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थोरियम मोल्टन साल्ट न्यूक्लियर रिएक्टर (Thorium Molten Salt Nuclear Reactor - TMSR)

THORIUM_MOLTEN_SALT_NUCLEAR_REACTOR

  • थोरियम मोल्टन साल्ट रिएक्टर (TMSR) एक विशेष प्रकार का न्यूक्लियर रिएक्टर (nuclear reactor) है, जिसमें थोरियम (Thorium) को ईंधन (fuel) के रूप में उपयोग किया जाता है — पारंपरिक रिएक्टरों में उपयोग होने वाले यूरेनियम (Uranium) की जगह।

मुख्य विशेषताएं:-

  • ईंधन का प्रकार (Type of Fuel):
    • यह रिएक्टर थोरियम-232 का उपयोग करता है।
    • थोरियम स्वयं सीधे नहीं जलता, लेकिन यूरेनियम-233 (Uranium-233) में परिवर्तित होकर ऊर्जा उत्पन्न करता है।
  • मोल्टन साल्ट (Molten Salt):
    • इस रिएक्टर में पिघला हुआ नमक (molten salt) ईंधन के रूप में कार्य करता है।
    • थोरियम और अन्य फ्यूल इस घोल (liquid mixture) में घुले रहते हैं।
  • प्रचालन विधि (Working Mechanism):
    • पारंपरिक रिएक्टरों की तुलना में यह रिएक्टर द्रव अवस्था (liquid state) में संचालित होता है, जिससे यह अधिक सुरक्षित और लचीला (flexible) बनता है।

TMSR के लाभ (Advantages):

  • सुरक्षा (Safety):
    • TMSR में meltdown (पिघलकर रिएक्टर नष्ट होने) की संभावना बहुत कम होती है।
    • उच्च तापमान में भी यह रिएक्टर स्वयं को ठंडा करने की क्षमता (passive cooling) रखता है।
  • थोरियम की उपलब्धता (Abundance of Thorium):
    • थोरियम यूरेनियम की तुलना में अधिक मात्रा में पाया जाता है, विशेष रूप से भारत (India) में।
  • कम रेडियोधर्मी कचरा (Low Radioactive Waste):
    • थोरियम आधारित रिएक्टरों से निकलने वाला न्यूक्लियर वेस्ट (nuclear waste) अपेक्षाकृत कम और कम खतरनाक होता है।
  • नॉन-प्रोलिफरेशन (Non-proliferation):
    • थोरियम से उत्पन्न ईंधन का उपयोग परमाणु हथियारों (nuclear weapons) के निर्माण में नहीं किया जा सकता, जिससे यह अधिक सुरक्षित है।

तकनीकी चुनौतियाँ (Technical Challenges):

  • विकास और अनुसंधान (Development and R&D):
    • यह तकनीक अभी भी प्रायोगिक (experimental) स्तर पर है और इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए और अनुसंधान (research) की आवश्यकता है।
  • Corrosion:
    • मोल्टन साल्ट के कारण रिएक्टर के पाइप और उपकरणों पर जंग (corrosion) लग सकती है, जिसे रोकना तकनीकी चुनौती है।

भारत और थोरियम:-

  • भारत में थोरियम के भारी भंडार (large reserves) हैं — विशेषकर केरल और तमिलनाडु के समुद्री तटों पर।
  • भारत ने तीन चरणों की परमाणु नीति बनाई है, जिसमें तीसरे चरण में थोरियम आधारित रिएक्टरों का विकास शामिल है।

मुख्य विशेषताएं (Key Features) – Thorium Molten Salt Reactor

थोरियम का ईंधन के रूप में उपयोग (Use of Thorium as Fuel):

  • पारंपरिक न्यूक्लियर रिएक्टर (traditional nuclear reactors) यूरेनियम (Uranium) का उपयोग करते हैं, जबकि TMSR में थोरियम (Thorium) को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • थोरियम धरती पर अधिक मात्रा (abundant) में पाया जाता है और इसके कुछ सुरक्षा लाभ (safety advantages) भी हैं।

शीतलन प्रणाली (Cooling Mechanism):-

  • पारंपरिक रिएक्टरों में आमतौर पर पानी (water) का उपयोग शीतलन (cooling) के लिए किया जाता है।
  • लेकिन TMSR में पिघला हुआ नमक (molten salt) या कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) का प्रयोग गर्मी को स्थानांतरित करने (heat transfer) और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • यह विशेष शीतलन प्रणाली पानी की आवश्यकता को समाप्त करती है और परमाणु पिघलाव (nuclear meltdown) के खतरे को बहुत हद तक कम कर देती है।

पिघलाव का कम जोखिम (Lower Risk of Meltdown):

  • मोल्टन साल्ट रिएक्टर का डिज़ाइन स्वाभाविक रूप से (inherently) अधिक सुरक्षित होता है, क्योंकि पिघले हुए नमक का उबलने का तापमान बहुत अधिक (high boiling point) होता है और यह अत्यधिक तापमान पर भी स्थिर (stable at extreme temperatures) रहता है।
  • इसके अलावा, तरल ईंधन (liquid fuel) को सुरक्षित रूप से संसाधित (safely processed) किया जा सकता है।
  • यदि कोई तकनीकी विफलता (failure) होती है, तो पिघला हुआ नमक स्वतः एक सुरक्षित, ठंडे कंटेनर (cooled safety container) में बह सकता है, जिससे विस्फोट या दुर्घटना की संभावना नहीं होती।

जल-आधारित शीतलन की आवश्यकता नहीं (No Water Cooling):

  • पारंपरिक रिएक्टरों के विपरीत, TMSR में पानी आधारित शीतलन प्रणाली (water-based cooling system) की आवश्यकता नहीं होती।
  • इससे पानी से जुड़ी समस्याएं जैसे उच्च दबाव (high pressure), रिसाव (leakage), और अधिक ताप पर विस्फोट (explosion at overheating) से मुक्ति मिलती है।
  •  यह विशेषता रिएक्टर की प्रभावशीलता (efficiency) और सुरक्षा (safety) को और बेहतर बनाती है।

थोरियम-आधारित रिएक्टरों का महत्व (Importance of Thorium-Based Reactors)

प्रचुर मात्रा में उपलब्ध ईंधन (Abundant Fuel Supply):

  • थोरियम (Thorium) की उपलब्धता यूरेनियम (Uranium) की तुलना में कई गुना अधिक है, जिससे यह नाभिकीय ऊर्जा (nuclear energy) का एक दीर्घकालिक और टिकाऊ स्रोत (long-term and sustainable source) बन जाता है।
  • इसे खनन (mining) करना अधिक आसान होता है और यह यूरेनियम की तुलना में कम परमाणु अपशिष्ट (less nuclear waste) उत्पन्न करता है।

रासायनिक रूप से सुरक्षित (Chemically Safe):

  • थोरियम का गलनांक (melting point) बहुत अधिक होता है, जिससे यह यूरेनियम की तुलना में ज्यादा तापमान सहन कर सकता है
  • इसकी थर्मल कंडक्टिविटी (thermal conductivity) बेहतर होती है, जिससे यह गर्मी को अधिक प्रभावी ढंग से स्थानांतरित (efficient at transferring heat) करता है।
  • थोरियम रासायनिक रूप से निष्क्रिय (chemically inert) होता है, यानी यह अन्य पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता, जिससे रिएक्टर के संचालन में यह अधिक सुरक्षित होता है।

पर्यावरण के लिए सुरक्षित (Environmentally Safe):

  • थोरियम आधारित रिएक्टरों से उत्पन्न रेडियोधर्मी अपशिष्ट (radioactive waste) की मात्रा और विषाक्तता (toxicity) यूरेनियम रिएक्टरों की तुलना में बहुत कम होती है।
  • थोरियम से उत्पन्न उप-उत्पाद (by-products) की अर्ध-आयु (half-life) कम होती है, जिससे ये कम समय तक खतरनाक रहते हैं और इन्हें संभालना आसान होता है।

कम परमाणु अपशिष्ट (Reduced Nuclear Waste):

  • थोरियम रिएक्टरों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये कम स्तर का रेडियोधर्मी अपशिष्ट (low-level radioactive waste) उत्पन्न करते हैं।
  • जबकि यूरेनियम आधारित रिएक्टरों से लंबे समय तक सक्रिय (long-lived) और अधिक खतरनाक अपशिष्ट निकलता है, वहीं थोरियम से उत्पन्न अपशिष्ट छोटे समय के लिए सक्रिय (short-lived) और कम हानिकारक (less harmful) होता है।
  • इससे अपशिष्ट प्रबंधन (waste management) अधिक आसान और कम खर्चीला (less costly) हो जाता है।
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