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मीडिया के विनियमन की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय)

संदर्भ

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कानूनी मुद्दों के मीडिया कवरेज में मीडिया की जवाबदेही की कमी पर आपत्ति जताई। सी.जे.आई. ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की जमानत पर सुनवाई के परिणाम के बारे में दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी द्वारा मीडिया को सूचित करने के संबंध में की।

मीडिया कवरेज़ का प्रभाव 

  • आपराधिक मामलों के संबंध में जाँच एवं प्रारंभिक परीक्षण पर मीडिया का सर्वाधिक ध्यान होता है। हालाँकि अंतिम परिणाम से इसका कोई महत्त्वपूर्ण संबंध नहीं होता है।
  • पुलिस और मीडिया संस्थानों के मध्य संचार प्राय: मीडिया परीक्षणों की परेशानी का एक प्रारंभिक बिंदु होता है।
  • पुलिस बल द्वारा किसी मामले के विवरण को अनियमित रूप से प्रकट करने और मीडिया द्वारा इस जानकारी पर अत्यधिक निर्भर होने के कारण निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों की सार्वजनिक रूप से अवहेलना की जाती है।
  • इस प्रकार की रिपोर्टिंग बेगुनाही, गरिमा के अधिकार और संदिग्धों, अभियुक्तों, पीड़ितों, गवाहों तथा उनके निकट संबंधियों की गोपनीयता का उल्लंघन करती है।
  • परिणामस्वरूप उन्हें सामाजिक बहिष्कार और रोजगार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अपराध तथा शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।

अप्रभावी मीडिया नीतियाँ

  • यद्यपि पुलिस को एक स्वतंत्र एजेंसी माना जाता है किंतु कभी-कभी पुलिस का दृष्टिकोण राजनीतिक लक्ष्यों से भी प्रेरित होता है। मीडिया के माध्यम से जनमानस में इसकी सहज स्वीकृति इसके विद्वेषपूर्ण प्रभावों को कम करने में अप्रभावी होती है।
  • राजनीतिक राय को आकार देने की मीडिया की क्षमता को देखते हुए कानून प्रवर्तन एजेंसियों पर कभी-कभी जांच के कुछ पहलुओं को प्रकट करने या घटनाओं को सांप्रदायिक या प्रणालीगत के रूप में गलत तरीके से पेश करने का दबाव होता है।

मीडिया नीतियों का विनियमन 

  • रोमिला थापर बनाम भारत संघ वाद (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे वाद के पूरा होने से पूर्व अपनी जांच के विवरण, विशेष रूप से आरोपी के व्यक्तिगत विवरण, का खुलासा न करें।
  • इसके बावजूद गोपनीयता बनाए रखने के लिये पुलिस पर वैधानिक प्रतिबंध दुर्लभ हैं। केरल उन राज्यों में से एक है जहां पुलिस अधिनियम के तहत हिरासत में व्यक्तियों की तस्वीरें को प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं है।
  • अधिकांश राज्यों ने प्रशासनिक परिपत्रों के माध्यम से कमजोर प्रवर्तन प्रणाली वाली अलग-अलग मीडिया नीति दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा- निर्देशों के संबंध में जनता में जानकारी का अभाव है।
  • गृह मंत्रालय ने एक दशक पूर्व एक मीडिया नीति को रेखांकित करते हुए एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया था किंतु यह बहुत उपयोगी नहीं है क्योंकि 'पुलिस' राज्य सूची का विषय है। इस प्रकार यह मुख्यत: राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती है। 
  • किसी भी घटना में गिरफ्तारियों पर मीडिया रिपोर्टों में संदिग्धों के आवास और अन्य विवरण के साथ उनकी तस्वीरों को प्रदर्शित किया जाता है। ऐसे में यह मीडिया विनियमन से संबंधित सरकारी आदेशों की अवहेलना है।

मीडिया ब्रीफिंग का विनियमन 

  • अधिकांश पुलिस विभागों में समर्पित मीडिया सेल नहीं हैं, जो सूचना के आधिकारिक स्रोत बन सकें। यह पुलिस के आधिकारिक तथा अनौपचारिक सूचना के मध्य स्थित रेखा को धुँधला करता है।
  • इसके परिणामस्वरूप पुलिस द्वारा न्यायालय में पेश किये गए साक्ष्य तथा मीडिया को प्रस्तुत जानकारी में काफ़ी भिन्नता होती है। यह वाद में शामिल व्यक्तियों तथा न्याय प्रणाली को हानि पहुँचाती है।
  • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने सर्वोच्च न्यायालय से निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग को विनियमित करने के लिये दिशानिर्देश जारी करने की माँग की है। 

मीडिया की उदासीनता 

  • आपराधिक मामलों की समाचार कवरेज से तब समस्या उत्पन्न हो जाती है जब पत्रकार पुलिस द्वारा प्रकट की गई जानकारी को प्रासंगिक बनाने के कर्तव्य से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं। 
  • मीडिया नैतिकता तथ्यों के सत्यापन से परे है। कई मीडिया रिपोर्ट में व्यक्ति की गिरफ़्तारी की खबर दिखाई जाती है किंतु इसके कारणों (पूछताछ या जाँच या चार्जशीट दायर करने के बाद) को नहीं प्रदर्शित किया जाता है। 
  • न्याय प्रणाली की इन बारीकियों की अनदेखी जनता के मध्य भय तथा व्यवस्था के प्रति अविश्वास को बढ़ावा देता है।

मीडिया विनियमन के अभाव के कारण 

  • वर्तमान में सोशल मीडिया से प्रतिस्पर्धारत होने के कारण न्यूज़रूम की बदलती प्रकृति को कुछ नियमों की अवहेलना के लिये जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • साथ ही, मीडिया संगठनों पर बढ़ते वित्तीय दबाव के कारण अपराध और कानूनी रिपोर्टिंग में विशेषज्ञता रखने वाले पत्रकारों की संख्या कम होती जा रही है।
  • वर्तमान में मीडिया विनियमन सीमित है। साथ ही, प्रिंट और टेलीविजन मीडिया के लिये सरकारी नियमन एक समान नहीं है और इनके प्रवर्तन की गति भी बहुत मंद है। 
  • मीडिया के सरकारी विनियमन से किसी घटना में प्रेस के राजनीतिकरण की संभावना अधिक होती है। 
  • नेशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन जैसे स्व-विनियमनम संस्थान सदस्यता आधारित हैं और आसानी से इन समूहों से बाहर आया जा सकता है। कमजोर नियामक वातावरण रिपोर्टिंग मानदंडों को पत्रकारों और उनके संपादकों के विवेक पर छोड़ देता है।

आगे की राह 

  • वर्तमान में मीडिया विनियमन की बढ़ती माँग के बीच अपने नैतिक दायित्वों के निर्वहन के लिये स्वयं विनियमों को सुनिश्चित करना मीडिया संस्थानों के हित में है।
  • मीडिया की अपार शक्ति न्याय की सार्वजनिक धारणाओं को आकार देने में इसे न्याय प्रणाली का एक करीबी सहयोगी बनाती है। मीडिया को अपनी भूमिका और दायित्व को महसूस करना चाहिये। 
  • प्रशिक्षण और प्रवर्तन तंत्र के साथ एक संरचित एवं अच्छी तरह से विकसित की गई मीडिया नीति, पुलिस प्रशासन व न्यायपालिका के साथ बेहतर तालमेल के लिये आवश्यक है। 
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