(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजनैतिक व्यवस्था) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता व जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष) |
संदर्भ
दिल्ली उच्च न्यायलय के एक पूर्व न्यायाधीश के आवास पर नकदी विवाद के बाद सर्वोच्च न्यायलय के सभी 33 न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा का निर्णय लिया है। इससे न्यायपालिका में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा और जनता के विश्वास को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलेगी।
न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा के बारे में
- 7 मई, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने संपत्ति की स्वैच्छिक घोषणा करने का सामूहिक संकल्प लिया था।
- इस संकल्प के अनुसार, प्रत्येक न्यायाधीश को अपने नाम पर, अपने जीवनसाथी या उन पर निर्भर किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर अचल संपत्ति या निवेश के रूप में रखी गई सभी संपत्तियों की घोषणा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष करनी होगी।
- हालाँकि, यह घोषणा सार्वजनिक रूप से नहीं बल्कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष गोपनीय रूप से करनी होगी।
- अक्तूबर 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह संकल्प लिया कि सभी न्यायाधीश स्वैच्छिक तौर पर अपनी संपत्ति का विवरण वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक करेंगे।
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में न्यायाधीशों की निजी संपत्ति को व्यक्तिगत जानकारी की परिधि से बाहर मानते हुए सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाया गया है।
संपत्ति की घोषणा
वर्ष 2018 के बाद से गोपनीयता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष की गई संपत्ति की घोषणा को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया गया है। मार्च 2025 तक देश के सभी उच्च न्यायालयों के कुल 770 में से केवल 97 (13%) न्यायाधीशों ने सार्वजनिक रूप से संपत्ति घोषित की है।
सुधार की मांग
- विधि आयोग ने अपनी वर्ष 2009 की 230वीं रिपोर्ट में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर गंभीर चिंता व्यक्त कर सुधार की मांग की थी।
- दिवंगत सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली विधि एवं न्याय मंत्रालय की संसदीय समिति ने न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा को बाध्यकारी करने के लिए कानून में बदलाव की सिफारिश की थी।
अन्य लोक सेवकों के साथ तुलना
- अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के नियम 16(1) के अनुसार लोक सेवकों को अपनी संपत्ति की वार्षिक घोषणा करनी होती है।
- चुनावों के दौरान राजनीतिक उम्मीदवारों के लिए संपत्ति का खुलासा अनिवार्य कर दिया गया है।
- सांसदों/विधायकों को अपनी परिसंपत्ति एवं देनदारी से संबंधित घोषणापत्र अध्यक्ष (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
- केंद्रीय मंत्रियों को अपनी संपत्ति की घोषणा प्रधानमंत्री कार्यालय में करनी होती है जिसकी जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित की जाती है।
इसे भी जानिए!
- न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्तों के संबंध में संसद द्वारा वर्ष 1954 में उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम और वर्ष 1958 में उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) अधिनियम पारित किए गए थे।
- इन कानूनों में न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, अवकाश, चिकित्सा सुविधाएएँ जैसी अनेक बिंदुओं का विस्तार से प्रावधान है किंतु इनमें संपत्ति की घोषणा के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं।
- अर्थात न्यायाधीश कानूनी रूप से अपनी संपत्ति का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
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न्यायाधीश आचरण संहिता के बारे में
- 7 मई, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पूर्ण कोर्ट बैठक में 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुर्नकथन, 1997' (Restatement of Values of Judicial Life, 1997) नामक दस्तावेज को अपनाया था।
- यह दस्तावेज़ चर्चा करता है कि न्यायाधीशों को अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय किस प्रकार आचरण करना चाहिए।
आचरण संहिता के प्रमुख बिंदु
- न्यायाधीशों को ऐसे कार्यों से बचना चाहिए जो उच्च न्यायपालिका में लोगों के विश्वास में कमी आते हैं क्योंकि ‘न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि यह होते हुए भी दिखना चाहिए’।
- क्लबों, सोसायटियों एवं एसोसिएशनों में न ही चुनाव में भाग लेना चाहिए और न ही कोई पद धारण करना चाहिए।
- बार के व्यक्तिगत सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंध से बचना चाहिए और यदि कोई निकटतम या करीबी पारिवारिक सदस्य बार का सदस्य है तो उन्हें अदालत में न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित नहीं होना चाहिए।
- ऐसे परिवार के सदस्यों को पेशेवर कार्य के लिए न्यायाधीश के आवास के उपयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- ऐसे मामलों की सुनवाई एवं निर्णय में भाग नहीं लेना चाहिए जिनमें परिवार का कोई सदस्य या मित्र शामिल हो।
- न्यायिक निर्णय के लिए उठने वाले राजनीतिक मामलों पर सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त नहीं करना चाहिए।
- अपने निर्णय स्वयं बोलने चाहिए और मीडिया को साक्षात्कार नहीं देना चाहिए।
- परिवार एवं मित्रों के अलावा किसी से उपहार या आतिथ्य स्वीकार नहीं करना चाहिए।
- ऐसी कंपनी से संबंधित मामलों की सुनवाई एवं निर्णय नहीं करना चाहिए जिसमें न्यायाधीश के पास शेयर हों।
- शेयरों, स्टॉक या इसी तरह की चीज़ों में सट्टा नहीं लगाना चाहिए।
- किसी भी व्यापार या व्यवसाय में ‘प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से’ शामिल नहीं होना चाहिए।
- अपने पद से जुड़ा कोई भी वित्तीय लाभ नहीं माँगना चाहिए।
- इस बात का ध्यान रखना चाहिए वह सार्वजनिक निगरानी में है और उच्च पद के अनुरूप अनुचित कार्यों से बचना चाहिए।