प्रारम्भिक परीक्षा – त्रिशूर पूरम उत्सव मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-1 |
संदर्भ
प्लास्टिक मुक्त पूरम उत्सव सुनिश्चित करने के लिए कोचीन देवास्वोम बोर्ड और त्रिशूर निगम को केरल उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कोचीन देवास्वोम बोर्ड (Cochin Devaswom Board : CDB) और त्रिशूर निगम को अपने पहले के निर्देशों का अक्षरश: पालन करने का निर्देश दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि त्रिशूर के पूरे थेक्किंकडु मैदान को प्लास्टिक मुक्त रखा जाए और इस दौरान किसी भी संगीत कार्यक्रम की अनुमति न दी जाए।
- न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन की अगुवाई वाली खंडपीठ ने परिसर में जमा कचरे के निपटान के संबंध में एक शिकायत के आधार पर दर्ज मामले का निपटारा करते हुए 11 जनवरी 2024 को यह आदेश पारित किया।
- थेक्किंकडु मैदान पर त्रिशूर पूरम के 'कुदामट्टम' समारोह में लोगों की भीड़ उमड़ती है, जिससे प्लास्टिक एवं ध्वनि प्रदूषण होने का खतरा रहता है।
कोचीन देवास्वोम बोर्ड (Cochin Devaswom Board : CDB) :-
- इस बोर्ड का गठन त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, 1950 के XV अधिनियम के तहत किया गया था।
उद्देश्य :-
- इस अधिनियम का उद्देश्य कोचीन के निगमित और अनिगमित देवस्वम और अन्य हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती और निधियों के प्रशासन, पर्यवेक्षण और नियंत्रण के प्रावधान करना है।
- कोचीन में प्रत्येक मंदिर का नियंत्रण कोचीन देवास्वोम बोर्ड द्वारा किया जाता है।
- कोचीन देवास्वोम बोर्ड के वित्तीय पहलुओं को निम्नलिखित समूहों चोट्टानिक्कारा,त्रिशूर, तिरुवंचिकुलम, तिरुविल्वामाला, थ्रिप्पुनिथुरा के द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
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त्रिशूर पूरम उत्सव:-
- इस त्योहार को सभी पूरमों की जननी माना जाता है और यह सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और परंपराओं की एक प्रभावशाली प्रदर्शनी है, जिसमें सजे हुए हाथी, रंगीन छतरियां और ताल संगीत आदि शामिल होते हैं।
- यह त्योहार केरल की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत मिश्रण है।
- इस त्योहार का मुख्य आकर्षण, 'वेदिककेट्टू' यानी आतिशबाजी का प्रदर्शन है।
- यह उत्सव प्रत्येक वर्ष मलयालम महीने मेडम (अप्रैल-मई) या पूरम दिवस पर केरल के त्रिशूर के थेक्किंकडु मैदानम में स्थित वडक्कुनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है।
- यह केरल के सबसे पुराने मंदिर त्योहारों में से एक है।
- यह परंपरा केरल में 200 वर्षों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है ।
- इस त्योहार को भारत के सभी पूरमों में से सबसे बड़ा और प्रसिद्ध माना जाता है।
- इस उत्सव की शुरुआत कोचीन के महाराजा शक्तिन सक्थन थंपुरन या राम वर्मा IX (1790-1805) के द्वारा 10 मंदिरों (परमेक्कवु, थिरुवंबदी कनिमंगलम, करमुक्कू, लालूर, चूराकोट्टुकरा, पनामुक्कमपल्ली, अय्यनथोले, चेम्बुकावु, नेथिलाकावु) की भागीदारी के साथ किया गया था।
विशेषता:-
- इस उत्सव की शुरुआत ध्वजारोहण समारोह (कोडियेट्टम) से होती है, जो त्योहार से 7 दिन पहले होता है।
- इस उत्सव में हाथियों की बहुत बड़ी भूमिका है। इसमें हाथियों को नेट्टीपट्टम (सजावटी सुनहरा हेडड्रेस) ,कोलम, घंटियों और आभूषणों से सजाया जाता है।
- उत्सव में पुरा विलांबरम नाम की एक प्रथा के तहत गहनों से सजा हुआ एक हाथी (ऊपर 'नीथिलाक्कविलम्मा' की मूर्ति रखी रहती है), वडक्कुनाथन (शिव) मंदिर के दक्षिणी प्रवेश द्वार को धक्का देकर खोलता है।
- उत्सव में दो दिन आतिशबाज़ी यानी वेदिकेट्टू की जाती है। मुख्य उत्सव सुबह-सुबह कनीमंगलम सस्थवु एज़ुनेलिप्पु के समय शुरू होता है।
- त्रिशूर पूरम का एक मुख्य आकर्षण संगीत समूह है, जिसमें मद्दलम, एडक्का, थिमिला, चेंडा और कोम्बू जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र शामिल हैं।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न:-निम्नलिखित में से वार्षिक उत्सव 'त्रिशूर पूरम' का आयोजन किस राज्य में किया जाता है?
(a) आंध्र प्रदेश
(b) तमिलनाडु
(c) कर्नाटक
(d) केरल
उत्तर: (d)
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