(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) |
संदर्भ
हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ महासंघ (IDF) ने ‘टाइप 5 डायबिटीज़’ को एक स्वतंत्र डायबिटीज़ श्रेणी के रूप में मान्यता दी है।
टाइप 5 डायबिटीज़ के बारे में
- परिचय : यह कुपोषण से संबंधित एक विशेष प्रकार का डायबिटीज़ है जो मुख्यतः दुबले-पतले, कुपोषित किशोरों एवं युवाओं को प्रभावित करता है।
- पहला मामला एवं नामकरण : इसका पहला मामला वर्ष 1955 में जमैका में पाया गया तब इसे ‘J-Type Diabetes’ कहा गया।
- वर्ष 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे ‘कुपोषण से संबंधित मधुमेह (Malnutrition-Related Diabetes Mellitus)’ नाम दिया। हालाँकि, वर्ष 1999 में वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इसे सूची से हटा दिया गया।
- वर्ष 2023 में हुए नए शोधों और वर्ष 2025 में IDF की मान्यता के बाद इसे फिर से टाइप 5 डायबिटीज़ के रूप में मान्यता दी गयी।
- संबंधित आँकड़े : वैश्विक स्तर पर 25 मिलियन (2.5 करोड़) लोग इससे प्रभावित हैं। इसका प्रसार मुख्यतः एशियाई एवं अफ्रीकी देशों, जैसे- भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, युगांडा, इथियोपिया व रवांडा में है।
लक्षण
- अत्यधिक थकान
- वजन में कमी
- बार-बार संक्रमण होना
- शरीर में बहुत कम वसा (10–12%)
- कुपोषण से संबंधित लक्षण, जैसे- प्रोटीन, जिंक एवं विटामिन A की कमी
- पीड़ितों का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 18.5 से कम होना
- शरीर में इंसुलिन का स्राव सामान्य से 70% तक कम होना
प्रबंधन एवं उपचार
वर्तमान में टाइप 5 डायबिटीज़ के लिए कोई स्थायी एवं मानक उपचार मार्गदर्शिका नहीं है। इसके लिए IDF की कार्यसमिति द्वारा अगले दो वर्षों में विशेष निदान एवं उपचार दिशा-निर्देश तैयार किए जाएंगे। फिर भी इसके प्रारंभिक उपचार में निम्नलिखित उपायों को किया जा सकता है-
- औषधीय उपचार : इसके तहत कम मात्रा में इंसुलिन के साथ-साथ कुछ मौखिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- पोषण आधारित उपचार : इसके तहत प्रोटीन से भरपूर आहार, निम्न कार्बोहाइड्रेट एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यक आपूर्ति करना।
आगे की राह
- वैश्विक एवं स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं को जागरूक करने की आवश्यकता
- कुपोषण की रोकथाम के लिए मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना
- सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में समावेशन, जिससे यह रोग जल्दी पहचाना जा सके और सही से प्रबंधित किया जा सके
- इस पर वैश्विक स्तर पर अनुसंधान को बढ़ावा देना
- पोषण आधारित हस्तक्षेप के जरिए इसके प्रभाव को कम करना
- मेडिकल पेशेवरों के बीच जागरूकता बढ़ाना।
इन्हें भी जानिए!
- टाइप 1 डायबिटीज़ : यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अग्न्याशय में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला करती है और उन्हें नष्ट कर देती है। इससे इंसुलिन की कमी हो जाती है जो ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में ग्लूकोज को प्रवेश करने देने के लिए आवश्यक है।
- टाइप 2 डायबिटीज़ : मोटापे के कारण होने वाली डायबिटीज़ को टाइप 2 डायबिटीज़ के रूप में जाना जाता है। यह मुख्यत: जीवनशैली एवं अनुवांशिक कारणों से होती है। विकासशील देशों में डायबिटीज़ के अधिकांश मामले इसी बीमारी के कारण होते हैं।
- टाइप 3 डायबिटीज : शोधकर्ताओं ने टाइप 3 मधुमेह को एक चयापचय सिंड्रोम के रूप में परिभाषित किया है जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क में इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ने से संबंधित असामान्यताएँ हो सकती हैं।
- टाइप 4 डायबिटीज : इसे ‘एल्डरली-ऑनसेट डायबिटीज’ या ‘स्किन-थीक डायबिटीज’ भी कहा जाता है। यह प्राय: वृद्ध लोगों, खासकर 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में होता है।
|