भारत में अधिकरण प्रणाली (Tribunal System in India)
अधिकरण प्रणाली
प्रकृति:
अधिकरण अर्ध-न्यायिक (Quasi-judicial) निकाय होते हैं, जो विशिष्ट विवादों के समाधान के लिए स्थापित किए जाते हैं।
उद्देश्य:
न्यायपालिका पर मुकदमों का भार कम करना।
तकनीकी विषयों से जुड़े मामलों के त्वरित निपटान के लिए विषय विशेषज्ञों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
संवैधानिक मान्यता:
42वें संविधान संशोधन (1976) के तहत अनुच्छेद 323A जोड़ा गया, जिसमें प्रशासनिक अधिकरणों की स्थापना का प्रावधान किया गया।
इसी प्रावधान के तहत केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) की स्थापना की गई।
CAT का क्षेत्राधिकार:
यह संघ या अन्य सरकारी नियंत्रण वाले प्राधिकरणों में लोक सेवाओं और पदों की भर्ती एवं सेवा शर्तों से जुड़े विवादों का निपटान करता है।
अनुच्छेद 323B के तहत अधिकरणों की स्थापना:
2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 323B के तहत अधिकरणों की स्थापना का अधिकार केवल संसद तक सीमित नहीं है।
राज्य विधान-मंडल भी संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित विषयों पर अपने अधिकार-क्षेत्र के अनुसार अधिकरण स्थापित कर सकते हैं।
क्षेत्राधिकार:
प्रत्येक अधिकरण को उसकी विशेषज्ञता के घोषित क्षेत्र के भीतर मामलों की सुनवाई और निर्णय लेने के लिए विशिष्ट क्षेत्राधिकार दिया जाता है।
कुछ अधिकरणों को अपील सुनने का अधिकार भी प्राप्त होता है, जिससे वे अपने से निचले प्राधिकरणों, सरकारी निकायों या प्राधिकारियों द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई कर सकते हैं।