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स्टेम सेल थेरेपी से T-1 डायबिटीज़ का उपचार

प्रारंभिक परीक्षा

(अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ एवं सामान्य विज्ञान)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ 

  • चीन के वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल थेरेपी के माध्यम से टाइप 1 डायबिटीज (T-1D) से पीड़ित एक महिला को ठीक करने का दावा किया है। स्टेम सेल थेरेपी के माध्यम से क्रियाशील इंसुलिन उत्पादक कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने में यह विश्व में पहली सफलता है। 
  • इस सफलता ने स्टेम सेल थेरेपी के माध्यम से डायबिटीज के उपचार की नई संभावनाएं खोल दी हैं। हालाँकि, इससे संबंधित अन्य परीक्षण अभी भी जारी हैं। 

टाइप 1 डायबिटीज (Type 1Dibetes)

  • यह एक स्वप्रतिरक्षी (Autoimmune) स्थिति है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय में इंसुलिन उत्पादन करने वाली बीटा कोशिकाओं (β-cells) को क्षतिग्रस्त कर देती है। 
    • इसके परिणामस्वरूप इंसुलिन का उत्पादन न होने से डायबिटीज की समस्या हो जाती है। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को आजीवन इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है। यह सामान्यत: बच्चों या युवा वयस्कों को प्रभावित करता है।
  • बीटा कोशिकाएँ (β-Cells) विशेष अंतःस्रावी कोशिकाएँ हैं जो अग्नाशय की द्वीपिकाओं (या लैंगरहैंस की द्वीपिका : Islets of Langerhans) के भीतर स्थित होती हैं। ये इंसुलिन एवं एमिलिन जैसे हार्मोन्स के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होती हैं । 
    • लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ अग्नाशय में कोशिकाओं के समूह हैं जो रक्त शर्करा के स्तर और चयापचय को विनियमित करने के लिए हार्मोन का उत्पादन करते हैं
  • इसके आलावा अभी तक टाइप 1 मधुमेह (T-1D) का उपचार पीड़ित व्यक्ति में आइलेट कोशिकाओं के प्रत्यारोपण (Islet Cell Transplant) के माध्यम से किया जाता रहा है। 
    • इसमें मृत दाता (Dead Doner) के अग्न्याशय की ‘आइलेट कोशिकाओं’ का उपयोग किया जाता है जोकि एक प्रभावी उपचार है किंतु दानदाताओं की कमी के कारण इसमें बाधा आ रही है।

स्टेम सेल थेरेपी द्वारा उपचार 

  • स्टेम सेल थेरेपी की अवधारणा पुनर्योजी चिकित्सा (Regenerative Medicine) में निहित है। प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (Pluripotent Stem Cells) में किसी भी प्रकार की कोशिका में रूपांतरित होने की क्षमता होती हैं जिन्हें इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं में प्री-प्रोग्राम (Pre-Programmed) किया जाता है और मानव शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। 
    • ये प्री-प्रोग्राम की गई कोशिकाएँ पुनः इंसुलिन का उत्पादन शुरू कर देंगी और ग्लूकोज को नियंत्रित करने में मदद करेंगी। यह T-1D के उपचार में एक महत्वपूर्ण विकल्प उपलब्ध कराता है।
  • वैज्ञानिक विभिन्न प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल स्रोतों से अग्नाशय की द्वीपिकाओं की कार्यक्षमता की दोहराने या नकल (Mimic) करने वाली कोशिकाओं के निर्माण में अच्छी प्रगति कर रहे हैं।
  • इनमें भ्रूण स्टेम सेल (ESC) शामिल हैं, जो प्रारंभिक अवस्था के भ्रूणों से प्राप्त होते हैं और बीटा कोशिकाओं में विभेदित हो सकते हैं। इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (iPSCs) वयस्क कोशिकाएँ होती है जिन्हें आनुवंशिक रूप से प्लुरिपोटेंट अवस्था में री-प्रोग्राम किया जा सकता है और जो इंसुलिन उत्पादक कोशिकाओं में विभेदित हो सकती हैं। यह ESC की अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प है।
  • हालांकि, स्टेम सेल थेरेपी से वांछित परिणाम प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ भी हैं। इन नई प्रत्यारोपित कोशिकाओं का शरीर द्वारा अस्वीकार किए जाने का जोखिम होता है।  
    • इसके अलावा बीटा कोशिकाओं की स्थायित्व एवं कार्यात्मक दक्षता को बनाए रखने के लिए आवधिक पुनःपूर्ति की आवश्यकता भी हो सकती है। 

प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (Pluripotent Stem Cells)

  • प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल शरीर की तीनों आधारभूत परत या लेयर (एक्टोडर्म, मेसोडर्म एवं एंडोडर्म) और जर्म कोशिकाओं का निर्माण कर सकती है। 
  • प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल स्वयं को नवीनीकृत करने में भी सक्षम होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे प्रतिलिपि (Duplicate) बना सकती हैं और अधिक प्लुरिपोटेंट कोशिकाएं निर्मित कर सकती हैं। 
  • ये कोशिकाएँ शरीर में किसी भी कोशिका या ऊतक में विभेदित हो सकती हैं, जिसमें रक्त कोशिकाएँ, हृदय की मांसपेशी कोशिकाएँ एवं तंत्रिका कोशिकाएँ शामिल हैं।

भारतीय परिप्रेक्ष्य

  • भारत में टाइप 1 डायबिटीज से लगभग 8.6 लाख से ज़्यादा लोग पीड़ित हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सेवा की लागत टाइप 2 डायबिटीज़ की तुलना में अधिक है। 
  • भारत जैसे विकासशील देशों में लागत अधिक होने से स्टेम सेल प्रत्यारोपण चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
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