New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

ग्रामीण भारत में श्री अन्न का कायाकल्प

प्रारंभिक परीक्षा

(समसामयिक घटनाक्रम)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसल प्रतिरूप- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ)

संदर्भ 

हैदराबाद स्थित भारतीय श्री अन्न अनुसंधान संस्थान के अनुसार, ग्रामीण भारत में श्री अन्न जैसे पारंपरिक अनाजों के कम उपभोग की धारणा गलत है और ग्रामीण उपभोक्ता शहरी उपभोक्ताओं के समान ही श्री अन्न (मोटे अनाज या कदन्न) का उपभोग कर रहे हैं। इससे ग्रामीण परिवारों के मुख्य खाद्यान्न के रूप में श्री अन्न ‘स्टार्ट-अप्स एवं स्थानीय व्यवसायों के लिए एक विशाल मूल्य-वर्धन’ का अवसर प्रस्तुत करता है। 

श्री अन्न के बारे में 

  • परिचय : श्री अन्न (Millets) छोटे बीज वाली घास प्रजातियों का एक विविध समूह हैं जो दुनिया भर में चारे एवं खाद्यान्न के रूप में उगाया जाता है।
  • वर्गीकरण : श्री अन्न के दाने के आकार के आधार पर इसे दो श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है- 
    • मुख्य श्री अन्न : इसमें ज्वार एवं पर्ल मिलेट (Pearl millet) शामिल हैं। 
    • गौण श्री अन्न : इनमें फिंगर मिलेट (रागी), फॉक्सटेल मिलेट, कोदो मिलेट, प्रोसो मिलेट, बार्नयार्ड मिलेट एवं लिटिल मिलेट आदि शामिल हैं।
  • प्राचीन साक्ष्य : श्री अन्न के सबसे पुराने साक्ष्य सिंधु सभ्यता में पाए गए हैं और ये खाद्यान्न के लिए जंगली से घरेलू बनाए गए प्रारंभिक खाद्य पौधों में से एक थे।
    • यजुर्वेद के कुछ ग्रंथों में विभिन्न श्री अन्न का उल्लेख किया गया है, जिसमें फॉक्सटेल मिलेट (प्रियंगु), बार्नयार्ड मिलेट (अनु) एवं फिंगर मिलेट (श्यामका) की पहचान की गई है।
  • कृषि जलवायु : इनकी खेती मुख्यत: समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के शुष्क इलाकों की सीमांत भूमि पर की जाती है।
  • प्रमुख उत्पादक देश : भारत > नाइजर > चीन > नाइजीरिया
  • मोटा अनाज (श्री अन्न) वर्ष : खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने मोटे अनाज के उत्पादन व उपभोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ के रूप में मनाया।
  • महत्त्व : 
    • श्री अन्न में भोजन, पोषण, चारा, फाइबर, स्वास्थ्य, आजीविका एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा प्रदान करने की अपार क्षमता है।
    • चावल और गेहूँ की तुलना में मोटे अनाजों में खनिज व विटामिन अधिक होते हैं। 
    • ये ग्लूटेन-मुक्त होते हैं और उनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जो उन्हें सीलिएक रोग या मधुमेह पीड़ितों के लिए आदर्श बनाता है।
    • श्री अन्न की खेती कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करती है।
    • श्री अन्न विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकीय परिस्थितियों के प्रति अत्यधिक अनुकूल होता है तथा वर्षा आधारित, शुष्क जलवायु में भी अच्छी तरह पनपता है। इसे पानी, उर्वरकों व कीटनाशकों की न्यूनतम आवश्यकता होती है।

भारत में श्री अन्न के उत्पादन की स्थिति

  • वैश्विक उत्पादन में भागीदारी : भारत दुनिया में श्री अन्न का सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • इसके वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 20% तथा एशिया के उत्पादन में 80% है।
    • वर्ष 2022 में वैश्विक श्री अन्न उत्पादन में भारत की तीन किस्मों ‘बाजरा, सोरघम एवं बकव्हीट (कूट्टू)’ का हिस्सा 18% से अधिक था।
  • उत्पादक क्षेत्र : भारत में वर्ष 2023-24 के दौरान लगभग 69.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र श्री अन्न के अंतर्गत कवर किया गया था। 
  • प्रमुख उत्पादक राज्य : राजस्थान > उत्तर प्रदेश > कर्नाटक एवं महाराष्ट्र > हरियाणा > मध्य प्रदेश > तमिलनाडु > गुजरात > आंध्र प्रदेश > उत्तराखंड
    • वर्तमान में ये 10 राज्य मिलकर वर्ष 2023-24 (द्वितीय अग्रिम अनुमान) की अवधि के दौरान भारत में श्री अन्न के उत्पादन में लगभग 98% का योगदान देते हैं।
    • राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और हरियाणा अर्थात् 6 राज्य कुल श्री अन्न उत्पादन में 79.6% से अधिक हिस्सेदारी रखते हैं।

ग्रामीण भारत में श्री अन्न का कायाकल्प

  • अवसर का विस्तार : ग्रामीण बाजारों में अवसरों का विस्तार करने के लिए श्री अन्न उत्पादक शहरी क्षेत्रों की तरह सभी उपभोग अवसरों व प्रारूपों पर विचार किया जाना चाहिए।
  • जागरूकता बढ़ाना : बाजार में बिक्री होने वाले उत्पादों की बेहतर विपणन (मार्केटिंग) द्वारा उनके पोषण मूल्य के बारे में जागरूकता को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • पारंपरिक प्रथाओं को प्रोत्साहन : ग्रामीण उपभोक्ताओं को श्री अन्न उपभोग की अपनी पारंपरिक प्रथाओं को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • इसमें स्थानीय उद्यमियों का समर्थन करना शामिल है जो श्री अन्न आधारित ऐसे उत्पाद विकसित कर रहे हैं जो स्थानीय स्वाद के अनुकूल हों।
  • किफायती उत्पाद : ग्रामीण बाजारों के लिए श्री अन्न उत्पादों की कीमत को लेकर संवेदनशीलता होनी चाहिए। 
  • बहुहितधारक संतुलन : श्री अन्न उद्योग के सतत विकास के लिए विभिन्न हितधारकों की आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। 
  • खपत प्रतिरूप का ज्ञान : श्री अन्न के उपभोग को बढ़ावा देने और प्रत्येक क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप सतत कृषि प्रथाओं का समर्थन करने के उद्देश्य से लक्षित रणनीति विकसित करने के लिए उपभोग प्रतिरूप को समझने की आवश्यकता है।
  • सरकारी समर्थन : पर्याप्त उत्पादन एवं खरीद सुनिश्चित करके सरकारें सार्वजनिक वितरण प्रणाली और निजी उद्यमों दोनों का समर्थन कर सकती हैं, जिससे श्री अन्न पारितंत्र को बढ़ावा मिलेगा।
  • गैर-सरकारी समर्थन : किसान उत्पादक संगठन (FPO) और स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता व खपत को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

सरकारी पहल 

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली : ओडिशा व कर्नाटक जैसे राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की पहल काफी सफल रही हैं, जहाँ श्री अन्न को खरीदकर इन्हें सब्सिडीकृत दरों पर वितरित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय श्री अन्न मिशन : श्री अन्न के उत्पादन एवं उपभोग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2007 में राष्ट्रीय श्री अन्न मिशन प्रारंभ किया गया था।
  • मूल्य समर्थन योजना : यह योजना किसानों को श्री अन्न की खेती के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • मूल्य-संवर्धित उत्पादों का विकास : इसमें श्री अन्न की मांग एवं उपभोग बढ़ाने के लिए मूल्य-संवर्धित श्री अन्न आधारित उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाता है।

आगे की राह

ग्रामीण भारत में श्री अन्न का भविष्य आशाजनक है क्योंकि इनके पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार एवं टिकाऊ कृषि पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हालांकि, कंपनियों एवं स्टार्ट-अप को ग्रामीण बाजार की अनूठी चुनौतियों व अवसरों को समझना होगा। स्थानीय रूप से किफायती एवं प्रासंगिक उत्पादों की पेशकश करके, स्थानीय उद्यमियों को सशक्त बनाकर और सरकारी पहलों के साथ सहयोग करके उद्यमी इस बढ़ते बाजार का लाभ उठा सकते हैं और ग्रामीण भारत में श्री अन्न की खपत को पुनर्जीवित करने में योगदान दे सकते हैं।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI)

  • यह खाद्यान्न में मौजूद कार्बोहाइड्रेट की गुणवत्ता का मापक है जो भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट द्वारा रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने की गति को दर्शाता है।  
  • तुलनात्मक आधार के लिए, ग्लूकोज़ का GI 100 माना जाता है और अन्य खाद्य पदार्थों के GI को ग्लूकोज़ के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है।  
  • निम्न GI वाले खाद्य पदार्थों में फल, अनाज, दालें, स्टार्चरहित सब्ज़ियां, फलियां, डेयरी उत्पाद व ब्राउन राइस शामिल हैं।  
  • उच्च GI वाले खाद्य पदार्थों में चीनी, शर्करा युक्त पेय, सफ़ेद पॉलिश चावल, आलू एवं सफ़ेद ब्रेड शामिल हैं। 
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR