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तीन हिमालयी औषधीय पौधे IUCN रेड डाटा बुक में शामिल

प्रारंभिक परीक्षा के लिए – मीज़ोट्रोपिस पेलिटा, फ्रिटिलारिया सिरोसा, डैक्टाइलोरिजा हतागिरेया
मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 –पर्यावरण संरक्षण

संदर्भ 

  • हाल ही में, IUCN ने एक आकलन के बाद, हिमालय में पाई जाने वाली तीन औषधीय पौधों को अपनी संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची (रेड डाटा बुक) में शामिल किया है। 
  • इस सूची में, मीज़ोट्रोपिस पेलिटा को गंभीर रूप से संकटग्रस्त(Critically endangered), फ्रिटिलोरिया सिरोहोसा को कमजोर( Vulnerable) और डैक्टाइलोरिजा हतागिरेया को लुप्तप्राय( Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

मीज़ोट्रोपिस पेलिटा

mesotropis pelita

  • मीज़ोट्रोपिस पेलिटा को स्थानीय रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं हिमालय में पटवा के रूप में जाना जाता है। 
  • यह एक स्थानिक झाड़ीदार प्रजाति है, जो गंभीर रूप से संकटग्रस्त है।
  • इन प्रजातियों को उनके पाये जाने के सीमित क्षेत्र (10 वर्ग किमी से कम) के आधार पर 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • वनों की कटाई, आवास विखंडन और जंगल की आग के कारण यह  विलुप्ति की ओर बढ़ रही है।
  • मीज़ोट्रोपिस पेलिटा की पत्तियों से निकाले गए तेल में एंटीऑक्सिडेंट तत्व होते हैं, इसका प्रयोग दवा उद्योगों में सिंथेटिक एंटीऑक्सिडेंट के प्राकृतिक विकल्प के रूप में किया जा सकता है।

फ्रिटिलारिया सिरोसा

fritillaria-cirrhosa

  • फ्रिटिलारिया सिरोसा (येलो हिमालयन फ्रिटिलरी) लिली परिवार की जड़ी-बूटी के पौधे की एक एशियाई प्रजाति है
  • यह चीन, तिब्बत, नेपाल, पाकिस्तान, भारत, भूटान तथा म्यांमार में पाई जाती है।
  • आकलन की अवधि (22 से 26 वर्ष) के दौरान इसकी आबादी लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गयी। 
  • गिरावट की दर, खराब अंकुरण क्षमता, उच्च व्यापार मूल्य, व्यापक कटाई और अवैध व्यापार को ध्यान में रखते हुए, इस प्रजाति को IUCN की रेड लिस्ट में 'कमजोर' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह पौधा पारंपरिक चीनी चिकित्सा में एक मजबूत खांसी दमनकारी और कफ निस्सारक दवाओं का स्रोत भी है।
  • चीन में इसका उपयोग ब्रोन्कियल विकारों और निमोनिया के इलाज के लिए भी किया जाता है। 

डैक्टाइलोरिजा हतागिरेया

Dactylorhiza-hatagirea

  • डैक्टाइलोरिजा हतागिरेया (सालम मिश्री या सालम पंजा), उप-अल्पाइन से अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक बारहमासी जड़ी बूटी है।
  • यह अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के हिंदू कुश और हिमालय पर्वतमाला में पाई जाने वाली एक बारहमासी कंद प्रजाति है।
  • आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और लोक चिकित्सा में इसका उपयोग, संक्रामक रोगों से लड़ने, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने, संचार, श्वसन, तंत्रिका, पाचन, कंकाल और प्रजनन प्रणाली के विकारों को ठीक करने में किया जाता है।
  • टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने के लिए एक आहार पूरक के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • इस प्रजाति को निवास स्थान के नुकसान, पशुधन चराई, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से प्रमुख खतरा है। 

IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची(रेड डाटा बुक)

  • रेड डाटा बुक, प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) द्वारा संचालित एक सार्वजनिक डेटाबेस है।
  • यह विश्व की जैव विविधता के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। 
  • रेड डाटा बुक, लुप्तप्राय और संकटग्रस्त पौधों, जानवरों और कवक प्रजातियों के साथ-साथ कुछ स्थानीय उप-प्रजातियों का ट्रैक करती है जो किसी दिए गए क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • यह प्रजातियों की सीमा, जनसंख्या का आकार, आवास और पारिस्थितिकी, उपयोग और व्यापार, खतरों और संरक्षण कार्यों के बारे में जानकारी प्रदान करती है जो संरक्षण निर्णयों को सूचित करने में मदद करती है।
  • सरकारों द्वारा जैव विविधता हानि को कम करने के लक्ष्यों की दिशा में उनकी प्रगति को ट्रैक करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड डाटा बुक 1964 में स्थापित की गई थी।

IUCN (प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ)

  • IUCN की स्थापना 1948 में की गई थी।
  • इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विट्जरलैंड में है।
  • यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो प्रकृति के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत दोहन को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।
  • IUCN के सदस्यों में राज्य और गैर सरकारी संगठन दोनों शामिल हैं।

उद्देश्य

  • जैव विविधता संरक्षण में सहायता के लिए वैज्ञानिक ज्ञान और उपकरण प्रदान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  • विश्व स्तर पर प्रजातियों और उप-प्रजातियों की स्थिति के बारे में वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करना।
  • प्रजातियों और जैव विविधता के विलुप्त होने के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • जैव विविधता संरक्षण के लिए एक रूपरेखा तैयार करना।
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