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सोशल वैक्सीन की सहायता से सुगम भविष्य की राह

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-2 : सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप; प्रश्नपत्र-3 : समावेशी विकास; प्रश्नपत्र- 4 : अभिवृत्ति-आचरण एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इसका प्रभाव)

पृष्ठभूमि

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिये लॉकडाउन और सामाजिक दूरी (Social Distancing) को वर्तमान समय में सबसे उपयुक्त ‘सोशल वैक्सीन’ बताया है।

क्या है सोशल वैक्सीन ?

  • सोशल वैक्सीन वस्तुतः आपदा या आपात स्थितियों में सामाजिक एवं व्यावहारिक उपायों की एक श्रृंखला है। सरकार द्वारा इन उपायों का प्रयोग सामाजिक गतिशीलता (Social Mobilization) के माध्यम से स्वास्थ्यकर व्यवहारों (Healthy Practices) को प्रोत्साहित करने के लिये किया जाता है।
  • सोशल वैक्सीन के माध्यम से लोगों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है। साथ ही, इसके माध्यम से सांस्कृतिक और मनोवृत्ति (Attitude) सम्बंधी बाधाओं को भी समाप्त किया जाता है।
  • सोशल वैक्सीन में सूचना, शिक्षा व संचार के ज़रिये सार्वजानिक जागरूकता का प्रसार किया जाता है।

सोशल वैक्सीन के लाभ

  • इससे लोग अस्वास्थ्यकर व्यवहारों (Unhealthy Practices) को छोड़ने या त्यागने के लिये प्रतिबद्ध होते हैं।
  • लोगों में रोगों या महामारियों से लड़ने के लिये क्षमताओं का विकास (Capacity Building) होता है।
  • इसके माध्यम से सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।

एचआईवी/एड्स महामरी में सोशल वैक्सीन का प्रयोग

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1981 में एड्स रोग तेज़ी के साथ फैलना शुरू हुआ था, फलस्वरूप वर्ष 1985 में इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया।
  • इस महामारी से निपटने के लिये, उस समय व्यक्तियों, समुदायों, सामाजिक, धार्मिक एवं स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यम से व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए गए, ताकि इस बीमारी के प्रसार पर रोक लगाई जा सके। उदहारण के तौर पर, चर्च के माध्यम से धर्म को आधार बनाकर संदेश प्रसारित किये गए।

वर्तमान महामारी में सोशल वैक्सीन का प्रयोग कैसे किया जा सकता है?

  • सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक दूरी को अपनाया जाए।
  • सौ प्रतिशत लोगों द्वारा भीड़ वाले क्षेत्रों में मास्क का प्रयोग किया जाना चाहिये। साथ ही, निरंतर सैनिटाइज़ेशन का प्रयोग करते रहना चाहिये।
  • लोकप्रिय व्यक्तियों के माध्यम से लोगों के व्यवहार में शीघ्र परिवर्तन आता है। इसीलिये, ऐसे लोगों के नेतृत्व में ही संदेशों को प्रसारित किया जाना चाहिये।
  • जनता से स्पष्ट सम्वाद स्थापित करने के साथ ही उचित मात्रा में चिकित्सा एवं खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • सम्बंधित उद्यागों एवं छोटे व मध्यम वर्ग के व्यवसायों को आर्थिक सहायता प्रदान करके व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE), सैनिटाइज़ेशन, मास्क और अन्य चिकित्सा उपकरणों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

चुनौतियाँ  एवं  सुझाव

  • ध्यातव्य है कि सोशल वैक्सीन के उपकरणों को लॉकडाउन हटाने या उसमें रियायत देने से पहले ही स्थापित कर देना उचित रहता है, अन्यथा बाद में इसका अधिक महत्त्व नहीं रह जाता है।
  • भारत की जनसंख्या के अनुसार रोग-परीक्षण की दर अन्य देशों की अपेक्षा धीमी है, इसे युद्ध स्तर पर बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • चिकित्सा सहायता के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक सहायता पर भी ध्यान दिये जाने की आवयशकता है।
  • महामारी का राजनीतिकरण भी एक नई चुनौती के रूप में सामने आ रहा है, जिसे समय रहते नियंत्रित करना आवयशक है; अन्यथा यह समस्या भविष्य में देश की राजनीतिक स्थिरता के लिये खतरा उत्पन्न कर देगी।

क्या करना सर्वोपयुक्त होगा ?

उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी का सामना वर्तमान में विश्व की सर्वप्रमुख आर्थिक शक्तियाँ एवं स्थापित स्वास्थ्य प्रणालियाँ भी नहीं कर पा रही हैं; साथ ही, अभी तक इसका कोई टीका (Vaccine) भी नहीं बनाया जा सका है, इसीलिये लॉकडाउन और सामाजिक दूरी ही इससे बचाव के लिये सबसे उपयुक्त  ‘सोशल वैक्सीन’ के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं। 

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