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स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना में करुणा की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 4: नीतिशास्त्र तथा मानवीय सह-संबंधः मानवीय क्रियाकलापों में नीतिशास्त्र का सार तत्त्व, इसके निर्धारक एवं परिणाम; नीतिशास्त्र के आयाम; निजी व सार्वजनिक संबंधों में नीतिशास्त्र; मूल्य विकसित करने में परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थाओं की भूमिका)

संदर्भ 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ‘करुणा एवं प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है जो प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में करुणा या दयालुता को एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में मान्यता देती है।

स्वास्थ्य देखभाल में करुणा

  • WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस घेब्रेयसस ने वैश्विक स्वास्थ्य में करुणा की भूमिका की खोज का आह्वान किया है जिसमें स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता पर इसके प्रभाव एवं प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से इसके संबंध पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • वर्ष 2021 में 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा और कई अन्य संयुक्त राष्ट्र मंचों में स्वास्थ्य देखभाल में करुणा को वैश्विक बनाने का स्पष्ट आह्वान किया गया है जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में दुनिया करुणा की आवश्यकता के प्रति जागरूक हो रही है।
  • करुणा वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक मुख्य मूल्य है और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में महत्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्तर पर करुणा मानव मस्तिष्क में निहित होती है।

स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना में करुणा की आवश्यकता 

  • मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, दुनिया भर में व्यक्तियों पर अवसाद के व्यापक प्रभाव एवं दीर्घकालिक परिणामों के कारण यह संभावित रूप से ‘अगली महामारी’ बन सकता है। 
    • ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य में करुणा की तत्काल आवश्यकता पर बल देने की आवश्यकता है। 
  • यह पहचानने की आवश्यकता है कि स्वास्थ्य सेवा का अर्थ केवल बीमारियों का उपचार करना नहीं है बल्कि व्यक्तियों के समग्र कल्याण को बढ़ावा देना भी है। 

स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना में करुणा का महत्त्व 

रोगियों पर सकारात्मक प्रभाव 

  • करुणा देखभाल प्राप्तकर्ताओं को शारीरिक एवं मानसिक लाभ प्रदान करती है। यह तनाव वाले रोगों के प्रभावों एवं दर्द की अनुभूति को कम करने के साथ ही प्रतिरक्षा व अंतःस्रावी तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है
    • स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर कम्पैशन एंड अल्ट्रूइज्म रिसर्च एंड एजुकेशन (CCARE) द्वारा किए गए शोध के अनुसार करुणायुक्त या दयालु स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा उपचार किए गए मरीज़ जल्दी ठीक हो जाते हैं जिससे उनके अस्पताल में रहने की अवधि भी कम होती है। 
  • जॉन्स हॉपकिन्स अस्पताल द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि कैंसर रोगियों के ठीक होने के मामले में करुणामय संचार का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 
    • यह देखा गया है कि जब डॉक्टर प्रत्येक मरीज़ के साथ अतिरिक्त 40 सेकंड व्यतीत करते हैं और उनके साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं तो इससे मरीजों की चिंता में काफी कमी आती है और उनके ठीक होने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को लाभ 

  • करुणा या दया रोगियों के साथ स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए भी लाभकारी सिद्ध हुई है। स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों द्वारा करुणा का अभ्यास उन्हें तनावमुक्त करने के साथ ही कार्यस्थल पर उन्हें संतुष्टि प्रदान करता है। 
  • यह उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करने के लिए रोगियों के साथ उनके मजबूत संबंध का निर्माण करता है।
  • करुणा के साथ देखभाल प्रदान करने वाले स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर में बेहतर स्वास्थ्य और पेशेवर संतुष्टि की भावना अधिक होती है।

करुणा, सहानुभूति, समानुभूति में अंतर

  • प्राय: करुणा, सहानुभूति, समानुभूति एवं दया जैसे शब्द एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं। हालाँकि, इनमें अंतर विद्यमान होता है। 
    • सहानुभूति (Sympathy) दया-आधारित एक क्षणिक प्रतिक्रिया है जबकि समानुभूति (Empathy) तब होती है जब लोग दूसरों की समस्याओं को स्वयं की समस्या के रूप में अनुभव करते हैं और इस प्रक्रिया में वे अभिभूत हो जाते हैं।
    • समानुभूति के साथ काम करने वाले स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को रोगियों की पीड़ा को आंतरिक रूप से महसूस करने पर चिंता, थकावट एवं कभी-कभी अवसाद का सामना करना पद सकता है। 
      • साथ ही, अत्यधिक कार्यावधि के कारण तनाव ‘समानुभूति थकान’ का कारण बन सकता है जिससे रोगियों की देखभाल गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
  • दूसरी ओर, करुणा (Compassion) या दयालुता समस्या-समाधान के बारे में है। यह ऐसी स्थिति है जब हम दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा के रूप में महसूस करते हैं और उसके समाधान के लिए कार्य करते हैं।
  • एक दयालु स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के पास रोगियों के साथ मिलकर काम करने की भावनात्मक स्थिरता होगी जो दोनों पक्षों के लिए अनुकूल होगी। वे रोगियों के दर्द को तो अपना समझेंगे किंतु एक अलगाव भी बनाए रखेंगे जो उन्हें अभिभूत नहीं होने देगा। 
  • करुणा स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण अपनाने में मदद करती है जो पेशेवरों को उत्कृष्ट चिकित्सा उपचार प्रदान करने, रोगियों के ठीक होने पर संतुष्टि प्राप्त करने और अपने पेशेवर एवं व्यक्तिगत जीवन की सुरक्षा करने में सहायक होते हैं।

स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में करुणा के समक्ष चुनौतियाँ 

व्यक्तिगत स्तर 

  • समय का दबाव : संगठनात्मक एवं वित्तीय दबाव के कारण लोगों व समुदायों की बात सुनने और करुणामय, उच्च-गुणवत्ता युक्त देखभाल प्रदान करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है। 
  • अधिक काम : कम संसाधनों वाली परिस्थितियों में दीर्घकाल तक काम करना और उसके लिए मान्यता या पुरस्कार न मिलना स्वास्थ्य पेशवरों को हतोत्साहित करता है। 
  • दूरी : पीड़ित लोगों से सामाजिक, सांस्कृतिक या आर्थिक दूरी, पूर्वाग्रह व कलंक का कारण बन सकती है। 
  • अपर्याप्तता की भावना : स्वास्थ्य देखभाल में करुणा की आवश्यकता एवं गंभीरता अधिक हो सकती है और इसे संबोधित करने की व्यक्ति की करुणा की क्षमता अपर्याप्त हो सकती है। 
  • आत्म-करुणा की कमी : जब स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों में आत्म-देखभाल के प्रशिक्षण की कमी होती है तब सहानुभूतिपूर्ण संकट और भावनात्मक दूरी (लगाव से बचना) करुणा को बाधित कर सकते हैं। 

संस्थागत स्तर 

  • असमर्थक नेतृत्व : नैदानिक व व्यावसायिक प्रणाली में करुणा को बढ़ावा देने में नेतृत्वकर्ता आवश्यक हैं, जो करुणा की एक संगठनात्मक संस्कृति को विकसित करने में मदद करते हैं। इस संबंध में नेतृत्वकर्ता की कमी स्वास्थ्य प्रणाली में करुणा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। 
  • नेतृत्व की सीमाएँ : यद्यपि नेतृत्वकर्ता वैज्ञानिक प्रमाणों को स्वीकार करते हैं और करुणा के साथ नेतृत्व की इच्छा रखते हैं, तब भी उन्हें यह नहीं पता होता है कि कैसे नेतृत्व करना है और प्राय: उनमें आत्म-करुणा की कमी होती है। 
  • करुणा को प्राथमिकता न देना : वित्तीय स्थिरता, लाभ या दक्षता जैसे प्रतिस्पर्धी दबावों को करुणा पर प्राथमिकता दी जाती है।

करुणा को स्वास्थ्य अवसंरचना में शामिल करने की रणनीति

  • करुणामय स्वास्थ्य सेवा की अनिवार्य आवश्यकता के बारे में जागरूकता का प्रसार किया जाना चाहिए। 
  • करुणा केवल एक ‘अच्छी बात’ के रूप में नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे बोर्ड बैठक में निर्णय लेने का पैरामीटर होना चाहिए। 
  • करुणामय स्वास्थ्य सेवा; उद्योग के नेतृत्वकर्ताओं, अस्पतालों, विचारकों व स्वास्थ्य सेवा थिंक-टैंक के लिए प्रेरक सिद्धांत होना चाहिए।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को यह बताना होगा कि करुणामय देखभाल क्या है और वे इसे सहजता से कैसे शामिल कर सकते हैं।
    • इसके लिए डॉक्टरों, नर्सों एवं पैरामेडिकल स्टाफ़ के गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण व अनुभवात्मक शिक्षा में निवेश करने की आवश्यकता होगी। 
  • स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हितधारकों को सहानुभूति एवं करुणा के बीच का अंतर भी सिखाया जाना चाहिए।
  • करुणामय स्वास्थ्य सेवा में सभी के लिए समान, सुलभ व गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा शामिल होनी चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंग या जाति कुछ भी हो। 
  • स्वास्थ्य प्रणालियों में करुणा को पूरी तरह से समाहित करने के लिए सभी स्तरों (जैसे- समुदाय, स्वास्थ्य सुविधा, जिला एवं राष्ट्रीय) पर नीति-निर्माण में ध्यान देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष 

करुणा ही वह आधार है जिस पर एक ऐसी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का निर्माण किया जा सकता है जो वास्तव में लोगों पर केंद्रित होने के साथ ही सभी की ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी हो। यह उचित समय है कि सभी के लिए करुणामय स्वास्थ्य देखभाल का वैश्वीकरण किया जाए।

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