सर्वोच्च न्यायालय और दोषी न्यायाधीशों से निपटने के विकल्प
(प्रारम्भिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग, प्रभावक समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका।)
संदर्भ
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी श्रीशानंद द्वारा की गई हालिया टिप्पणियों पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
न्यायमूर्ति श्रीशानंद ने एक सुनवाई के दौरान बेंगलुरु के एक विशेष इलाके को “पाकिस्तान” बताया था।
इसके अलावा एक अन्य सुनवाई के दौरान उन्होंने एक महिला वकील के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
गौरतलब है कि संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों को विशेष संरक्षण प्राप्त होता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे कार्यपालिका के हस्तक्षेप के डर के बिना अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकें।
दोषी न्यायधीशों से निपटने के विकल्प
महाभियोग:
संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए केवल दो आधार हैं-
सिद्ध दुर्व्यवहार
अक्षमता
संविधान के अनुसार महाभियोगसिद्ध दुर्व्यवहार करने वाले न्यायाधीशों से निपटने का एकमात्र उपाय है।
गौरतलब है कि संविधान में ‘महाभियोग’ शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन बोलचाल की भाषा में इसका उपयोग अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए) और अनुच्छेद 218 (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए) के तहत कार्यवाही को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी न्यायाधीश को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा ही हटाया जा सकता है।
हालाँकि न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया का वर्णन न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 में किया गया है।
न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत प्रावधान
इस अधिनियम के तहत संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन कार्यवाही आरंभ करने के लिए-
लोकसभा के कम से कम 100 सदस्यों को अध्यक्ष को हस्ताक्षरित नोटिस देना होता है।
राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्यों को सभापति को हस्ताक्षरित नोटिस देना आवश्यक होता है।
अध्यक्ष या सभापति नोटिस से संबंधित प्रासंगिक सामग्री की जाँच कर सकते हैं और उसके आधार पर, प्रस्ताव को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं।
यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो अध्यक्ष या सभापति (जो इसे प्राप्त करते हैं) शिकायत की जाँच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करेंगे। इस समिति शामिल होंगे-
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
एक प्रतिष्ठित न्यायविद
समिति द्वारा तय आरोप के आधार पर ही जाँच की जाएगी। आरोपों की एक प्रति न्यायाधीश को भेजी जाएगी जो लिखित बचाव प्रस्तुत कर सकते हैं।
जाँच पूरी करने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष या सभापति को सौंपेगी जो रिपोर्ट को संसद के संबंधित सदन के समक्ष रखेंगे और उस पर सदन में चर्चा की जाएगी।
न्यायाधीश को पद से हटाने के प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन से निम्नलिखित तरीके से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है-
उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से
उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से।
प्रस्ताव के उपरोक्त बहुमत से स्वीकृत हो जाने के बाद उसे स्वीकृति के लिए दूसरे सदन में भेजा जाएगा।
दोनों सदनों में प्रस्ताव स्वीकृत हो जाने के बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
अंततः राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।
इतिहास में महाभियोग की कार्यवाही के मामले
महाभियोग की कार्यवाही आज तक केवल पाँच नयायाधीशों के खिलाफ शुरू की गई है-
न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी (एससी, 1993)
न्यायमूर्ति सौमित्र सेन (कलकत्ता उच्च न्यायालय, 2011)
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला (गुजरात उच्च न्यायालय, 2015)
न्यायमूर्ति सी.वी. नागार्जुन (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय , 2017)
तत्कालीन CJI न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा (2018)
हालाँकि, महाभियोग की कार्यवाही कभी सफल नहीं हुई है।
कम गंभीर मामलों के संदर्भ में विकल्प
महाभियोग के अलावा अन्य कम गंभीर मामले जैसे अनुशासनहीनता, अति निम्न प्रभाव वाला भ्रष्टाचार, पक्षपात या न्यायालय में संदिग्ध आचरण की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों को अनुशासित करने के वैकल्पिक तरीके विकसित किए हैं।
न्यायिक हस्तक्षेप
वर्ष 2017 में, सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी.एस. कर्णन को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया और उन्हें छह महीने की कैद की सजा सुनाई।
कर्णन पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कारावास की सजा सुनाना और न्यायपालिका के सदस्यों पर भाई-भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार का आरोप लगाना शामिल था।
स्थानांतरण नीति
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कॉलेजियम के माध्यम से भी नियंत्रित करता है।
कॉलेजियम में CJI सहित शीर्ष अदालत के पाँच सबसे वरिष्ठ जज शामिल होते हैं।
यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण की सिफारिश करता है।
वर्ष 2010 में न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन को कर्नाटक उच्च न्यायालय से सिक्किम उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।