New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 March, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 30 March, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 March, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 30 March, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

पेगासस मामला: निजता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न )
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3; संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती तथा इसके उपयोग से उत्पन्न अन्य मुद्दों से संबंधित)

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने पेगासस जासूसी मामले में निष्पक्ष जाँच हेतु शीर्ष न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रवींद्रन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की है। इस मामले में केंद्र सरकार पर नागरिकों की निजता से संबंधित डाटा की निगरानी के लिये इज़रायली स्पाईवेयर पेगासस के उपयोग का आरोप है।

समिति का गठन की आवश्यकता

  • मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन पर आधारित मामलों में निर्णय तथ्यों पर आधारित होते हैं, ऐसे में इन तथ्यों को निर्धारित करने का कार्य अक्सर समितियों को सौंपा जाता है, जो अदालत के एजेंट के रूप में कार्य करती हैं।
  • सरकार ने पेगासस के उपयोग से संबंधित वैश्विक मीडिया जाँच को खारिज कर दिया है और इस संदर्भ में सरकार ने कोई तथ्य भी प्रस्तुत नहीं किया है। अतः अदालत को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करने तथा इस संदर्भ में उपयुक्त आदेश पारित करने हेतु व्यापक तथ्य-खोज  के लिये एक समिति की आवश्यकता थी।
  • समिति तथ्य-खोज दल की सहायता से ज़मीनी रिपोर्ट तैयार कर अदालत को सूचित करेगी।
  • समिति द्वारा रिपोर्ट देने के पश्चात् न्यायालय यह निर्धारित कर सकता है कि यदि सरकार ने वास्तव में पेगासस का उपयोग किया है, तो क्या इसे कानून के तहत उचित ठहराया जा सकता है, यदि नहीं, तो याचिकाकर्ताओं को क्या राहत दी जानी चाहिये।

समिति को संदर्भित कार्य

  • सर्वोच्च न्यायालय ने समिति को निम्नलिखित 7 बिंदुओं के आधार पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा है-
    • क्या पेगासस का इस्तेमाल फोन या भारतीय नागरिकों द्वारा प्रयुक्त अन्य उपकरणों में संगृहीत डाटा, गुप्त बातचीत की जानकारी या किसी अन्य उद्देश्य के लिये किया गया था। 
    • इसके पीड़ितों या इससे प्रभावित व्यक्तियों का विवरण।
    • पेगासस का उपयोग करके भारतीयों के व्हाट्सएप खातों की हैकिंग पर वर्ष 2019 की रिपोर्ट के बाद भारत संघ द्वारा क्या कार्रवाई की गई?
    • क्या पेगासस को भारत संघ या किसी राज्य सरकार या किसी केंद्रीय या राज्य एजेंसी द्वारा भारतीय नागरिकों के खिलाफ उपयोग के लिये अधिग्रहित किया गया था
    • किस कानून, नियम, प्रोटोकॉल या कानूनी प्रक्रिया के तहत किसी सरकारी एजेंसी ने भारतीय नागरिकों के लिये पेगासस का प्रयोग किया है। 
    • यदि किसी घरेलू संस्था या व्यक्ति ने भारतीय नागरिकों पर स्पाइवेयर का उपयोग किया है तो क्या ऐसा प्रयोग अधिकृत है।
    • कोई अन्य मामला या पहलू, जो उपरोक्त से जुड़ा है या आकस्मिक है, जिसे समिति जाँच के लिये उचित समझे।
    • अदालत ने समिति से साइबर सुरक्षा पर कानूनी और नीतिगत ढाँचे पर सिफारिशें प्रस्तुत करने को भी कहा है ताकि नागरिकों के निजता के अधिकार का संरक्षण हो सके।

      सरकार का पक्ष

      • सरकार का तर्क है कि चूँकि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले शामिल हैं, अतः सरकार इस मामले में कोई हलफनामा दाखिल नहीं करेगी। लेकिन, सरकार तकनीकी विशेषज्ञों की एक समिति के समक्ष सभी जानकारियों का खुलासा करने को तैयार होगी।
      • हालाँकि, सरकार ने स्वयं जाँच समिति को नियुक्त करने की मांग की थी परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इसे खारिज़ कर दिया था।

      न्यायालय का रुख़

      • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा जाँच समिति को नियुक्त करने की मांग को इस आधार पर खारिज़ कर दिया कि यह ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत’ का उल्लंघन है।
      •  न्यायालय का तर्क है कि ‘न्याय न केवल होना चाहिये, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिये’। अत: इस संदर्भ में जाँच सर्वोच्च न्यायालय के तत्त्वावधान में ही की जाएगी
      • न्यायालय ने पुट्टास्वामी वाद (2017) को दोहराते हुए कहा कि ‘निजता का अधिकार’ मानव जीवन के अस्तित्व की तरह ही पवित्र है तथा मानव के सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक है।
      • किसी भी सरकार या बाहरी एजेंसी द्वारा किसी व्यक्ति की निगरानी या जासूसी उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
      • न्यायालय ने यह भी कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर सरकार नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन नहीं कर सकती और न ही सरकार न्यायिक समीक्षा के विरुद्ध किसी कानून को पारित ही कर सकती है।

        आगे की राह 

        • न्यायालय द्वारा इस मामले में समिति का गठन नागरिकों के मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका और उत्तरदायित्वों को स्पष्ट करता है।
        • न्यायालय की ‘मूल अधिकारों की रक्षा के प्रति मूल भावना’ इस बात पर निर्भर करेगी कि गठित समिति इस मुद्दे को किस प्रकार संबोधित करती है।
        • सरकार को भी इस मुद्दे पर तथ्यों के साथ स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता है और उचित अधिनियमों के माध्यम से ही राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिये।
        • सरकार द्वारा व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक को शीघ्र अधिनियमित किये जाने की आवश्यकता है ताकि ‘निजता के अधिकार’ को प्रभावी रूप से संरक्षित किया जा सके।  

        निष्कर्ष

        भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम मूल अधिकार का मुद्दा हमेशा से विवादास्पद रहा है, ऐसे में इस मुद्दे को उचित अधिनियमों तथा पारदर्शिता के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिये ताकि नागरिकों का सरकार पर भरोसा बना रहे। साथ ही, विधायिका एवं न्यायपालिका को भी शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का पालन करना चाहिये।

        « »
        • SUN
        • MON
        • TUE
        • WED
        • THU
        • FRI
        • SAT
        Have any Query?

        Our support team will be happy to assist you!

        OR