प्रारंभिक परीक्षा : (सामान्य अध्ययन प्रथम प्रश्नपत्र :1 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) |
संदर्भ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा 30 दिसंबर को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (Space Docking Experiment : SpaDEX) मिशन लॉन्च किया जायेगा।
स्पैडेक्स मिशन के बारे में
उद्देश्य :
- स्पैडेक्स मिशन का प्राथमिक उद्देश्य अंतरिक्ष यान को डॉक करने और अनडॉक करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास एवं प्रदर्शन करना है।
- डॉकिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो उपग्रहों को एक साथ रखा जाता है और फिर उन्हें अंतरिक्ष में जोड़ा जाता है।
- ये डॉकिंग ऑपरेशन चालक दल, ईंधन और संसाधनों को स्टेशन पर स्थानांतरित करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
- यह मिशन इन-ऑर्बिट मरम्मत और असेंबली जैसे कार्यों के लिए उन्नत रोबोटिक्स का भी उपयोग करेगा , जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को प्रदर्शित करता है।
- स्पैडेक्स का उपयोग प्रायोगिक प्लेटफ़ॉर्म के रूप में भी किया जाएगा, जिसे POEM-4 के रूप में जाना जाता है, जिससे विभिन्न माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों के लिए अनुमति मिलती है।
- इस मिशन के दौरान कुल 24 पेलोड उड़ाए जाएंगे, जिसमें शिक्षाविदों और स्टार्टअप्स का योगदान भी शामिल है।
विशेषताएँ
- मिशन को पीएसएलवी-सी60 द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा।
- मिशन के तहत दो उपग्रहों SDX01 या चेज़र और SDX02 या टारगेट को लॉन्च किया जाएगा,जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 220 किग्रा. होगा।
- इन उपग्रहों को 470 किमी. की ऊँचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च किया जाएगा।
- मिशन के तहत दोनों उपग्रहों को एक ही कक्षा में संरेखित किया जाएगा तथा उनके बीच विद्युत शक्ति का स्थानांतरण होगा और वे अलग हो जाएँगे।
- अलग होने के बाद, दोनों उपग्रहों पर लगे पेलोड दो वर्ष तक काम करते रहेंगे।
- यह मिशन एक तकनीकी प्रदर्शन के साथ ही अधिक जटिल परिचालनों के लिए भी महत्वपूर्ण है जिसमें उपग्रह सर्विसिंग और फॉर्मेशन फ्लाइंग आदि शामिल होंगे।
महत्त्व
- मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत उन्नत डॉकिंग तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा ।
- स्पैडेक्स उन मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनमें साझा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई उपग्रहों को लॉन्च करने की आवश्यकता होती है।
- स्पैडेक्स का सफल निष्पादन भविष्य के मिशनों के लिए नए रास्ते खोल सकता है और वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की स्थिति को और मज़बूत कर सकता है।