(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम के उल्लंघन के लिए जाँच करने और जुर्माना लगाने के लिए नए नियम अधिसूचित किए हैं।
सरकार की अधिसूचना के अनुसार, नए नियम तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
विशेषताएँ
नए नियम इस साल की शुरुआत में जल अधिनियम में किए गए संशोधनों की पृष्ठभूमि में अधिसूचित किए गए हैं।
संशोधित जल अधिनियम में अधिनियम के उल्लंघन और अपराधों का वि-अपराधीकरण (Decriminalise) करते हुए उसके स्थान पर जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
इसी वर्ष जुलाई में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जल अधिनियम में कुछ संशोधनों को प्रभावी बनाने के लिए गैर-प्रदूषणकारी 'श्वेत' श्रेणी (White Category) के उद्योगों को जल अधिनियम के तहत स्थापित एवं संचालित करने के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त करने से छूट देने वाले नियमों को भी अधिसूचित किया था।
इन संशोधनों ने केंद्र को अपराधों एवं उल्लंघनों पर निर्णय लेने और जुर्माना निर्धारित करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त करने की भी अनुमति दी थी।
नए नियमों के अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्रदूषण नियंत्रण समितियाँ और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में अपने अधिकृत अधिकारियों या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से अधिनियम की धारा 41, 41ए, 42, 43, 44, 45ए और 48 के तहत किए गए किसी भी उल्लंघन के संबंध में निर्णायक अधिकारी को शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
अधिनियम की ये धाराएँ औद्योगिक अपशिष्ट और प्रदूषकों के उत्सर्जन मानदंडों के उल्लंघन से संबंधित हैं।
नियमों के अनुसार, निर्णायक अधिकारी के पास उन व्यक्तियों को नोटिस जारी करने का अधिकार है जिनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है।
निर्णायक अधिकारी को राज्य सरकार के संयुक्त सचिव या सचिव के पद से नीचे का व्यक्ति नहीं होना चाहिए।
कथित उल्लंघनकर्ता स्वयं का किसी विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से बचाव कर सकता है।
नियमों के अनुसार पूरी प्रक्रिया विपक्षी पक्ष को नोटिस जारी करने के छह महीने के भीतर पूरी करनी होगी।
संशोधित नियमों का प्रभाव
अधिनियमों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से मुक्त करने से इससे संबंधित लंबित मामलों में कमी आएगी।
अधिकृत अधिकारियों के अलावा अन्य व्यक्तियों के माध्यम से भी दर्ज की गई शिकायतों पर कार्यवाई करने से अधिनियम के अनुपालन में वृद्धि होगी।
अधिनियम के उल्लंघन की स्थिति में एक निश्चित समयावधि के भीतर पूरी कार्यवाई करने से मालों के निस्तारण में तेजी आएगी।
संशोधन के तहत उल्लंघनकर्ता को भी अपने बचाव के लिए विधिक प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है जो न्यायिक शासन में पारदर्शिता एवं विश्वास बहाली को मजबूत करता है।