(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किये जाने वाले ‘व्यापार सुगमता सूचकांक’ के प्रकाशन को कुछ देशों के आँकड़ों में अनियमितता पाए जाने के कारण रोक दिया गया है।
पृष्ठभूमि
वर्ष 2018 और 2020 के व्यापार सुगमता सूचकांक के आँकड़ों में बदलाव के सम्बंध में कई अनियमितताएँ पाई गईं हैं। ये सूचकांक क्रमशः वर्ष 2017 और 2019 में अक्टूबर माह में प्रकाशित किये गए थे। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार चीन, अज़रबैजान, यू.एई. और सऊदी अरब ऐसे राष्ट्रों में हैं, जिनके पास ‘अनुचित रूप से परिवर्तित’ डाटा हो सकता है।
व्यापार सुगमता सूचकांक
- ‘व्यापार सुगमता सूचकांक’ विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक सूचकांक है। इसे विश्व बैंक समूह के दो प्रमुख अर्थशास्त्रियों शिमोन जोन्कॉव और गेरहार्ड पोहल द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया। सर्वप्रथम इस रिपोर्ट को वर्ष 2002 में प्रकाशित किया गया।
- विभिन्न मापदंडों पर आधारित यह एक समग्र आँकड़ा है, जो इस समूह में शामिल देशों में व्यापार सुगमता की स्थिति को परिभाषित करता है। उच्च रैंकिंग (या निम्न संख्यात्मक मान, जैसे-1 का अर्थ उच्चतम रैंकिंग) व्यवसायों के लिये बेहतर, आमतौर पर सरल विनियमन और सम्पत्ति अधिकारों के मज़बूत संरक्षण को इंगित करता है।
- यह व्यापार विनियमन का एक बेंचमार्क अध्ययन है। अध्ययन के लिये प्रयोग किये जाने वाले संकेतकों में निर्माण कार्य के लिये परमिट, सम्पति का पंजीकरण, सीमा पार व्यापार, कारोबार शुरू करने के लिये आवश्यकताएँ, क्रेडिट प्राप्त करने की स्थिति, कर भुगतान तंत्र, निवेशकों की सुरक्षा, विद्युत् की प्राप्ति और दिवालियेपन का समाधान शामिल है।
- इस इंडेक्स का मतलब सीधे तौर पर व्यवसायों को प्रभावित करने वाले नियमों को मापना है। यह सामान्य परिस्थितियों, जैसे- बड़े बाज़ारों तक देश की पहुँच, बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता, मुद्रास्फीति या अपराध आदि के स्तर को नहीं मापता है।
- वर्ष 2020 के लिये भारत की रैंकिंग 63 थी, जिसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 14 स्थानों का सुधार देखा गया था। विश्व बैंक द्वारा डाटा प्रामाणिकता के मुद्दे पर अपनी वार्षिक ‘डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट के प्रकाशन को रोकने का फैसला महत्त्वपूर्ण है और इसके कई निहितार्थ हैं।
विश्व बैंक का दृष्टिकोण
- विश्व बैंक द्वारा पिछले पाँच व्यापार सुगमता रिपोर्ट के लिये संस्थागत डाटा समीक्षा प्रक्रिया के बाद हुए डाटा परिवर्तनों की एक व्यवस्थित समीक्षा और मूल्यांकन किया जाएगा।
- विश्व बैंक समूह के स्वतंत्र आंतरिक लेखा परीक्षण व्यवस्था द्वारा डाटा संग्रह की प्रक्रियाओं को ऑडिट करना, व्यापार सूचकांक की समीक्षा और डाटा की प्रमाणिकता के लिये नियंत्रण को बढ़ाना भी इन प्रयासों में शामिल हैं।
रैंकिंग और 'मेक इन इंडिया'
- भारत ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत निवेश को आकर्षित करने के लिये व्यापार सूचकांक में अपनी रैंकिंग को बेहतर बनाने के लिये प्रयासरत है।
- इस पहल का लक्ष्य जी.डी.पी. में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को 25% (16-17% से) तक बढ़ाना तथा वर्ष 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन अतिरिक्त नौकरियाँ पैदा करना है।
- इस सूचकांक में भारत ने शानदार सफलता अर्जित की है। भारत वर्ष 2015 में जहाँ 142वें स्थान पर था, वहीं वर्ष 2020 में 63वें स्थान पर पहुँच गया। इस उपलब्धि को ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के लिये भारत की प्रतिबद्धता के रूप में दर्शाया गया है।
- व्यापार सूचकांक के पिछले पाँच वर्षों की रिपोर्ट के ऑडिटिंग के फैसले से भारत की रैंकिंग में कमी आ सकती है।
- जनवरी 2018 में वैश्विक विकास केंद्र के अध्ययन में भी पाया गया कि भारत की रैंकिंग में सुधार लगभग-लगभग पूरी तरह से पद्धतिगत परिवर्तनों के कारण ही था।
भारत का मामला
- देशों की रैंकिंग में सुधार और ज़मीनी वास्तविकता में काफी अंतर देखा गया है। भारत की जी.डी.पी. में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 16-17% पर स्थिर है और वर्ष 2011-12 से 2017-18 के मध्य लगभग 3.5 मिलियन नौकरियों का नुकसान हुआ है।
- राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी के अनुसार विनिर्माण में वार्षिक जी.डी.पी. वृद्धि दर वर्ष 2015-16 में 13.1% से गिरकर वर्ष 2019-20 में शून्य हो गई।
- इस रिपोर्ट के वर्ष 2020 के लिये जारी संस्करण में भारत उन शीर्ष 10 देशों में शामिल है, जिसकी रैंकिंग में पिछले वर्ष के मुकाबले सबसे बड़ी उछाल देखी गई।
- हालाँकि, इस बीच भारत की चीन पर आयात निर्भरता भी बढ़ गई है, जिसका एक परिणाम ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल की घोषणा है।
चिली और रूस का मामला
- इसी अवधि के दौरान चिली की रैंकिंग वर्ष 2014 में 34 से कम होकर वर्ष 2017 में 57 पर आ गई। चिली के तत्कालीन राष्ट्रपति ने विश्वबैंक पर व्यापार सूचकांक की कार्यप्रणाली में हेरफेर का भी आरोप लगाया था।
- वर्ष 2017 में विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल एम. रोमर ने विश्व बैंक की गलतियों को स्वीकार भी किया था।
- रूस के साथ भी यही स्थिति रही और उसकी रैंकिंग वर्ष 2012 में 120 से वर्तमान में 28 पर आ गई है। इन वर्षों के दौरान रूस किसी बड़े निवेश अंतर्वाह के बिना ही चीन, ब्राज़ील और भारत से आगे निकल गया।
- इसके विपरीत सबसे अधिक पूँजी प्रवाह को आकर्षित करने के बाबज़ूद वर्ष 2006 और 2017 के बीच चीन की व्यापार रैंकिंग 78 से 96 के बीच ही रही। हालाँकि, वर्तमान में चीन की रैंकिंग 31 है।
संकेतक में सैद्धांतिक आधार का अभाव और प्रमुख दोष
- सूचकांक के संरचना और कार्यान्वयन में कई दोष हैं। सूचकांक के लिये उपयोग किये जाने वाले संकेतक केवल क़ानूनी संरचना पर ही आधारित हैं, उन कानूनों के संचालन में आने वाली समस्याओं और वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित नहीं हैं। सूचकांक की गणना के लिये केवल दो शहरों, मुम्बई और दिल्ली से वकीलों, एकाउंटेंट और दलालों से आँकड़े एकत्र किये गए हैं, न की उद्यमियों से।
- इसके अतिरिक्त विश्व बैंक द्वारा ही किये गए एक ‘वैश्विक उद्यम सर्वेक्षण रिपोर्ट’ और ‘व्यापार सुगमता रैंकिंग’ में कोई अंतर्सम्बंध नहीं दिखाई दिया है।
- साथ ही व्यापार सुगमता सूचकांक के सैद्धांतिक आधार पर भी संदेह व्यक्त किया गया है, जोकि अधिक गम्भीर मुद्दा है। बहुत कम आर्थिक विचार ऐसे हैं, जिनके अनुसार श्रम और पूँजी का न्यूनतम विनियमन बाज़ार उत्पादन और रोज़गार के मामले में बेहतर परिणाम देते हैं।
- आर्थिक विकास के इतिहास में किसी सामान्यीकृत सिद्धांत के स्थान पर देशों के आर्थिक प्रदर्शन और नीतिगत शासनों में काफी विविधता दिखाई पड़ती है। व्यापर सुगमता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये कारखानों के सुरक्षा मानकों से भी समझौता किया जाता है।
- उदाहरण स्वरुप वर्ष 2016 में महाराष्ट्र सरकार ने बॉयलर अधिनियम, 1923 और भारतीय बॉयलर विनियमन, 1950 के तहत भाप बॉयलरों के वार्षिक अनिवार्य निरीक्षण को समाप्त कर दिया।
- साथ ही किसी भी कारखाने ने स्व-प्रमाणन का भी पालन नहीं किया है या किसी तीसरे पक्ष से बॉयलर को प्रमाणित नहीं करवाया।
निष्कर्ष
किसी व्यवसाय की व्यवहार्यता उस अर्थव्यवस्था की जीवन शक्ति पर निर्भर करती है। चिली और भारत के विपरीत अनुभवों के कारण न केवल देश-स्तर के आँकड़ों पर संदेह व्यक्त किया गया बल्कि अंतर्निहित कार्यप्रणाली में भी बदलाव हुआ है। यह उचित समय है, जब विश्व बैंक को व्यापार सुगमता सूचकांक रिपोर्ट को तैयार करने हेतु पुनर्विचार की आवश्यकता है। भारत को भी इस पर विचार करना चाहिये कि उसके रैंकिंग में अधिक सुधार तथा ज़मीनी वास्तविकता में अंतर क्यों है? हालाँकि, विश्व बैंक द्वारा पिछले पाँच वर्षों की रिपोर्ट की व्यवस्थित समीक्षा एक सराहनीय कदम है।