New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध और भारतीय अर्थव्यवस्था) 

संदर्भ

भारत, यूरोपीय संघ (ई.यू.) के साथ निवेश और व्यापार समझौते पर पुन: बातचीत शुरू करने की योजना बना रहा है। ऐसे में यूरोप की वर्तमान राजनीतिक व रणनीतिक स्थिति और बढ़ते विभाजन पर ध्यान देना आवश्यक है।

यूरोपीय संघ की वर्तमान स्थिति

  • यूरोपीय संघ की वर्तमान स्थिति असामान्य और अशांत है। कोविड-19, ब्रेक्ज़िट और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कारण उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय तनावों ने यूरोपीय संघ को अस्थिर कर दिया है और आंतरिक कलह में वृद्धि की है।
  • वर्ष 2020 ने यूरोपीय संघ में एकता की संरचनात्मक कमी को प्रदर्शित किया है, क्योंकि मज़बूत एकीकरण की इच्छा के बावजूद इसने चीन, रूस, तुर्की और ईरान से संबंधित रणनीति में कई बाधाओं व असमानताओं का सामना किया है।
  • हंगरी और पोलैंड की आपत्तियों पर गंभीर बातचीत के बाद सदस्य देशों ने आखिरकार एक दीर्घकालिक बजट और $2 ट्रिलियन के कोविड-19 रिकवरी पैकेज पर सहमति व्यक्त की।
  • दोनों देशों ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिये किये जा रहे नीतिगत बदलावों का विरोध किया। ये नीतियाँ सुशासन, मानवाधिकार और न्यायपालिका में स्वतंत्रता से सम्बन्धित हैं।

यूरोपीय संशयवाद

  • महामारी और मंदी के दौरान यूरोपीय संघ द्वारा अपने बजट को व्यवस्थित करने की कोशिश ने सदस्यों के बीच केवल वीटो पावर के प्रयोग को बढ़ावा दिया है।
  • दो मुख्य विरोधियों के अतिरिक्त कई अन्य सदस्यों ने भी नागरिक स्वतंत्रता पर पुनर्विचार किया और असहमति वाले सदस्यों को छोड़कर कोविड-19 रिकवरी फंड को मंजूरी देने का विकल्प बनाया, जोकि यूरोपीय संघ की एकजुटता को लेकर एक खतरनाक प्रस्ताव है।
  • ई.यू. को छोड़ने के लिये केवल ब्रिटेन ने ही व्यापक आंदोलन नहीं चलाया, बल्कि यूरोप के कई यूरोसैप्टिक दलों (यूरोपीय संशयवादी) ने अब अत्यधिक एकीकरण को रोकने पर ध्यान केंद्रित किया हैं, जो कि यूरोजोन, प्रवासी संकट और कोविड-19 लॉकडाउन को लागू करने में दिखाई देता है।
  • जर्मनी और नीदरलैंड सहित यूरोपीय संघ के कई देशों में चुनाव होने वाले हैं। इन दोनों देशों में एक मज़बूत यूरोसैप्टिक आंदोलन का उभार हो रहा हैं। यूरोसैप्टिक दलों के डर ने मुख्यधारा के राजनेताओं को लोकप्रिय राजनीतिक बयानबाजी के लिये मजबूर किया है, जैसा की ब्रिटेन में दिखाई पड़ रहा है।
  • डच प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लाम और अन्य आप्रवासियों की आलोचना की है और यह पैटर्न जर्मनी, चेक गणराज्य तथा ऑस्ट्रिया सहित कई अन्य यूरोपीय देशों में देखा जा रहा है।

ट्रम्प और उनके बाद की स्थिति

  • ट्रम्प के राष्ट्रपतित्त्व काल ने यूरोप को अमेरिका के साथ अपने संबंधों के पुनर्मूल्यांकन के लिये मजबूर किया, जिसने सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, आपूर्ति श्रृंखला एवं जलवायु परिवर्तन में यूरोपीय संघ को अधिक आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित किया और अमेरिका तथा चीन के साथ एक प्रमुख वैश्विक स्तंभ के रूप में उभरने के प्रयासों में वृद्धि की है।
  • हालाँकि, जो बाइडेन के बाद अमेरिका की नीतियों के बारे में अधिक अनुमान लगाया जा सकता है परंतु यूरोप अमेरिकी-चीन रस्साकसी में किसी का भी पक्ष लेने का प्रतिरोध करेगा। अमेरिका के प्रभाव में कमी का एक उदाहरण यूरोपीय संघ द्वारा चीन के साथ व्यापक निवेश समझौते के संबंध में अमेरिका से न्यूनतम परामर्श करना है।
  • सामान्य सुरक्षा और रक्षा नीति भी संघ में विभाजन का कारण है। जहाँ इमैनुअल मैक्रोन यूरोप की सुरक्षा का अधिक नियंत्रण यूरोप के हाथों में देखना चाहते हैं, वहीं जर्मनी, नीदरलैंड, पुर्तगाल और अन्य सदस्य सैन्य क्षमताओं के अधिक विकास की संभावना से असहज हैं तथा वे नाटो व अमेरिका द्वारा प्रदान की जा रही सुरक्षा से संतुष्ट हैं। साथ ही, वे चीन व रूस के साथ लाभदायक व्यवसाय में संलग्न रहना चाहते हैं।
  • कोविड-19 के कारण 40 वर्षों में पहली बार नीदरलैंड में दंगे हुए और इतालवी प्रधानमंत्री पर इस्तीफे का दबाव पड़ा। साथ ही इसने यूरोपीय संघ में वैक्सीन राष्ट्रवाद जैसे विभाजनकारी तत्त्वों को भी जन्म दिया।
  • यूरोपीय संघ को उम्मीद थी कि केंद्रीय टीकाकरण खरीद प्रक्रिया इसकी एकजुटता का प्रतीक होगी। हालाँकि, प्रारंभ में कुछ देशों ने अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था और जर्मनी व फ्रांस ने पी.पी.ई. किट के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। साथ ही, बड़े स्तर पर टीकाकरण वाले देशों की मंशा पर भी अन्य के द्वारा संदेह व्यक्त किया गया है।
  • जर्मनी ने फाईज़र के साथ टीका अनुबंध के लिये अलग से भी बातचीत की थी, जो कि संभवतः यूरोपीय एकजुटता का प्रबल समर्थक हैं। यूरोपीय संघ को इन विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति और विशेष कौशल की आवश्यकता होगी।

भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक बातचीत

  • भारत और यूरोप के बीच वर्ष 2007 में ‘व्यापक मुक्त व्यापार समझौते’ के समय उत्पन्न समस्याओं और मुद्दों पर ही वर्तमान में भी चर्चा होने की उम्मीद है, जिसे पेशेवरों व श्रमिको के आवागमन, मानवाधिकार व पर्यावरण संबंधी मुद्दों और भारत के उच्च टैरिफ, असंगत कर व्यवस्था तथा मध्यस्थता पंचाटों का भुगतान न करने जैसे मतभेदों के कारण रोक दिया गया था।
  • कोविड-19 और ब्रेक्ज़िट से पहले यूरोपीय संघ की जी.डी.पी. अमेरिका के समान थी और यह भारत के प्रमुख व्यापार व निवेश भागीदारों में से एक था।
  • सबसे बड़ा लोकतांत्रिक समूह होने के साथ-साथ भाषाई, सांस्कृतिक तथा जातीय रूप से विविधता वाले देशों का संघ होने के कारण यूरोपीय संघ और भारत एक विशेष प्रकार के संबंधों के लिये अनुकूलित हैं। फिर भी यूरोप किसी भी व्यापारिक वार्ता में अपने हितों को सर्वाधिक महत्त्व देगा।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR