(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ)
संदर्भ
भारत में आकाशीय बिजली गिरने (Lightning Strikes) से होने वाली मृत्यु एक बड़ी समस्या है। हाल ही में, प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आकाशीय बिजली से अप्रैल, 2019 से मार्च, 2020 के बीच भारत में लगभग 1,771 मौतें हुई हैं। इससे होने वाली मौतों में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर है। साथ ही, कुल होने वाली मौतों में 60% उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, ओडिशा और झारखण्ड में हुई हैं।
आकाशीय बिजली
- आकाशीय बिजली उच्च वोल्टेज और बहुत कम अवधि के लिये बादल और स्थल के बीच या बादल के भीतर प्राकृतिक रूप से विद्युत निस्सरण (Eelectrical Discharge) की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में तीव्र प्रकाश, गरज, चमक और आवाज़ होती है।
- इंटर क्लाउड (अंतर मेघ) या इंट्रा क्लाउड (अंतरा मेघ- IC) आकाशीय बिजली हानिरहित होती हैं, जबकि क्लाउड टू ग्राउंड (CG: बादल से पृथ्वी तक आने वाली) आकाशीय बिजली 'हाई इलेक्ट्रिक वोल्टेज और इलेक्ट्रिक करंट' के कारण हानिकारक होती है।
आकाशीय बिजली की प्रक्रिया
- आकाशीय बिजली लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर नमीयुक्त बादलों से उत्पन्न होती है। आमतौर पर इन बादलों का आधार पृथ्वी की सतह से 1-2 किमी. की ऊँचाई पर और अधिकतम 12-13 किमी. की ऊँचाई पर होता है। अधिकतम ऊँचाई पर तापमान -35 से -45 °C के मध्य होता है।
- इन बादलों में जलवाष्प जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ती है, वैसे-वैसे तापमान कम होने के कारण यह संघनित हो जाती है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊष्मा जल के अणुओं को और ऊपर धकेल देती है।
- जैसे ही ये अणु 00C के पार पहुँचते हैं, जल की बूंदें बर्फ के छोटे-छोटे क्रिस्टलों में बदल जाती हैं। जैसे-जैसे ये क्रिस्टल ऊपर की ओर जाते हैं, उनके द्रव्यमान में वृद्धि होती रहती है और एक समय के बाद अत्यधिक भारी होने के कारण वे नीचे गिरने लगते हैं।
- इस प्रकार, एक ऐसी प्रणाली का निर्माण हो जाता है जहाँ बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर आने लगते हैं। परिणामस्वरूप इनके टक्कर से इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं जो विद्युत चिंगारी (Electric Sparks) उत्पन्न होने जैसी ही प्रक्रिया है।
- मुक्त हुए इलेक्ट्रॉनों की गति के कारण टक्करों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादल की शीर्ष परत धनात्मक जबकि मध्य परत ऋणात्मक रूप से आवेशित हो जाती है।
- इससे इन दो परतों के बीच बहुत अधिक विभावंतर (Electrical Potential Difference) उत्पन्न हो जाता है और काफी कम समय में ही, दोनों परतों के बीच विद्युत धारा का अत्यधिक प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। इससे ऊष्मा पैदा होती है, जिससे बादल की दोनों परतों के बीच वायु स्तंभ गर्म हो जाता है। इन गर्म वायु स्तंभों के प्रसार से शॉक वेव उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप मेघगर्जन और बिजली उत्पन्न होती है।
- पृथ्वी बिजली की एक अच्छी संवाहक है परंतु वैद्युत रूप से उदासीन है। हालाँकि, बादल की मध्य परत की तुलना में यह धनात्मक रूप से आवेशित हो जाती है। परिणामस्वरूप, विद्युत धारा का प्रवाह पृथ्वी की ओर होने लगता है।
- विदित है कि वेनेज़ुएला में माराकीबो (Maracaibo) झील के तट पर सबसे अधिक बिजली गिरने की घटनाएँ होती हैं।
आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान में प्रयुक्त तकनीक
- आकाशीय बिजली के पूर्वानुमानों के प्रसार के लिये ‘क्लाइमेट रेज़ीलियंट ऑब्ज़र्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल’ (CROPC) का भारतीय मौसम विभाग (IMD) के साथ एक ‘समझौता ज्ञापन’ है। पूर्वानुमानों के लिये उपग्रह अवलोकन, डॉप्लर और अन्य रडार के नेटवर्क से प्राप्त इनपुट, डिटेक्शन सेंसर का प्रयोग किया जाता है।
- यह पूर्व-मानसून के दौरान एक सप्ताह तक के संभावित लीड समय के साथ आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान में सक्षम है।
- भारत में ओडिशा में आकाशीय बिजली गिरने की सर्वाधिक घटनाएँ होती हैं, जबकि मौतें अपेक्षाकृत कम होती हैं। फानी चक्रवात के दौरान बिजली गिरने की एक लाख से अधिक घटनाएँ हुईं, जबकि इससे कोई भी मौत नहीं हुई। इसका प्रमुख कारण फानी के दौरान बनाए गए आश्रय स्थलों पर लाइटनिंग अरेस्टर को स्थापित किया जाना था।
आकाशीय बिजली का आर्थिक प्रभाव
केंद्र ने वर्ष 2015 में प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों के लिये मुआवज़े को बढ़ाकर 4 लाख रुपए कर दिया था। पिछले पाँच वर्षों के दौरान 13,994 मौतें हुई, जिससे लगभग 359 करोड़ रूपए का मुआवजा देना पड़ा। साथ ही, बिजली गिरने से जानवरों की भी अभूतपूर्व क्षति हुई है।
समस्या और उपाय
- आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को और कम करने के लिये लाइटनिंग रेज़ीलियंट इंडिया अभियान में अत्यधिक भागीदारी के साथ-साथ आकाशीय बिजली के जोखिम प्रबंधन में अधिक व्यापकता की आवश्यकता है।
- आकाशीय बिजली से संबंधित पूर्वानुमान और चेतावनी मोबाइल पर संदेशों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है परंतु यह सुविधा सभी क्षेत्रों और सभी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है। साथ ही, जागरूकता में कमी भी इससे होने वाली मौतों का एक कारण है।
- आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ एक निश्चित अवधि के दौरान और एक समान पैटर्न में लगभग समरूप भौगोलिक स्थानों में होती हैं। कालबैसाखी- नॉरवेस्टर्स (आकाशीय बिजली के साथ तड़ित झंझा) से पूर्वी भारत में मौतें होती हैं जबकि प्री-मानसून में बिजली गिरने से होने वाली मौतें ज्यादातर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और यू.पी. में होती हैं। अत: किसानों, चरवाहों, बच्चों और खुले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये पूर्व चेतावनी महत्त्वपूर्ण है।
- साथ ही, स्थानीय आकाशीय बिजली सुरक्षा कार्य योजना, जैसे आकाशीय बिजली संरक्षण उपकरण (Lightning Protection Devices) स्थापित करना भी मौतों को रोकने के लिये आवश्यक है।
- बिजली गिरने की घटनाओं से बड़ी संख्या में जानवरों की मौतें भी होती हैं। हालाँकि, पशुपालन मंत्रालय के पास पशु आपदा प्रबंधन योजना है परंतु बिजली के घातक नुकसान से संबंधित कोई अनुपालन (Compliance) नहीं है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने राज्यों को लाइटनिंग एक्शन प्लान तैयार करने के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये हैं परंतु बड़ी संख्या में हो रही मौतों से पता चलता है कि इसके क्रियान्वयन में ‘वैज्ञानिक और सामुदाय केंद्रित दृष्टिकोण’ की आवश्यकता है।
- सी.आर.ओ.पी.सी. की रिपोर्ट के अनुसार, दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार और अधिकांश राज्यों ने आकाशीय बिजली को आपदा के रूप में अधिसूचित नहीं किया है जिससे दिशा-निर्देश, एक्शन प्लान और राहत उपायों के लिये मार्गदर्शन बनाने में समस्या आती है।
- आकाशीय बिजली का मानचित्रण बिजली गिरने की आवृत्ति, तीव्रता, अंतर्निहित ऊर्जा, उच्च तापमान और अन्य प्रतिकूल प्रभावों व जोखिम की पहचान करने में सक्षम है, जो भारत के लिये ‘लाइटनिंग रिस्क मैनेजमेंट प्रोग्राम’ का आधार बनने में सहायक होगा।
क्लाइमेट रेज़िलियंट ऑब्ज़र्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (CROPC)
- यह रिपोर्ट ‘क्लाइमेट रेज़िलियंट ऑब्ज़र्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल’ (CROPC) द्वारा तैयार की गई है, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है।
- यह संगठन आकाशीय बिजली के पूर्वानुमानों के उद्देश्य से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के साथ-साथ भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), भारतीय मौसम विज्ञान संस्था (IMS) और वर्ल्ड विज़न इंडिया के साथ मिलकर कार्य करता है।
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