(केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission : UGC) ने देश भर के विश्वविद्यालय परिसरों में जातिगत भेदभाव से निपटने के लिए नए मसौदा नियम जारी किए हैं।
यू.जी.सी. का नवीनतम मसौदा नियम
- यू.जी.सी. द्वारा प्रस्तुत मसौदा नियम ‘भेदभाव’ को पुनर्परिभाषित करते हुए देश भर के विश्वविद्यालय परिसरों में ‘जाति-आधारित भेदभाव’ के लिए विशिष्ट नामकरण पेश करता है।
- ये नियम ‘इक्विटी कमेटी’ के गठन और झूठी शिकायतों के लिए दंड का भी प्रस्ताव करते हैं।
- हालाँकि, भेदभाव की परिभाषा को लेकर मसौदा नियमों में अस्पष्टता विद्यमान है।
- इक्विटी समिति में प्रासंगिक अनुभव वाले नागरिक समाज के कम से कम दो प्रतिनिधियों और विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में दो छात्र प्रतिनिधियों के साथ-साथ चार संकाय सदस्यों तथा संस्थान के प्रमुख को पदेन प्रमुख के रूप में शामिल होंगे।
- विनियमन ने झूठी शिकायतों पर भी एक खंड पेश किया है, जो झूठी शिकायतें करने वालों के लिए जुर्माना और संभावित अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव करता है।
- नए विनियमन यू.जी.सी. को उन संस्थानों की मान्यता रद्द करने के लिए शक्ति देंगे जो उनका अनुपालन करने में विफल रहते हैं।
- यू.जी.सी. (उच्च शिक्षा संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) विनियम, 2025 जाति-आधारित भेदभाव को केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के सदस्यों के खिलाफ जाति या जनजाति के आधार पर भेदभाव के रूप में परिभाषित करता है।
- यह ‘भेदभाव’ को “किसी भी हितधारक के खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर अनुचित, विभेदक या पक्षपातपूर्ण व्यवहार या ऐसा किसी अन्य कार्य के रूप में परिभाषित करता है।
- नए विनियमनों को यू.जी.सी. की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार कर सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।
- यह पीठ रोहित वेमुला और पायल तड़वी के अभिभावकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
- इन याचिकाओं में विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर जातिगत भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई की अपील की थी।
- यू.जी.सी. ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर वर्ष 2012 के विनियमों पर फिर से विचार करने के लिए प्रोफेसर शैलेश एन. जाला की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया था।
- वर्ष 2012 के विनियमन में ‘भेदभाव’ को किसी भी भेद, बहिष्कार, सीमा या वरीयता के रूप में परिभाषित करता है जो समानता के उपचार को बाधित करने के साथ ही इसे विस्तृत करता है।
- इसमें भेदभाव के आधारों में जाति, पंथ, भाषा, धर्म, जातीयता, लिंग और विकलांगता शामिल हैं।
आलोचना
- देश भर के पूर्व छात्रों, कार्यकर्ताओं, आंबेडकरवादी छात्र संगठनों और छात्र संघों ने नए मसौदा नियमों की आलोचना करते हुए तर्क दिया है कि विश्वविद्यालय परिसरों में जाति-आधारित भेदभाव आरक्षण विरोधी भावना के रूप में प्रकट होता है।
- जिसे प्रवेश परीक्षा रैंक या आरक्षण स्थिति के आधार पर भेदभाव के रूप में देखा जा सकता है।
- नए मसौदा विनियमों में विशेष रूप से परीक्षा रैंक या आरक्षण स्थिति के आधार पर भेदभाव को संबोधित करने वाला कोई खंड या प्रावधान नहीं है।