेरिका में दर जितनी कम होगी, आर्बिट्रेज (व्यावसायिक मध्यस्थ) का अवसर उतना ही अधिक होगा, जब तक कि अन्य अर्थव्यवस्थाओं में भी ब्याज दर कटौती चक्र शुरू न हो जाए।
अमेरिकी ऋण बाजारों में निम्न रिटर्न से भारत जैसे उभरते इक्विटी बाजार में भी महत्त्वपूर्ण बदलाव सकता है। इससे विदेशी निवेशक आकर्षित हो सकते हैं।
अन्य केंद्रीय बैंकों के समान ही भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भी भविष्य में दर में कटौती की संभावना कुछ सीमा तक अमेरिकी फेड द्वारा दरों में कटौती के निर्णय पर आधारित होती है।
कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय रिज़र्व बैंक ने आखिरी बार मई 2020 में रेपो दर में 40 आधार अंकों की कटौती करके इसे 4% कर दिया था।
उसके बाद से भारत के केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिए रेपो दर में 250 अंकों की बढ़ोतरी करके इसे 6.5% कर दिया है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रास्फीति दर का लक्ष्य 4±2 निर्धारित किया है।