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लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम, 1994

(प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा प्रश्न पत्र-2)

चर्चा में क्यों?

हाल ही स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने स्पष्ट किया है कि लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम को किसी भी प्रकार से निलंबित नहीं किया गया है।

पृष्ठभूमि-

गर्भाधान पूर्व व प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (Pre Conception and Pre Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection)) Act को लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम भी कहते हैं। संक्षिप्त रूप में इसे पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट कहा जाता है। वर्ष 1994 में संसद द्वारा इस कानून को पारित किया गया तथा वर्ष 1996 से यह लागू हुआ। वर्ष 2003 में इसमें संशोधन भी किया गया।

विवाद का विषय-

  • वर्तमान लॉकडाउन के परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 04 अप्रैल, 2020 को पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. नियम, 1996 में कुछ प्रावधानों को निलंबित करने सम्बंधी अधिसूचना जारी की थी।
    यह अधिसूचना लॉकडाउन की अवधि के दौरान पंजीकरण के नवीनीकरण से सम्बंधित हैं। साथ ही साथ निदान केंद्र द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करना तथा राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट (क्यू.पी.आर.) प्रस्तुत करने से भी सम्बंधित है।
  • इससे सम्बंधित सभी क्लिनिक व केंद्रों को कानून के अंतर्गत निर्धारित सभी अनिवार्य रिकॉर्ड बनाए रखने होंगे। केवल इस रिपोर्ट को सम्बंधित प्राधिकरणों को प्रस्तुत करने की समय सीमा को 30 जून, 2020 तक बढ़ा दिया गया है। पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में कोई छूट (नैदानिक केंद्रों को) नहीं है।
  • इससे संबंधित विवाद उस रिपोर्ट से शुरू हुआ, जिसमें कहा गया था कि पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट. 1994 को लॉकडाउन की अवधि तक निलंबित कर दिया गया है।

पी.सी. एंड पी.एन.डी.टी. एक्ट: प्रमुख बिंदु-

  • यह अधिनियम भारत में गिरते लिंगानुपात को रोकने हेतु लागू किया गया था। भारत में लिंगानुपात वर्ष 1901 में 972 से गिरकर वर्ष 1991 में 927 पर आ गया था।
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान पूर्व व उपरांत लिंग चयन तकनीको के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना तथा लिंग आधारित गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत गैर-पंजीकृत इकाइयों में प्रसव पूर्व निदान करना या उसमें सहायता प्रदान करना अपराध माना गया है। इसके साथ ही शिशु के लिंग का चयन, अधिनियम में दिये गए छूट के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य हेतु पी.एन.डी. टेस्ट करना तथा भ्रूण के लिंग की पहचान करने वाली किसी भी उपकरण या अल्ट्रासाउंड मशीन की खरीद, बिक्री, वितरण आदि को भी अपराध माना जाएगा जाता है।
  • लिंग चयन में प्रयोग होने वाली तकनीकी के विनियमन में सुधार हेतु इस अधिनियम को वर्ष 2003 में संशोधित किया गया था। संशोधन के द्वारा गर्भाधान पूर्व लिंग चयन और अल्ट्रासाउंड तकनीक को भी इस अधिनियम के दायरे में लाया गया। संशोधन द्वारा केंद्रीय पर्यवेक्षण बोर्ड को अधिक सशक्त बनाया गया तथा राज्य स्तर पर पर्यवेक्षण बोर्ड का भी गठन किया गया।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-

  • यह अधिनियम गर्भाधान पूर्व व उपरांत लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यह अधिनियम कुछ मामलों में छूट के अलावा प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकों के प्रयोग को विनियमित करता है।
  • कोई भी प्रयोगशाला, केंद्र या क्लीनिक भ्रूण के लिंग निर्धारण करने के उद्देश्य से अल्ट्रासोनोग्राफी सहित अन्य कोई जांच परीक्षण नहीं करेगा। इन मामलों से सम्बंधित विवादों के कानूनी प्रक्रिया में संलग्न व्यक्ति सहित अन्य कोई व्यक्ति गर्भवती महिला या उसके किसी सम्बंधी को किसी भी विधि द्वारा भ्रूण के लिंग की जानकारी नहीं दे सकता है।
  • प्रसव पूर्व व गर्भाधान पूर्व लिंग निर्धारण संबंधी सुविधा के लिये किसी भी प्रकार से प्रचार-प्रसार करने वाले व्यक्ति को 3 वर्ष तक की सजा या ₹10000 जुर्माना लगाया जा सकता है। इस अधिनियम में सभी नैदानिक प्रयोगशालाओं के साथ-साथ सभी जेनेटिक परामर्श केंद्रों, प्रयोगशालाओं व क्लीनिकों तथा अल्ट्रासाउंड केंद्रों का पंजीकरण अनिवार्य है।
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