प्रारंभिक परीक्षा
(भारतीय राजव्यवस्था)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व; सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय; अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
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संदर्भ
केंद्र सरकार ने वक्फ़ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिए लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया है। इसे संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को प्रेषित कर दिया गया है।
वक्फ़ के बारे में
- ‘वक्फ़’ अरबी भाषा के ‘वकुफा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ ‘बाँधना’, 'रोकना' या 'समर्पण करना' होता है।
- इस्लामी मान्यता में धर्म के आधार पर दान की गई चल या अचल संपत्ति ‘वक्फ़’ कहलाती है। दान देने वाले व्यक्ति को ‘वकिफा/वकीफ’ कहा जाता है।
- हालाँकि, संपत्ति दान करने की शर्त यह है कि उस चल/अचल संपत्ति से होने वाली आय को इस्लाम धर्म की खिदमत (सेवा) में ही व्यय किया जा सकता है।
- इस संपत्ति से गरीब व जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए धन देने संबंधी कार्य किए जा सकते हैं।
भारत में वक्फ़ संपत्ति
- कुल संपत्ति : स्वतंत्रता के पश्चात वक्फ़ की पूरे देश में लगभग 52,000 संपत्तियां थीं, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 3 लाख (4 लाख एकड़ क्षेत्रफल) तक हो गई।
- संपत्ति में वृद्धि : वर्तमान में वक्फ़ की 8 लाख एकड़ भूमि में फैली 8,72,292 से ज्यादा पंजीकृत अचल संपत्तियाँ है जबकि कुल चल संपत्तियों की संख्या 16,713 हैं।
- अचल संपत्तियों के के क्षेत्रफल में पिछले 13 वर्षों में दो गुनी वृद्धि हुई है।
- WAMSI पोर्टल : इन संपत्तियों का विवरण वक्फ़ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) पोर्टल पर दर्ज किया गया है।
- तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामित्त्व : सशस्त्र बलों (सेना) और भारतीय रेलवे के बाद देश में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामित्त्व वक्फ़ बोर्ड के पास है अर्थात सर्वाधिक भूमि के मामले में वक्फ़ बोर्ड देश में तीसरे स्थान पर है।
- कीमत : वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों की अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपए है।
- वक्फ संपत्ति का प्रबंधन : वक्फ संपत्ति का प्रबंधन मुतवल्ली (देखभालकर्ता) करता है, जो पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- भारत में वक्फ़ की अवधारणा दिल्ली सल्तनत के काल में प्रारंभ हुई।
- प्रथम उदाहरण : वर्ष 1173 में सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी द्वारा मुल्तान की जामा मस्जिद को गाँव समर्पित करना।
- वक्फ़ को विनियमित करने का पहला प्रयास वर्ष 1923 में मुस्लिम वक्फ़ अधिनियम के माध्यम से किया गया।
- स्वतंत्र भारत में, संसद ने पहली बार वर्ष 1954 में वक्फ़ अधिनियम पारित किया।
- इस अधिनियम को वर्ष 1995 में एक नए वक्फ़ अधिनियम से प्रतिस्थापित किया गया, जिसने वक्फ़ बोर्ड्स को अधिक शक्तियाँ प्रदान कर दी।
- इस नए कानून से अतिक्रमण में वृद्धि के साथ-साथ वक्फ़ संपत्तियों के अवैध पट्टे एवं बिक्री की शिकायतों में वृद्धि हुई।
- इन शिकायतों को दूर करने के लिए वर्ष 2013 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया। इसमें वक्फ़ बोर्ड्स को मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों का दावा करने के लिए इन बोर्ड्स को असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए और न्यायालय का हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया।
- वक्फ़ बोर्ड के पास निर्णयन संबंधी असीमित अधिकार होने मामला अधिक गंभीर हो गया।
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वक्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 के बारे में
- पृष्ठभूमि : ‘वक्फ़ अधिनियम, 1995’ में कैबिनेट द्वारा 40 संशोधनों की स्वीकृति के पश्चात केंद्र सरकार ने 8 अगस्त, 2024 को वक्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 लोकसभा में प्रस्तुत किया।
- उद्देश्य : वक्फ संपत्तियों के प्रशासन एवं प्रबंधन की दक्षता बढ़ाना।
- प्रमुख लक्ष्य :
- वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का आधुनिकीकरण करना
- महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना
- केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड्स में सभी समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना
- मुकदमेबाजी को कम करना
- राजस्व विभाग के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित करना
- न्यायाधिकरण के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी
प्रमुख प्रस्तावित संशोधन
नाम परिवर्तन
- वर्तमान नाम : वक्फ़ अधिनियम, 1995
- संशोधित नाम : संयुक्त वक्फ़ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास अधिनियम, 1995
वक्फ़ संपत्ति का गठन (घोषणा)
- वर्तमान स्थिति
- वर्तमान अधिनियम वक्फ़ के गठन या किसी भूमि को वक्फ़ घोषित करने की अनुमति निम्नलिखित तरीकों से देता है :
- घोषणा द्वारा (वक्फ़ बोर्ड द्वारा निर्धारित करना)
- दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर मान्यता (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा)
- उदाहरणस्वरुप : यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति मदरसा आदि धार्मिक कार्यों के उपयोग के लिए देता है किंतु कुछ समय बाद मदरसे का देखभाल करने वाला उसे वक्फ संपत्ति के रूप में बदलने की मांग करता है, तब यह वक्फ बोर्ड का अधिकार होगा कि वह उस भूमि को वक्फ घोषित करे या नहीं। संशोधन के बाद ऐसा करना संभव नहीं होगा, जब तक कि भूमि का वास्तविक स्वामी अपनी सहमति नहीं देता है।
- उत्तराधिकार का वंश समाप्त होने पर बंदोबस्ती (वक्फ़-अलल-औलाद)
- वक्फ-अलल-औलाद : इस इस्लामी कानून के अनुसार, किसी संपत्ति को वक्फकर्ता के अपने परिवार या उसके बच्चों या उसके बच्चों के बच्चों के कल्याण के लिए वक्फ किया जाता है।
- संशोधन
- संसोधित विधेयक के अनुसार, केवल कम-से-कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ़ की घोषणा कर सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति वक्फ़ की घोषणा करता है तो उसे वक्फ़ घोषित की जा रही संपत्ति का मालिक होना चाहिए। यह ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ़ की घोषणा’ को समाप्त करता है।
- विधेयक के अनुसार, वक्फ़-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को अपने अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
सरकारी संपत्ति को वक्फ़ मानना
- वर्तमान स्थिति
- अधिनियम के अनुसार वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी संपत्ति (सरकारी व गैर-सरकारी) वक्फ़ मानी जा सकती है।
- अधिनियम की धारा 40 के अनुसार वक्फ़ बोर्ड को यह जांच करने और निर्धारित करने का अधिकार है कि कोई संपत्ति वक्फ़ है या नहीं।
- संशोधन
- विधेयक के अनुसार, वक्फ़ के रूप में पहचान की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ़ नहीं मानी जाएगी।
- अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व का निर्धारण करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा।
- विधेयक द्वारा अधिनियम की धारा 40 (वक्फ़ बोर्ड की वक्फ़ निर्धारित करने की शक्ति) के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
वक्फ़ का सर्वेक्षण
- वर्तमान स्थिति : अधिनियम में वक्फ़ का सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त एवं अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है।
- संशोधन : विधेयक कलेक्टरों को सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है। लंबित सर्वेक्षण राज्य के राजस्व कानूनों के अनुसार किए जाएंगे।
केंद्रीय वक्फ़ परिषद
- वर्तमान स्थिति
- अधिनियम में केंद्रीय वक्फ़ परिषद के गठन का प्रावधान है जो केंद्र व राज्य सरकारों तथा वक्फ़ बोर्ड्स को सलाह देती है।
- वक्फ़ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
- परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए और उनमें से कम-से-कम दो महिलाएँ (मुस्लिम होना आवश्यक नहीं) होनी चाहिए।
- संशोधन
- विधेयक में प्रावधान है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए।
- संशोधन के बाद परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना आवश्यक नहीं है।
- हालाँकि, निम्नलिखित सदस्यों का मुस्लिम होना ज़रूरी है : (i) मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, (ii) इस्लामी कानून के विद्वान और (iii) वक्फ़ बोर्ड्स के अध्यक्ष।
- मुस्लिम सदस्यों में से दो महिलाएँ अवश्य होनी चाहिए।
वक्फ़ बोर्ड की संरचना
- वर्तमान स्थिति : वक्फ़ बोर्ड अधिनियम 1995 के अनुसार, किसी राज्य और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे :
- एक अध्यक्ष
- निर्वाचित सदस्य: सदस्यों (प्रत्येक वर्ग से अधिकतम दो सदस्य अर्थात अधिकतम 8 निर्वाचित सदस्य संभव) का निर्वाचन प्रत्येक निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। निर्वाचक मंडल के चार वर्ग होंगे जो आपस में ही सदस्यों का चुनाव करेंगे। निर्वाचक मंडल में निम्नलिखित व्यक्ति (वर्ग) शामिल होंगे:
- राज्य से संसद के मुस्लिम सदस्य
- राज्य विधानमंडल के मुस्लिम सदस्य
- संबंधित राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य
- यदि बार काउंसिल का कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है, तो राज्य/संघ सरकार राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से किसी वरिष्ठ मुस्लिम अधिवक्ता को नामित कर सकता है।
- मुतवल्ली (वक्फ़ देखभालकर्ता) जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपए या उससे अधिक है।
- यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं हैं, तो वहां संसद, राज्य विधानमंडल के पूर्व मुस्लिम सदस्य या राज्य बार काउंसिल के पूर्व सदस्य से निर्वाचक मंडल का गठन करेंगे।
- यदि उल्लिखित किसी भी श्रेणी के लिए निर्वाचक मंडल का गठन करना उचित रूप से व्यवहार्य नहीं है, तो राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों को बोर्ड के सदस्यों के रूप में नामित कर सकती है जिन्हें वह ठीक समझे।
- केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार का कोई मंत्री बोर्ड के सदस्य के रूप में निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाएगा। बोर्ड में नियुक्त कम-से-कम दो सदस्य महिलाएं होंगी।
- संशोधन
- विधेयक राज्य सरकार को बोर्ड में उपरोक्त प्रत्येक पृष्ठभूमि से एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार देता है। साथ ही, उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है।
- यद्यपि नामित सदस्यों की योग्यता को लेकर पूर्व व्यवस्था लागू रहेगी किंतु सदस्यों के समुदाय से संबंधित कुछ संशोधन प्रस्तावित है। संशोधन के अनुसार, बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य होने चाहिए : (i) दो गैर-मुस्लिम सदस्य (ii) शिया, सुन्नी व पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम-से-कम एक सदस्य (iii) इसमें बोहरा व आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए, यदि उनके पास राज्य में वक्फ़ संपति है।
- इसमें दो मुस्लिम महिला सदस्य होना आवश्यक है।
न्यायाधिकरणों की संरचना
- वर्तमान स्थिति
- अधिनियम के अनुसार राज्यों को वक्फ़ से संबंधित विवादों को निपटाने के लिए न्यायाधिकरणों का गठन करना होगा।
- इन न्यायाधिकरणों का अध्यक्ष प्रथम श्रेणी, जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश के समकक्ष रैंक का न्यायाधीश होना चाहिए।
- अन्य सदस्यों में शामिल हैं : (i) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र का जानकार व्यक्ति।
- संशोधन
- विधेयक तीसरे सदस्य के रूप में मुस्लिम कानून व न्यायशास्त्र के जानकार व्यक्ति को न्यायाधिकरण से हटा देता है।
- संशोधन केवल निम्नलिखित दो सदस्यों को न्यायाधिकरण में शामिल करता है : (i) अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय का न्यायाधीश, और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव के रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी।
ट्रिब्यूनल के आदेशों पर अपील
- वर्तमान स्थिति : अधिनियम के तहत, ट्रिब्यूनल के निर्णय अंतिम होते हैं और न्यायालयों में उसके निर्णयों के खिलाफ अपील निषिद्ध है।
- संशोधन : विधेयक ट्रिब्यूनल के निर्णयों को अंतिम माने जाने वाले प्रावधानों को हटा देता है। ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
केंद्र सरकार की शक्तियाँ
- वर्तमान स्थिति : अधिनियम के तहत केवल राज्य सरकार वक्फ़ के खातों का ऑडिट वार्षिक रूप से करवा सकती है।
- संशोधन : विधेयक केंद्र सरकार को निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है : (i) पंजीकरण, (ii) वक्फ़ के खातों का प्रकाशन, और (iii) वक्फ़ बोर्ड की कार्यवाही का प्रकाशन।
- विधेयक केंद्र सरकार को CAG या किसी नामित अधिकारी से वक्फ़ का ऑडिट करवाने का अधिकार प्रदान करता है।
नए वक्फ़ बोर्ड का गठन
- शिया संप्रदाय के लिए : अधिनियम सुन्नी व शिया संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ़ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है, बशर्ते शिया वक्फ़ की संपति राज्य में सभी वक्फ़ संपत्तियों या वक्फ़ आय का 15% से अधिक हो।
- बोहरा एवं आगाखानी के लिए : विधेयक आगाखानी व बोहरा मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ़ बोर्ड की भी अनुमति देता है।
वक्फ़ बोर्ड के बारे में
- वक्फ़ अधिनियम, 1995 के तहत वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए प्रत्येक राज्य में एक वक्फ़ बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है।
- इसके तहत सभी वक्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण संबंधित राज्य वक्फ़ बोर्ड में अनिवार्य होता है।
- केंद्र ने सभी वक्फ़ बोर्ड्स के साथ तालमेल के लिए केंद्रीय वक्फ़ परिषद् का गठन किया है।
- वक्फ़ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, देश में कुल 30 वक्फ़ बोर्ड्स हैं।
कार्य
- बोर्ड का प्रमुख कार्य वक्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण, संरक्षण व प्रबंधन करना है।
- बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ़ संपत्तियों का उपयोग धार्मिक एवं चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए हो रहा है।
अधिकार
- वक्फ़ बोर्ड के पास वक्फ़ संपत्तियों का निरीक्षण करने और उन पर नियंत्रण रखने का अधिकार होता है।
- यह बोर्ड वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधकों (मुतवल्ली) की नियुक्ति और उनके कार्यों की समीक्षा भी करता है।
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नए विधेयक के पक्ष में तर्क
- विवाद समाधान के लिए : जब कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ ही रहती है। इसने विभिन्न विवादों व दावों को जन्म दिया है।
- उदाहरण के लिए, द्वारका में दो द्वीपों, बेंगलुरु ईदगाह मैदान, सूरत नगर निगम भवन, कोलकाता का टॉलीगंज क्लब और बेंगलुरु में आई.टी.सी. विंडसर होटल इत्यादि विवाद के मामले।
- अतिक्रमण के मुद्दे : वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण भी एक चुनौती है।
- उदाहरण के लिए, सितंबर 2022 में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने वस्तुत: हिंदुओं द्वारा बसाए गए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर स्वामित्व का दावा कर दिया है।
- वक्फ नौकरशाही की अकुशलता : वक्फ नौकरशाही की अकुशलता के कारण अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व विवाद एवं पंजीकरण व सर्वेक्षण में देरी जैसी समस्याएं सामने आई हैं।
- उदाहरण के लिए, लखनऊ में जिस भूखंड पर फोरेंसिक विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई है, उसे पूर्व में फर्जी तरीके से वक्फ संपत्ति घोषित करके निजी स्वामित्त्वधारक को बेच दिया गया था।
- न्यायिक निगरानी न होना : वक्फ न्यायाधिकरणों के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी की अनुपस्थिति से समस्या और भी जटिल हो गई है।
- उदाहरण के लिए, वक्फ प्रणाली का हिस्सा बनने वाले न्यायाधिकरणों में 40,951 मामले लंबित हैं।
- सच्चर कमेटी की सिफारिशें : सच्चर समिति की वर्ष 2006 की रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा विनियमन, अभिलेखों के कुशल प्रबंधन, वक्फ प्रबंधन में गैर-मुस्लिम तकनीकी विशेषज्ञता को शामिल करने और वक्फ को वित्तीय लेखा परीक्षण के तहत लाने की आवश्यकता की सिफारिश की गई थी।
- वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट : मार्च 2008 में राज्यसभा में प्रस्तुत वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में वक्फ बोर्ड्स की संरचना में सुधार करने, वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण के लिए सख्त कार्रवाई करने, भ्रष्ट मुतव्वलियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान करने, कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप की गुंजाइश बनाने, वक्फ बोर्ड्स का कम्प्यूटरीकरण करने और केंद्रीय वक्फ परिषद में शिया समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की गई थी।
- कुछ समय पूर्व आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुस्लिम को मुसलमान मानने से इनकार कर दिया था। अत: वक्फ बोर्ड्स की संरचना में सुधार की आवश्यकता थी।
नए विधेयक के विपक्ष में तर्क
- धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन : यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता हैं क्योंकि विधेयक में प्रावधान है कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं। यह धर्म की आस्था एवं स्वतंत्रता पर हमला है।
- प्रशासनिक अव्यवस्था : वक्फ बोर्ड की स्थापना एवं संरचना में संशोधन करने से प्रशासनिक अव्यवस्था उत्पन्न होगी।
- स्वायत्ता की समाप्ति : नए विधेयक से वक्फ बोर्ड्स की स्वायत्ता एवं स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
- सामजिक तनाव : हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श किए बिना संशोधन करने से तनाव में वृद्धि हो सकती है।
धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस विधेयक को मुस्लिमों के पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप बताया है। हालांकि, सूफी दरगाहों का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च संस्था ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने नए विधेयक का स्वागत किया है।
आगे की राह
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है, जिसके उल्लंघन से किसी भी धार्मिक समुदाय के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। नए विधेयक में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, कि सरकार द्वारा किसी भी प्रकार से धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। इसके लिए सरकार को सभी हितधारकों के साथ समन्वय की आवश्यकता है, जिससे समाज में सौहार्द की स्थिति बनी रहे।