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पंचायतों के सशक्तिकरण की आवश्यकता : विश्व बैंक

संदर्भ 

विश्व बैंक के एक हालिया नीति शोध पत्र के अनुसार, ग्राम पंचायतों को स्थानीय करों से राजस्व जुटाने के लिए अधिक अधिकार एवं शक्ति दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें अधिक नागरिक-उन्मुख बनाया जा सके। इससे वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकेगा।

भारत में पंचायती राज व्यवस्था 

  • भारत में पंचायतों से संबंधित अनेक समितियों का गठन किया गया, जैसे- बलवंत राय मेहता, अशोक मेहता समिति, हनुमंत राव समिति, जी. वी. के. राव. समिति।
  • इन समितियों के परिणामस्वरूप वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा ग्राम सभा, मध्यवर्ती एवं जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया।  
    • इस संशोधन से भारतीय संविधान में भाग- IX और अनुसूची 11 को जोड़ा गया।
    • इस अधिनियम में राज्यों को आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया गया जिससे गांव स्तर पर ग्राम पंचायतों का औपचारिकीकरण हो सके और उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सहायता मिल सके।
  • भारत में स्थान विशेष की परिस्थितियों के आधार पर द्विस्तरीय एवं त्रिस्तरीय पंचायती प्रणाली लागू की गई है।
  • 73वें संशोधन अधिनियम के 24 अप्रैल, 1993 में लागू होने के बाद से प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।

पंचायती राज व्यवस्था पर विश्व बैंक का नीति शोध पत्र 

  • विश्व बैंक द्वारा जारी 'दो सौ पचास हजार लोकतंत्र: भारत में ग्राम सरकार की समीक्षा' (Two Hundred and Fifty Thousand Democracies: A Review of Village Government in India) शीर्षक वाले नीति शोध पत्र में स्थानीय राजनेताओं एवं नौकरशाहों, राजनीतिक आरक्षण, सार्वजनिक वित्त, विचार-विमर्श, लोकतंत्र एवं सेवा वितरण की प्रभावशीलता पर अनुभव से प्राप्त प्रमुख निष्कर्षों को उल्लेखित किया गया है।

नीति शोध पत्र के मुख्य बिंदु  

  • पंचायतों से अधिकार छीनने की बजाए उन्हें अधिक अधिकार सौंपना प्रभावी स्थानीय शासन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज के संस्थागतकरण ने 'अंतिम छोर' के कार्यान्वयनकर्ता के रूप में पंचायतों की भूमिका को बढ़ाया है किंतु ग्राम पंचायतों को निर्णय लेने की शक्तियां सौंपने की दिशा में प्रगति धीमी रही है।
  • 73वें संशोधन के पारित होने के तीन दशक से अधिक समय बाद भी पंचायतें पूर्णतया स्वतंत्र रूप से काम करने वाली इकाइयाँ नहीं हैं। वे लगभग पूरी तरह से राज्य और राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा दिए गए अनुदान पर निर्भर हैं। 
  • कई राज्यों में पंचायतों को संपत्ति कर वसूलने की अनुमति तो है किंतु यह आवश्यक वित्त क्षमता से बहुत कम है। 
    • उदाहरण के लिए, देश में सर्वाधिक विकेंद्रीकृत पंचायत प्रणालियों में से एक केरल में वर्ष 2013-14 में स्थानीय करों द्वारा केवल 9.16% व्यय का वित्तपोषण किया गया था। 
    • कर्नाटक में वर्ष 2020-21 में 2.77% व्यय स्थानीय करों द्वारा वित्तपोषित किया गया था। 
  • कार्यपत्र में ‘अक्षमताओं’ पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि ग्राम पंचायत परिषद के सदस्य ब्लॉक विकास कार्यालयों एवं जिला कलेक्ट्रेट में अत्यधिक समय बिताते हैं तथा सशक्त निर्णयकर्ता के बजाय मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं।

पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए नीति पत्र में प्रस्तुत सिफारिशें 

विकेंद्रीकरण के स्तरों का पुनर्मूल्यांकन

  • तीन महत्वपूर्ण F’s अर्थात Functions (कार्य), Finance (वित्त) तथा Functionaries (कार्यकर्ता) पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है और पंचायतों से उनकी शक्ति छीनने के बजाए उन्हें अधिक अधिकार सौंपें जाने चाहिए।
  • पंचायत के भीतर अधिकार विभाजन बढ़ाने का एक तरीका वार्ड सदस्यों को सशक्त बनाना है। 
    • कई राज्यों में वार्ड सदस्यों के पास वित्तीय संसाधनों तक पहुँच नहीं है और वे केवल रबर स्टैम्प हैं, फिर भी वे ग्राम पंचायत प्रमुखों पर नियंत्रणकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। 
  • वार्ड सदस्यों को वित्तीय रूप से संसाधन आवंटित करके सशक्त बनाने से पंचायतों को बेहतर ढंग से कार्य करने में मदद मिलेगी।

स्थानीय कर क्षमता का निर्माण 

  • पंचायतों की स्थानीय कर क्षमता का निर्माण कर संग्रह कार्यों के हस्तांतरण द्वारा किया जाना चाहिए। हालाँकि, कर संग्रह कई अन्य सुधारों से भी बेहतर हो सकता है, जैसे : 
    • कर संग्राहक के रिक्त पदों को भरना; डिजिटाइज्ड ग्राम मानचित्रों सहित बेहतर संपत्ति रिकॉर्ड बनाना और ग्राम पंचायतों को अपने स्वयं के कर तथा उपकर लगाने की अधिक स्वतंत्रता देना।

ग्राम सभाओं को मजबूत करना

  • ग्राम सभाएं प्रभावी ग्राम प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। इनकी प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए ग्राम नियोजन एवं सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए लाभार्थियों के चयन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल करने के लिए इनकी शक्तियों का विस्तार करने की सिफारिश की गई है।
  • नागरिकों की चिंताओं, शिकायतों एवं आकांक्षाओं को सक्रिय रूप से सुनने के लिए ग्राम सभाओं का उपयोग मंच के रूप में करने का सुझाव दिया गया है।

प्रशासनिक डाटा की गुणवत्ता में सुधार

  • प्रशासनिक डाटा की गुणवत्ता में सुधार करना और इसे सुलभ प्रारूप में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने की आवश्यकता है जिसके लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता न हो। 
  • नागरिकों के साथ मिलकर बनाए गए प्रभावी विज़ुअलाइज़ेशन, मानचित्र एवं इंटरैक्टिव डैशबोर्ड के उपयोग से समुदाय के सभी सदस्यों द्वारा व्यापक समझ एवं विश्लेषण की सुविधा मिल सकती है। 

पंचायतों के लिए स्कोरिंग सिस्टम विकसित करना

  • ग्राम पंचायत प्रदर्शन को स्कोर करने की एक स्वतंत्र एवं विश्वसनीय प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
  • इसके लिए ऐसी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किया जाने वाला डाटा विश्वसनीय हो और ‘स्व-रिपोर्ट’ न किया गया हो।
  • स्कोरिंग सिस्टम का आकलन एक स्वतंत्र निकाय द्वारा मूल्यांकन किए गए मानक मेट्रिक्स का उपयोग करके किया जाना चाहिए, जिससे किसी प्रकार का समझौता न किया जा सके। 

शिकायत निवारण प्रणाली का निर्माण 

औपचारिक एवं प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करने से नागरिक संबंधित उच्च अधिकारियों को अपनी समस्याओं की रिपोर्ट कर सकेंगे, जो सीधे उन पर कार्रवाई कर सकते हैं। 

निष्कर्ष 

भारतीय संविधान के 73वें संशोधन ने 800 मिलियन नागरिकों को कवर करते हुए 250,000 ग्राम लोकतंत्र (ग्राम पंचायत) का निर्माण किया, जिससे नियमित चुनाव, विचार-विमर्श, महिलाओं व वंचित जातियों के लिए राजनीतिक आरक्षण अनिवार्य कर दिया गया। हालाँकि, अभी भी पंचायतों के कामकाज में सुधार के लिए शक्ति हस्तांतरण और बेहतर स्थानीय राजकोषीय क्षमता में सुधार पर बल दिए जाने की आवश्यकता है।

भारत में पंचायती राज का इतिहास : प्राचीन काल से आधुनिक काल तक

प्राचीन भारत 

  • पंचायती राज की उत्पत्ति भारत में वैदिक काल (1700 ईसा पूर्व) में हुई। 
  • गांवों के समूहों को एक साथ लाकर गण नामक गणराज्य बनाया गया, जिसका शासन प्रतिनिधि सभाओं द्वारा किया जाता था। 
  • तीसरी शताब्दी ई. पू. में सम्राट अशोक के शासनकाल में स्थानीय स्तर पर वाद-विवाद, चर्चा, मत देने की प्रथाएं प्रचलित हो गईं थी। 
  • तमिलनाडु में पल्लव एवं पांड्य काल में 7वीं व 8वीं सदी में स्वायत्त ग्राम सरकारें अस्तित्व में थीं। 

मध्यकालीन भारत 

  • 9वीं सदी में चोल काल में उथिरामेरुर के शिलालेखों में न केवल विचार-विमर्श के माध्यम से सर्वसम्मति की भूमिका का वर्णन है बल्कि सीलबंद मतपेटियों का उपयोग करके ग्राम परिषद के लिए पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया का भी वर्णन है।
  • दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य में भी ऐसी ही संस्थाएँ मौजूद थीं, जिसमें ग्राम नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों की विस्तृत सूचियाँ थीं।
  • उत्तर भारत में मुगलों के आगमन के साथ ग्राम पंचायतों की पारंपरिक प्रणाली अपने सभी असंख्य रूपों में काफी हद तक अछूती ही रही। 

ब्रिटिश भारत 

  • लार्ड रिपन की सिफारिशों के अनुरूप अंग्रेजों ने स्थानीय सरकार की त्रिस्तरीय प्रणाली भी शुरू की, जिसमें पंचायतों, तालुकों एवं जिलों के लिए शासी निकाय शामिल थे। 
  • अंग्रेजों ने स्थानीय स्तर पर, जहाँ भी संभव था, अल्पसंख्यकों (मुसलमानों, निम्न जातियों) के लिए सीटों के ‘आरक्षण’ की प्रणाली शुरू की।
  • शासन में अधिक विकेंद्रीकरण का आकलन करने के लिए वर्ष 1907 में ‘भारत में विकेंद्रीकरण पर शाही आयोग’ की स्थापना की गई थी।

संविधान सभा में चर्चा 

  • महात्मा गांधी ने अपनी ‘ग्राम स्वराज’ की अवधारणा में पंचायती राज को भारत की राजनीतिक प्रणाली की नींव के रूप में वकालत की थी। 
  • हालांकि, भारत के संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष अंबेडकर ने गांधी जी के ग्राम स्वराज के विचार और ग्राम सरकारों को शक्तियों के हस्तांतरण का कड़ा विरोध किया।
  • किंतु संविधान सभा में के. संथानम सहित कई सदस्यों, जैसे- एन.सी. रंगा, टी. प्रकाशम एवं सुरेंद्र मोहन घोष ने पंचायती राज का समर्थन किया और अंबेडकर का विरोध किया। 
  • अंततः संविधान सभा ने अनुच्छेद 40 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में पंचायती राज से संबंधित एक प्रावधान शामिल किया, जिसमें कहा गया कि राज्य ग्राम पंचायतों को संगठित करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ व अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक हो।

स्वतंत्रता पश्चात 

  • संसद सदस्य बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति ने (जनवरी 1957 में गठित) पंचायती राज की स्थापना का सुझाव दिया।
  • जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज का उद्घाटन 2 अक्तूबर, 1959 को नागौर (राजस्थान) में किया था। 
  • वर्ष 1992 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 73वां संविधान संशोधन अधिनियमित किया, जिसने पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से स्थानीय शासन की विकेंदीकृत प्रणाली की शुरूआत की। 

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