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वन हेल्थ दृष्टिकोण : भविष्य का मार्गदर्शक

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की अध्यक्ष और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के परस्पर संबंधित मुद्दों अर्थात वन हेल्थ के समाधान के लिए एक नियामक एजेंसी की आवश्यकता पर बल दिया है।

क्या है वन हेल्थ दृष्टिकोण 

  • वन हेल्थ दृष्टिकोण विभिन्न रोगों से निपटने के लिए मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एकीकृत करता है।
  • इसका उद्देश्य मनुष्यों, जानवरों एवं पारितंत्र के स्वास्थ्य को सतत रूप से संतुलित तथा अनुकूलित करना है।
  • इस दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्यों, घरेलू व जंगली जानवरों, पौधों तथा व्यापक पर्यावरण (पारितंत्र सहित) का स्वास्थ्य निकटता से अंतर्संबंधित होने के साथ ही एक-दूसरे पर निर्भर है।

One-Health-Approach

  • यह दृष्टिकोण स्वास्थ्य, भोजन, पानी, ऊर्जा व पर्यावरण जैसे सभी विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से संक्रामक रोगों, रोगाणुरोधी प्रतिरोध तथा खाद्य सुरक्षा जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने और पारितंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में योगदान देता है।
  • इस दृष्टिकोण को समुदाय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तरों पर लागू किया जा सकता है जो साझा एवं प्रभावी शासन, संचार, सहयोग तथा समन्वय पर निर्भर है।

One-Health-Action-Group

वन हेल्थ दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • अध्ययनों के अनुसार मौजूदा एवं उभरते संक्रामक रोगों में से दो-तिहाई से अधिक जूनोटिक (जानवरों से मनुष्यों में स्थानांतरित होने वाले) रोग हैं। 
    • इसके विपरीत एंथ्रोपोज़ूनोटिक संक्रमण मनुष्यों से जानवरों में स्थानांतरित होता है।
  • हाल के वर्षों में निपाह वायरस, इबोला, सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) और एवियन इन्फ्लूएंजा जैसे संक्रमण ​​के सीमा पारीय प्रभाव ने पर्यावरण, पशु व मानव स्वास्थ्य के बीच संबंधों की आवश्यकता को मज़बूत किया है।
  • डॉ. सौम्य स्वामीनाथन ने जूनोटिक रोगों, रोगाणुरोधी प्रतिरोध और खाद्य सुरक्षा जैसी परस्पर चुनौतियों का समाधान करने के लिए पशु एवं मानव स्वास्थ्य पर एकीकृत डाटा की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • वर्ष 1856 में आधुनिक पैथोलॉजी के जनक रुडोल्फ विरचो ने इस बात पर बल दिया था कि पशु एवं मानव चिकित्सा के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं है। कोविड-19 महामारी के बाद से यह अवधारणा अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। 

वन हेल्थ दृष्टिकोण के लाभ 

  • मनुष्यों, पशुओं एवं पर्यावरण के परस्पर संबंधों से निर्मित वन हेल्थ दृष्टिकोण रोग नियंत्रण के पूरे स्पेक्ट्रम का समाधान करने में मदद करके वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में योगदान देता है।
  • यह भविष्य की महामारियों की रोकथाम में सहायक होने के साथ ही अधिक लचीली एवं न्यायसंगत प्रणालियों, वातावरण, अर्थव्यवस्थाओं एवं समाजों के निर्माण में भी सहायक होगा।
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों की आवश्यकताओं को कम करता है। साथ ही, इससे शोधकर्ताओं को ऐसे निर्णय लेने में सहायता मिलती है जो लचीली एवं टिकाऊ नीतियों के विकास में सहायक होते हैं।

वैश्विक सहयोग एवं भागीदारी 

जी-20 स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन ब्राज़ील

  • वर्ष 2024 में G-20 ब्राज़ील स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में वन हेल्थ पर G-20 स्वास्थ्य मंत्रिस्तरीय घोषणा का समर्थन किया गया। 
  • इसका उद्देश्य मानव, पशु, पौधे एवं पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित स्वास्थ्य चुनौतियों का एक समग्र ढांचे के माध्यम से सामना करना है। 
  • यह घोषणा वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं को वन हेल्थ तथा अधिक टिकाऊ भविष्य की दिशा में कार्य करने के लिए एक ढांचा प्रदान करती हैं।

G-7 स्वास्थ्य मंत्रियों के मध्य वार्ता 

  • G-7 स्वास्थ्य मंत्रियों के मध्य वार्ता जटिल वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों, विशेषकर रोगाणुरोधी प्रतिरोध एवं महामारी की तैयारियों को संबोधित करने में वन हेल्थ दृष्टिकोण के महत्व पर बल  देती है। 
    • यह मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य क्षेत्रों को एकीकृत करता है। 
  • यह भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए वन हेल्थ दृष्टिकोण एवं वन हेल्थ संयुक्त कार्य योजना का समर्थन करता है। 
  • G-7 छह एक्शन ट्रैक की रूपरेखा प्रस्तुत करता है जिन्हें देशों द्वारा वन हेल्थ दृष्टिकोण को लागू करने के लिए अपनाया का सकता है। इनमें शामिल हैं:
    • स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने के लिए वन हेल्थ क्षमताओं को मज़बूत करना
    • उभरती जूनोटिक महामारी के जोखिम को कम करना
    • स्थानिक रोगों, जूनोटिक रोगों, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों एवं वेक्टर जनित रोगों को नियंत्रित व समाप्त करना
    • खाद्य सुरक्षा जोखिमों के आकलन, प्रबंधन एवं संचार को मज़बूत करना
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध की महामारी पर अंकुश लगाना
    • पर्यावरण को वन हेल्थ में एकीकृत करना

वन हेल्थ पर दिल्ली घोषणापत्र

  • भारत ने G-20 अध्यक्षता के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य एवं स्थायित्व को एकजुट करने में वन हेल्थ के महत्व को रेखांकित किया है। 
  • सितंबर 2023 में G-20 के दौरान नई दिल्ली घोषणा में वन हेल्थ दृष्टिकोण पर मुख्य रूप से ध्यान देने के साथ स्वास्थ्य प्रणालियों एवं तैयारियों को मज़बूत करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता पर सहमति व्यक्त की गयी है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की घोषणा 

  • सितंबर 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की घोषणा का उद्देश्य वैश्विक महामारी की रोकथाम, उसके लिए तैयारी और उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया को मज़बूत करना था। 
  • इस घोषणा पत्र में मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर संबंध को मान्यता दी गई है और स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिए सभी क्षेत्रों में समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है।
  • पशु, मानव एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य की परस्पर निर्भरता को स्वीकार करते हुए यह घोषणापत्र भविष्य की महामारियों की रोकथाम के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण के लिए आधार तैयार करता है।

वन हेल्थ पहल पर आसियान घोषणा

  • आसियान नेताओं ने इस क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिए मई 2023 में वन हेल्थ दृष्टिकोण पहल की घोषणा की। 
  • यह घोषणा मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य एवं वनस्पति स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण एजेंसियों के साथ सहयोग व समन्वय पर बल देती है। 
  • यह सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों को शामिल करते हुए एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार करता है।

वन हेल्थ पर भारत का दृष्टिकोण

राष्ट्रीय वन हेल्थ मिशन 

  • जुलाई 2022 में प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सलाहकार परिषद ने देश में सभी मौजूदा वन हेल्थ गतिविधियों के समन्वय, समर्थन व एकीकरण के लिए ‘वन हेल्थ मिशन’ के निर्माण की सिफारिश की थी।
  • इसी सिफारिश के अनुरूप ‘राष्ट्रीय वन हेल्थ मिशन’ को मानव, पशु, पौधे एवं पर्यावरण क्षेत्रों में देश के लिए एकीकृत रोग रोकथाम के साथ-साथ नियंत्रण व महामारी तैयारी प्रणालियों के लिए विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को एक साथ लाने के लिए लॉन्च किया गया था।
  • इसके प्रमुख स्तंभों में शामिल हैं : 
    • मानव, पशु एवं वन्यजीव आवासों में एकीकृत निगरानी को सक्षम करने वाली प्रौद्योगिकी
    • बीमारियों के प्रसार/महामारियों ​​की जांच के लिए जैव सुरक्षा स्तर-3 प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क
    • संबंधित क्षेत्रों में एकीकृत अनुसंधान एवं विकास 

वैश्विक साझेदारी

भारत का ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण त्रिपक्षीय-प्लस गठबंधन के बीच समझौते पर आधारित है जिसमें संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम शामिल हैं। इसे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और विश्व बैंक के ‘वन वर्ल्ड, वन हेल्थ’ पहल के तहत समर्थन प्राप्त है।

वन हेल्थ अवसंरचना विकास एवं योजनाएँ

  • भारत ने 1980 के दशक में ही जूनोसिस पर एक राष्ट्रीय स्थायी समिति की स्थापना की थी। नागपुर में ‘वन हेल्थ केंद्र’ की भी स्थापना की गयी है। 
  • भारत के पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने वर्ष 2015 से पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।  
    • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत खुरपका और मुंहपका रोग तथा ब्रुसेलोसिस नियंत्रण के लिए 13,343 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं। 
  • पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और भारतीय उद्योग परिसंघ के सहयोग से वन हेल्थ सपोर्ट यूनिट की स्थापना की है। 

क्षमता निर्माण पर बल 

  • केंद्र सरकार पशु चिकित्सकों के लिए क्षमता निर्माण और पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली को उन्नत करने के उद्देश्य से पशु रोग नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों के लिए राज्यों को सहायता प्रदान कर रही है। 
    • इसके तहत पशुधन एवं मुर्गी पालन जैसे क्षेत्रों में प्रसारित होने वाले रोगों के टीकाकरण पर ध्यान दिया गया है। 
    • इसके लिए राज्य जैविक उत्पादन इकाइयों और रोग निदान प्रयोगशालाओं को सहायता प्रदान की जाएगी।
  • भारत में मनुष्यों में रेबीज संक्रमण के 97% मामले कुत्तों के कारण होते हैं। पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने कुत्तों से होने वाले रेबीज को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ भागीदारी की है। 
  • इस पहल का उद्देश्य देश को रेबीज से मुक्त बनाने के लिए कुत्तों का निरंतर टीकाकरण और सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ावा देना है।

वन हेल्थ प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ

  • पशु चिकित्सकों की कमी
  • मानव एवं पशु स्वास्थ्य संस्थानों के बीच सूचना साझाकरण का अभाव
  • बूचड़खानों, वितरण सुविधाओं व खुदरा सुविधाओं में खाद्य सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान न देना  

सुझाव 

  • मौजूदा पशु स्वास्थ्य एवं रोग निगरानी प्रणालियों का समेकन
  • अनौपचारिक बूचड़खाने के संचालन के लिए सर्वोत्तम प्रक्रिया दिशानिर्देश विकसित करना
  • ग्राम स्तर तक ‘वन हेल्थ’ को संचालित करने के लिए तंत्र विकसित करना 
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