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क्रिप्टोकरेंसी की मौद्रिक और वित्तीय चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास; मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : आर्थिक विकास ; सुरक्षा: धन शोधन से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

  • वर्तमान परिदृश्य में, आर्थिक क्षेत्र में तकनीकी क्रांति का आशय ‘डिजिटल मुद्रा’ से है, इसी डिजिटल मुद्रा की एक अभिव्यक्ति ‘क्रिप्टोकरेंसी’ है। ध्यातव्य है कि क्रिप्टोकरेंसी व्यष्टि अर्थशास्त्र का वह हिस्सा मानी जा रही है जिसे सामान्य रूप से लेन-देन (trade-offs) के लिये प्रयुक्त किया जाता है। लेकिन, इसके चलन से समष्टि अर्थशास्त्र पर क्या प्रभाव हो सकता है, इसे समझना भी अति आवश्यक है।
  • हाल ही में, प्रधानमंत्री ने ‘सिडनी डायलॉग’ के मंच से क्रिप्टोकरेंसी के संचालन और नियंत्रण को गलत हाथों में जाने से रोकने तथा इसके प्रभाव और प्रसार से उपजने वाली चुनौतियों से निपटने के लिये वैश्विक साझेदारी और सामूहिक रणनीतियों को तैयार करने का सुझाव दिया है।

क्रिप्टोकरेंसी की मौद्रिक और वित्तीय चुनौतियाँ

  • ‘डिजिटल मुद्रा’ में वित्तीय नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ त्वरित और सस्ते भुगतान के माध्यम से दक्षता में वृद्धि कर वित्तीय समावेशन को गति देने की संभावनाएँ होती हैं। हालाँकि, यह साइबर हमले, साइबर धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग, पूंजी नियंत्रण के उपायों से अपवंचन और ऊर्जा उपभोग (क्रिप्टो को ‘माइन’ करने के लिये अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता) के संबंध में चिंताओं को बढ़ा सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, निजी तौर पर जारी क्रिप्टोकरेंसी का बड़े पैमाने पर सट्टा संपत्ति (asset) के रूप में उपयोग हो रहा है, इसलिये उपभोक्ता संरक्षण क़ानूनों और नियामक तंत्रों का अद्यतन होना आवश्यक है।

    पूंजी नियंत्रण उपाय : ऐसे उपाय जिनके माध्यम से किसी सरकार, केंद्रीय बैंक या अन्य नियामक निकायों द्वारा देश में या उसके बाहर पूंजी के हस्तांतरण को सीमित या विनियमित किया जाता है। इन नियंत्रणों में कर, शुल्क, कानून, मात्रात्मक प्रतिबंध और बाज़ार-आधारित कारक शामिल हैं।

    • वास्तविकता यह है कि चाहे ‘निजी तौर पर जारी क्रिप्टोकरेंसी’ पर कितनी ही व्यापक बहस क्यों ना हो, पर इसके वृहद् नतीजों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जैसे- यदि भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी सट्टा संपत्तियों के विनिमय का व्यवहार्य माध्यम बनता है तो इसका मौद्रिक, वित्तीय और विनिमय दर की नीतियों के संचालन पर क्या प्रभाव होगा। 
    • वास्तव में, एक निजी डिजिटल मुद्रा यदि फ़िएट मुद्राओं के साथ प्रतिस्पर्धा करती है तो मौद्रिक नीति के निर्धारण को यह किस प्रकार से प्रभावित कर सकती है, इसे लैटिन अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं के ‘डॉलराइज़ेशन’ से समझा जा सकता है।

    लैटिन देशों का डॉलराइजेशन : जैसे-जैसे घरेलू नागरिकों का अपनी मुद्रा से विश्वास उठता गया उन्होंने सुरक्षा और स्थिरता के लिये अमेरिकी डॉलर में लेन-देन करना आरंभ कर दिया। इससे घरेलू मौद्रिक नीति अप्रभावी हो गई क्योंकि केंद्रीय बैंक के लिये नई मुद्रा के प्रचालन के बाद ब्याज दरों का निर्धारण करना और डॉलर में घरेलू मौद्रिक तरलता को नियंत्रित करना संभव नहीं था।

    • अतः बड़े पैमाने पर निजी डिजिटल मुद्राओं को विनिमय के माध्यम के रूप में अपनाने से व्यापार चक्र की आवश्यकताओं और बाह्य आर्थिक चुनौतियों के प्रभावी समाधान के लिये घरेलू मौद्रिक नीति उतनी प्रभावशाली नहीं रह जाएगी।

    क्रिप्टोकरेंसी के विनिमय का माध्यम बनने की संभावनाएँ

    • वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जी-3 देशों (अमेरिका, जापान और जर्मनी) के केंद्रीय बैंकों की बैलेंस शीट में अभूतपूर्व विस्तार से फ़िएट मुद्राओं के मूल्यह्रास (Debasement) का डर बढ़ा है।
    • परिणामस्वरूप, बिटकॉइन के संस्थापकों ने बिटकॉइन की कुल आपूर्ति को संतुलित कर मूल्यह्रास की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया है, जिससे भविष्य में बिटकॉइन विनिमय का एक व्यवहारिक विकल्प बन सके।
    • चूँकि, समग्र आपूर्ति बेलोचदार होती है अतः मांग में उतार-चढ़ाव से कीमत में भी उतार-चढ़ाव होगा, जिससे बिटकॉइन को विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि बिटकॉइन सट्टा संपत्ति (asset) में परिवर्तित हो गई।
    • इस समस्या के समाधान हेतु, ‘स्टेबलकॉइन्स’ को पेश किया गया है, जिसका मूल्य फ़िएट  मुद्रा के बराबर रिज़र्व बनाए रखते हुए अनुमानित किया गया है। इसकी तुलना ‘मुद्रा बोर्ड’ के विनिमय दर व्यवस्था से की जा सकती है।
    • ये ‘स्टेबलकॉइन्स’ तुलनात्मक रूप से अधिक मूल्य स्थिरता प्रदान करके, विनिमय के व्यवहारिक माध्यम का कार्य कर सकते हैं, इसी कारण हाल के वर्षों में इनका प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है। फिर भी यह मुद्रा के प्रतिस्थापन की मात्रा के आधार पर मौद्रिक नीति के लिये चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
    • आई.एम.एफ. के अनुसार, यदि क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग केवल ‘ज़रूरी उद्देश्यों’, जैसे- धन का अंतर्देशीय हस्तांतरण और प्रेषण (remittance) के लिये किया जाता है तो यह मौद्रिक नीति के लिये चुनौती साबित नहीं होगा।

      विनिमय का माध्यम बनने से उत्पन्न चुनौतियाँ

      • विशाल नेटवर्क और अन्य सेवाओं से जुड़े होने के कारण डिजिटल मुद्रा तेज़ी से प्रचलन में आ सकती है। परिणामतः डिजिटल मुद्राओं में विनिमय के बढ़ने से फ़िएट मुद्राओं के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इससे वैश्विक मौद्रिक प्रणाली के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो सकता है।
      • साथ ही, देशों के सामानांतर वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को संचालित कर डिजिटल मुद्राएँ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को अप्रासंगिक बना सकती हैं। इन मुद्राओं की विश्वसनीयता और स्वीकृति यदि बढ़ती है तो इनके जारीकर्ता फ़िएट  मुद्राओं के साथ विवेकशील सामंजस्य को प्राथमिकता नही देंगे।
      • ऐसा स्थिति में स्वतंत्र मौद्रिक नीति संचालित करने वालों पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को ‘डॉलरीकरण’ के समान चुनौतियों का सामना करना होगा।

      राजकोषीय नीतियों के लिये निहितार्थ

      • डिजिटल मुद्राओं में अधिक प्रतिस्थापन होने से, सरकारों को फ़िएट मुद्रा जारी करने पर राजस्व की हानि होगी। साथ ही, क्रिप्टोकरेंसी कर चोरी को बढ़ावा दे कर राजस्व प्राप्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
      • क्रिप्टोकरेंसी में प्रतिस्थापन मौद्रिक नीतियों की दक्षता को कम कर सकता है, साथ ही राजकोषीय नीतियों पर भी इसका सामान प्रभाव पड़ेगा। इससे घरेलू और वैश्विक आर्थिक संकटों का जवाब देने में राजकोषीय नीतियाँ उतनी प्रभावशाली नहीं रहेंगी।
      • महामारी से वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि हुई है। परिणामतः डिजिटल मुद्राओं के प्रचालन का उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा।

      विनिमय दर पर प्रभाव

      • चूँकि, क्रिप्टोकरेंसी का संचालन विदेशों से होता है, इसलिये इनकी मांग चाहे परिचालन के उद्देश्य से हो या फिर सट्टे के, यह पूंजी के बहिर्गमन को उत्प्रेरित करेगा। वहीं, यदि क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग का कार्य देश में शुरू किया जाता है तो यह पूंजी को आकर्षित करने का कार्य करेगा। 
      • इससे पूंजी खाते की अस्थिरता में वृद्धि हो सकती है और यह पूंजी प्रवाह के उपायों को भी  दरकिनार कर सकता है, वास्तव में यह पूंजी खाते की परिवर्तनीयता को बढ़ाते हैं, जिससे उभरते बाज़ारों में ‘नीतिगत त्रिकोणीय द्वंद्व’ (Policy Trilemma) को बढ़ावा मिलता है।
      • इसका सीधा असर मुद्रा बाज़ार पर भी पड़ेगा। जैसा कि वर्ष 2021 की वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट रेखांकित करती है, स्थानीय रुपया-बिटकॉइन बाज़ार, डॉलर-बिटकॉइन बाज़ार और रुपया-डॉलर बाज़ार के बीच एक त्रिकोणीय सामंजस्य होना चाहिये।
      • नतीजतन, रुपया-बिटकॉइन बाज़ारों में बदलाव अनिवार्य रूप से रुपए-डॉलर के बाज़ारों को भी प्रभावित करेगा।

      निष्कर्ष

      क्रिप्टोकरेंसी अपनाने के वृहद् प्रभाव जटिल और परस्पर जुड़े हुए हैं। इसलिए, वर्तमान में सट्टा संपत्ति के रूप में क्रिप्टोकरेंसी के लिये बढ़ते घरेलू आकर्षण और इससे संबंधित नियामक प्रभावों के बारे चिंता उचित है। लेकिन, वास्तविक चुनौतियाँ तब सामने आएगी, जब गैर-समर्थित निजी डिजिटल मुद्राओं को विनिमय के व्यवहार्य माध्यम के रूप में देखा जाएगा। अतः इसके लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यक दिशा-निर्देशों के साथ-साथ उचित नीतियों को तैयार कर उन्हें लागू करने की आवश्यकता है।

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