(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता, सामाजिक सशक्तीकरण और धर्मनिरपेक्षता)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, झारखंड सरकार ने सरना धर्म को मान्यता देने और वर्ष 2021 की जनगणना में एक अलग कोड के रूप में शामिल करने के लिये केंद्र को पत्र भेजने का प्रस्ताव पारित किया है। पिछले कई वर्षों से विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा झारखंड और अन्य जगहों पर इस माँग को लेकर कई विरोध प्रदर्शन और बैठकें हुई हैं।
सरना धर्म
- सरना धर्म के अनुयायी प्रकृति के उपासक होते हैं। ‘जल, जंगल और ज़मीन’ इनकी आस्था का केंद्र बिंदु व मूल तत्त्व हैं। इसके अनुयायी वन क्षेत्रों की रक्षा करने में विश्वास करते हुए पेड़ों व पहाड़ियों की प्रार्थना करते हैं।
- झारखंड में 32 जनजातीय समूह हैं, जिनमें से 8 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) से हैं।
- इसमें से कई लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं जबकि कुछ ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं। विभिन्न आदिवासी संगठनों के अनुसार ‘धार्मिक पहचान को बचाने’ के लिये एक अलग कोड की माँग का यह एक प्रमुख कारण है।
- ऐसा माना जाता है कि पूरे देश में लगभग 50 लाख आदिवासियों ने वर्ष 2011 की जनगणना में अपने धर्म को 'सरना' के रूप में रेखांकित किया है, यद्यपि उस जनगणना में इसे एक कोड के रूप में शामिल नहीं किया गया था।
सम्बंधित मुद्दे
- इस कोड का पालन करने वाले कई आदिवासी बाद में ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं। झारखण्ड में 4% से अधिक ईसाई रहते हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं।
- सरना कोड का पालन करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि परिवर्तित आदिवासी अल्पसंख्यक के रूप में आरक्षण का लाभ लेने के साथ-साथ अनुसूचित जनजातियों को प्राप्त अन्य लाभों का भी फायदा उठा रहे हैं।
- साथ ही उनका यह भी मानना है कि यह लाभ ऐसे लोगों को मिलना चाहिये जिन्होंने धर्मांतरण नहीं किया है, न कि धर्मांतरित लोगों को। सरना कोड के अनुयाइयों और नेताओं ने आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की रणनीति का विरोध किया है।
- वर्ष 2017 में राज्य सरकार ने भी धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया जिससे उनके बीच में विभाजन और गहरा हो गया।
झारखण्ड सरकार का पक्ष
- सरकार के अनुसार राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या वर्ष 1931 में 38.3% से घटकर वर्ष 2011 में 26.02% हो गई है।
- इसका एक कारण जनगणना में दर्ज न किये जाने वाले आदिवासी थे जो विभिन्न राज्यों में रोज़गार के लिये जाते हैं और अन्य राज्यों में उनकी गणना आदिवासियों के रूप में नहीं की जाती है। अलग कोड से उनकी जनसंख्या का रिकॉर्ड सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- साथ ही उनकी घटती संख्या उनको प्रदान किये गए संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करती है और संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को प्राप्त अधिकारों का लाभ उनको नहीं मिल पाता है।
निष्कर्ष
- आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास व विरासत का संरक्षण एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। वर्ष 1871 से 1951 के बीच आदिवासियों का एक अलग कोड था। हालाँकि, इसे वर्ष 1961-62 के आसपास बदल दिया गया था।
- विशेषज्ञों का कहना है कि जब आज पूरे विश्व में प्रदूषण को कम करने व पर्यावरण की रक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है, तो समझदारी यह है कि सरना कोड को एक धार्मिक संहिता (कोड) बना दिया जाए क्योंकि इस धर्म की आत्मा प्रकृति व पर्यावरण की रक्षा करना ही है।