चर्चा में क्यों
तमिलनाडु में लाल रेत वाले रेगिस्तान 'थेरी' (कुथिराइमोझी थेरी) में हुए पेट्रोग्राफिकल अध्ययन (पेट्रोग्राफी चट्टानों की संरचना और गुणों का अध्ययन) एवं एक्स-रे विवर्तन विश्लेषण के माध्यम से भारी और हल्के खनिजों की उपस्थिति का पता लगाया गया है।
थेरी मरुस्थल
- तमिलनाडु राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में बंगाल की खाड़ी की ओर स्थित तटरेखा पर थूथुकुडी ज़िले में स्थित इस मरुस्थल में लाल रेत के टीले हैं। लाल टीलों को तमिल में 'थेरी' कहा जाता है।
- पेट्रोग्राफी के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि इस क्षेत्र में निम्नलिखित भारी और हल्के खनिजों की उपस्थिति है –
- इल्मेनाइट (Ilmenite)
- मैग्नेटाइट (Magnetite)
- रूटाइल (Rutile)
- गार्नेट (Garnet)
- जिक्रोन (Zircon)
- डायोपसाइड (Diopside)
- टूमलाइन (Tourmaline)
- हेमेटाइट (Hematite)
- गोएथाइट (Goethite)
- क्यानाइट (Kyanite)
- क्वार्ट्ज (Quartz)
- फेल्ड्सपर (Feldspar)
- बायोटाइट (Biotite)
- अध्ययन में पाया गया कि रेत में मौजूद आयरन से भरपूर भारी खनिज (जैसे इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट, गार्नेट और रूटाइल) सतह के पानी से निक्षालित हो गए थे, जो अनुकूल अर्ध-शुष्क जलवायु परिस्थितियों में ऑक्सीकृत हो गए। यहीं कारण है कि इनका रंग लाल हो गया है।
निर्माण प्रक्रिया
- क्षेत्र के लिथोलॉजी (चट्टानों की सामान्य भौतिक विशेषताओं का अध्ययन) से पता चलता है कि यह क्षेत्र अतीत में एक पैलियो (प्राचीन) तट रहा होगा। यहाँ के कई स्थानों पर चूना पत्थर की उपस्थिति समुद्री अतिक्रमण का संकेत देती है।
- यह लाल रेत मई-सितंबर माह के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों द्वारा नांगुनेरी क्षेत्र के मैदानी भागों में लाल दोमट से युक्त क्षेत्र से लाई जाती है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनें, महेंद्रगिरि पहाड़ी एवं पश्चिमी घाटों के अरालवैमोझी अंतराल (इस क्षेत्र से लगभग 75 किलोमीटर दूर) को पार करने के पश्चात् शुष्क हो जाती हैं तथा तलहटी में मैदानी इलाकों से टकराती हैं, जहाँ वनस्पति अत्यधिक विरल है।