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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

राज्य सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर अनुमति देने के लिए राज्यपाल के लिए समय-सीमा 

प्रारंभिक परीक्षा - राज्य सरकार, राज्यपाल, अनुच्छेद 200, अनुच्छेद 201
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व

संदर्भ 

  • जब संविधान सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया था, तो संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर इसमें कुछ अंतराल छोड़ दिए, ताकि भविष्य में लोगों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुसार, संसद संविधान को संशोधित कर सके, लेकिन इस अंतराल ने एक ऐसे संविधान को जन्म दिया जो कई मुद्दों पर मौन है, जिसके कारण विवाद उत्पन्न होते हैं।
    • संविधान का अनुच्छेद 200, जो विधान सभा द्वारा भेजे गए विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करने के लिए राज्यपाल के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है, इन्हीं अंतरालों में से एक है।
    • अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के लिए भी राज्य सरकार के विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।
  • इसका प्रयोग विभिन्न राज्यों के राज्यपालों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों के जनादेश को अस्पष्ट करने के लिए किया जाता है।
    • इसके प्रमुख उदाहरणों में तमिलनाडु के ऑनलाइन जुआ निषेध और ऑनलाइन खेलों के नियमन विधेयक, 2022 (तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित) तथा केरल लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2022 शामिल हैं। 
    • सिर्फ तमिलनाडु में ही लगभग 20 विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के लिए लंबित है।

राष्ट्रपति द्वारा संसद द्वारा पारित विधेयकों पर अनुमति (अनुच्छेद 111) 

  • जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है  तो वह राष्‍ट्रपति की अनुमति के लिए उसके समक्ष प्रस्‍तुत किया जाता है। 
  • राष्‍ट्रपति विधेयक पर या तो अनुमति दे सकता है या अपनी अनुमति रोक सकता है या यदि वह धन विधेयक न हो, तो उसे पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेज सकता है। 
  • यदि विधेयक सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति देने के लिए बाध्य होगा।
  • राष्ट्रपति किसी विधेयक पर 3 प्रकार की वीटो शक्ति का प्रयोग भी कर सकता है –

1. पॉकेट वीटो: राष्ट्रपति द्वारा पॉकेट वीटो का प्रयोग कर विधेयक को अनिश्चित काल के लिये लंबित रखा जाता है।

    • इसके अंतर्गत वह ना तो विधेयक को अस्वीकार करता है और ना ही विधेयक को पुनर्विचार के लिये लौटाता है।

2. पूर्ण वीटो: यह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर राष्ट्रपति को अपनी सहमति को रोकने की शक्ति को संदर्भित करता है। इसके बाद विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता है।

3. निलम्बनकारी वीटो : धन विधेयक के अतिरिक्त राष्ट्रपति को भेजा गया कोई भी विधेयक, वह संसद को पुनर्विचार हेतु वापिस भेज सकता है किंतु संसद यदि इस विधेयक को पुनः पास कर के भेज दे तो उसके पास सिवाय इसके कोई विकल्प नहीं है कि उस बिल को स्वीकृति दे दे।

  • संवैधानिक संशोधन विधेयकों पर राष्ट्रपति किसी प्रकार की वीटो शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।

राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अनुमति देने के लिए समय-सीमा के पक्ष में तर्क 

  • जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने सुझाव दिया था कि अनिश्चित काल के लिए किसी विधेयक पर अनुमति को रोकना राज्यपाल के सम्मान के अनुकूल नहीं है।
  • 2000 में गठित संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की थी कि, राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक को अनुमति देने या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने पर निर्णय लेने के लिए एक समय-सीमा होनी चाहिए।
  • प्रशासनिक कानून के अंतर्गत, प्रशासनिक मंजूरी देने में अनुचित देरी कानून के शासन का उल्लंघन होगा, इसलिए राज्यपाल को उचित समय के अंदर विधेयकों को स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिये।
  • राज्यपाल का कर्तव्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि एक निर्वाचित सरकार संविधान के मापदंडों के भीतर कार्य कर रही है। 
    • विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा निर्धारित ना होने के कारण राज्यपाल को अनिश्चित काल के लिए विधेयकों पर अनुमति को नहीं रोकनी चाहिये।

राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अनुमति देने के लिए समय-सीमा के विपक्ष में तर्क

  • अनुच्छेद 200 का वास्तविक उद्देश्य राज्यपाल को नियंत्रण और संतुलन की शक्ति प्रदान करना है, ताकि राज्यों द्वारा अधिनियमित कानूनों को केंद्रीय कानूनों के प्रतिकूल होने से रोका जा सके।
  • यह अनुच्छेद राज्यपाल को राज्यों द्वारा जल्दबाजी में बनाए गए कानूनों के खिलाफ सुरक्षा-वाल्व की भूमिका प्रदान करता है।
  • पुरुषोत्तम नंबुदिरी बनाम केरल राज्य (1962) में, सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान कोई समय सीमा आरोपित नहीं करता है, जिसके भीतर राज्यपाल को विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करनी चाहिए।
  • इस संबंध में सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि मौजूदा प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अनुमति देने में होने वाले बिलंब से बचा जा सकता है।
    • विधेयक के प्रारूपण के चरण में ही राज्यपाल के साथ पूर्व परामर्श करके इसके निपटान के लिए समय-सीमा निर्धारित कर ली जानी चाहिये।

राज्यपाल 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153, के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए, एक राज्यपाल होगा, परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त किये जाने से नहीं रोकेगी।
  • संविधान के अनुच्छेद 155, के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • अनुच्छेद 156, के अनुसार राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा।
    • राज्यपाल, राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, अपना पद त्याग सकेगा।
  • अनुच्छेद 157, के अनुसार, कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक हो, और 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है।
  • अनुच्छेद 158,  राज्यपाल पद पर नियुक्ति के लिए शर्तें-
    • राज्यपाल संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा। 
    • यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है, तो यह समझा जाएगा, कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
    • राज्यपाल, अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
    • राज्यपाल, ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों को, जो संसद, विधि द्वारा निर्धारित करे, प्राप्त करेगा।
    • यदि एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो उस राज्यपाल को संदेय उपलब्धियाँ और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में दिये जायेंगे, जो राष्ट्रपति अपने आदेश द्वारा निर्धारित करे।
    • राज्यपाल की उपलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जायेंगे।

राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य

  • संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार, राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी, और वह इसका प्रयोग इस संविधान के प्रावधानों के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। 
  • अनुच्छेद 161, किसी राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी अपराध के लिए दोषी ठहराये गये, व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 163, के अनुसार, जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है, कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे, उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा।
    • इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी, कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या सलाह दी।
  • अनुच्छेद 164, के अंतर्गत, राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  • अनुच्छेद 166, के अनुसार, किसी राज्य सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राज्यपाल के नाम से की जाएगी।
  • अनुच्छेद 167, के अनुसार प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होगा, कि वह राज्य के कार्यों के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं सम्बन्धी मंत्रिपरिषद् के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे।
  • अनुच्छेद 174, के अनुसार राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह महीने से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये।
    • राज्यपाल, समय-समय पर, किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा या विधान सभा का विघटन कर सकेगा।
  • अनुच्छेद 188, के अनुसार, राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा, और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
  • अनुच्छेद 200, के अनुसार, जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है, तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा, कि वह विधेयक पर अनुमति देता है, या अनुमति रोक लेता है, अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है।
  • अनुच्छेद 202, के अंतर्गत, राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों के समक्ष उस राज्य की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा।
  • अनुच्छेद 213, के अंतर्गत, उस समय को छोड़कर जब किसी राज्य की विधान सभा सत्र में है, या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राज्यपाल को यह समाधान हो जाता है, कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, जिनके कारण तुरन्त कार्यवाही करना उसके लिए आवश्यक हो गया है, तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा, जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।

राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में विभिन्न आयोगों द्वारा दिए गए सुझाव 

  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था, कि राज्यपाल के पद पर किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिये, जो किसी दल विशेष से संबंधित ना हो।
  • केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने के लिए, वर्ष 1983 में गठित सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था, कि राज्यपालों की नियुक्ति के लिए, भारत के उपराष्ट्रपति, लोकसभा के अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री से परामर्श किया जाना चाहिये।
  • वर्ष 2000 में, संविधान के कामकाज की समीक्षा पर गठित राष्ट्रीय आयोग ने किसी राज्य के राज्यपाल को उस राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श के बाद, नियुक्त किये जाने का सुझाव दिया था।
  • वेंकटचलैया आयोग (2002) ने सुझाव दिया, कि राज्यपाल की नियुक्ति प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री की एक समिति को सौंपी जानी चाहिए।
    • यदि राज्यपाल को कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाया जाना है तो केंद्र सरकार को मुख्यमंत्री से सलाह करने के बाद ही, ऐसा करना चाहिए।
  • केंद्र-राज्य संबंधों पर वर्ष 2007 में गठित पुंछी आयोग ने सुझाव दिया, कि राज्यपाल का चयन, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री की एक समिति द्वारा किया जाना चाहिये।

राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय 

  • 1979 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, कि राज्यपाल का पद, केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है, यह एक स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालय है।
  • शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया, कि कुछ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, राष्ट्रपति और राज्यपाल, मंत्रिपरिषद की राय के अनुसार ही अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करेंगे।
  • नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष (2016), मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया, कि राज्यपाल के विवेक के प्रयोग से संबंधित अनुच्छेद 163 की शक्तियाँ सीमित है, और उसके द्वारा की जाने वाली कार्यवाही मनमानी ना होकर तार्किक एवं तथ्यों पर आधारित होनी चाहिये।
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