चर्चा में क्यों ?
- एम्स द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बच्चों में ऑटिज्म के बढ़ते मामलों के पीछे भारी धातुओं और बढ़ते स्क्रीन टाइम की भूमिका अहम है।

प्रमुख बिंदु :-
- एम्स की पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ के अनुसार, तीन से 12 वर्ष के 180 ऑटिज्म पीड़ित बच्चों और 180 सामान्य बच्चों पर किए गए एक तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि 32% पीड़ित बच्चों में भारी धातुओं का स्तर सामान्य से अधिक था।
- इसके अलावा, मोबाइल और टीवी पर अधिक समय बिताने (स्क्रीन टाइम) को भी इस बीमारी के पीछे एक अहम कारण माना गया है।
- एम्स के 2011 के अध्ययन के अनुसार, भारत में हर 89 में से एक बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित था, जबकि अमेरिका में यह संख्या हर 36 में से एक तक पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में भी यह संख्या अब कहीं अधिक हो चुकी है, लेकिन इस पर व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है।
ऑटिज्म क्या है?
- ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder – ASD) एक स्नायविक (Neurological) और विकास संबंधी विकार है जो आमतौर पर बचपन में ही उभरता है।
- यह व्यक्ति की सामाजिक बातचीत (Social Interaction), संचार (Communication) और व्यवहार (Behavior) को प्रभावित करता है।
- यह एक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है, जिसका अर्थ है कि इसके लक्षण हल्के से गंभीर तक हो सकते हैं।
- प्रत्येक ऑटिस्टिक व्यक्ति अलग होता है और उसकी ज़रूरतें भी अलग-अलग हो सकती हैं।
कारण :-
- कैडमियम, लेड, मर्करी, मैंगनीज, कापर और आर्सेनिक जैसी धातुएं बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा रही हैं।
- ये धातुएं दूषित भोजन, औद्योगिक कचरा, सिगरेट का धुआं, लेड युक्त खिलौने और खराब बैटरियों से बच्चों तक पहुंच रही हैं।
- एक मामला सामने आया जिसमें एक बच्चा कोमा में एम्स पहुंचा, और जांच में पाया गया कि उसके पिता लेड बैटरी निर्माण से जुड़े हैं। पिता के कपड़ों के माध्यम से लेड घर में प्रवेश कर गया था और बच्चे के रक्त में लेड का स्तर 90 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर था, जबकि सुरक्षित स्तर 5 माइक्रोग्राम है।
ऑटिज्म के सामान्य लक्षण:-

- सामाजिक कठिनाइयाँ – दूसरों से संवाद करने में परेशानी, आंखों से संपर्क न बनाना, भावनाएँ व्यक्त करने में कठिनाई।
- संवाद में समस्या – देर से बोलना सीखना, शब्दों को बार-बार दोहराना, बातचीत को समझने में दिक्कत।
- आचरण में दोहराव (Repetitive Behavior) – एक ही गतिविधि या क्रिया को बार-बार दोहराना, अत्यधिक रूटीन का पालन करना।
- संवेदनशीलता में भिन्नता – आवाज़, रोशनी, गंध, या स्पर्श के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया देना।
- अत्यधिक रुचि – किसी विशेष चीज़ में असामान्य रूप से गहरी रुचि लेना।
ऑटिज्म का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन समय पर थेरेपी और विशेष शिक्षा से व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस :-
- विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) हर साल 2 अप्रैल को मनाया जाता है।
- इस दिन का उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के बारे में जागरूकता बढ़ाना और समाज में ऑटिज्म से प्रभावित लोगों को सहयोग प्रदान करना है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 18 दिसंबर 2007 को आधिकारिक रूप से इस दिवस को मान्यता दी, और 2008 से इसे वैश्विक स्तर पर मनाया जाने लगा।
- यह दिन ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्तियों को समान अवसर, शिक्षा और रोजगार देने की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
ऑटिज्म के प्रति जागरूकता क्यों ज़रूरी है?
- समाज में स्वीकृति: ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों को समाज में समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।
- रोजगार के अवसर: ऑटिज्म से ग्रसित कई व्यक्ति विशेष योग्यताओं वाले होते हैं। उन्हें रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए।
- भेदभाव को रोकना: समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करके ऑटिज्म को एक बीमारी की बजाय एक विशेषता के रूप में स्वीकार करना ज़रूरी है।
- समुचित चिकित्सा और शिक्षा: ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को विशेष शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएँ मिलनी चाहिए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
ऑटिज्म से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- वर्तमान में लगभग हर 100 में से लगभग 1 बच्चा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से प्रभावित होता है।
- लड़कों में ऑटिज्म होने की संभावना लड़कियों की तुलना में चार गुना अधिक होती है।
- ऑटिज्म का कोई निश्चित कारण नहीं है, लेकिन यह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारणों से जुड़ा हो सकता है।
- यदि शुरुआती अवस्था में पहचान हो जाए, तो सही थेरेपी से बच्चों की सामाजिक और संचार क्षमता में सुधार किया जा सकता है।
- ऑटिज्म से प्रभावित कई व्यक्तियों में अद्भुत प्रतिभाएँ होती हैं, जैसे गणित, संगीत, और कला में असाधारण कौशल।