(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: महिलाओं की भूमिका एवं संबद्ध मुद्दे)
संदर्भ
विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व होना हमेशा से एक चिंता का विषय रहा है। इसे सामान्यतः करियर के प्रत्येक क्षेत्रों में देखा जा सकता है, वह चाहे वैज्ञानिक संस्थानों में नेतृत्व के पदों पर नियुक्ति हो या पदोन्नति हो, सदस्यों के रूप में चयन में हो अथवा पुरस्कार वितरण हो। विज्ञान अकादमियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति वैज्ञानिक समुदाय में उनकी समग्र स्थिति को दर्शाती है।
महिला वैज्ञानिकों की वैश्विक स्थिति
- ऐतिहासिक रूप से विज्ञान अकादमियों में पुरुषों की तुलना में महिला वैज्ञानिकों के योगदान को कम ही महत्ता दी जाती रही है। हालाँकि, 20वीं सदी की शुरुआत में कई यूरोपीय अकादमियों में महिला वैज्ञानिकों की सदस्य के रूप में स्वीकृति देख सकते हैं।
- विज्ञान अकादमियों की वैश्विक तस्वीर से भी महिलाओं के काफी कम प्रतिनिधित्व का पता चलता है। जेंडरइनसाइट (Gender in Science, Innovation, Technology and Engineering : GenderInSITE), इंटरएकेडमी पार्टनरशिप और इंटरनेशनल साइंस काउंसिल द्वारा संयुक्त रूप से किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि वरिष्ठ विज्ञान अकादमियों में महिलाओं की निर्वाचित सदस्यता वर्ष 2015 में 13 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर वर्ष 2020 में 16 प्रतिशत हो गई। हालाँकि, 19 अकादमियों में यह 10 प्रतिशत या उससे कम है।
- युवा विज्ञान अकादमियों के मामले में महिलाओं की औसत भागीदारी 42 प्रतिशत है, जो बेहतर स्थिति का सूचक है। वरिष्ठ अकादमियों में क्यूबा की विज्ञान अकादमी में सर्वाधिक 33 प्रतिशत महिला निर्वाचित सदस्य हैं। अधिक चिंताजनक बात यह है कि इंजीनियरिंग विज्ञान और गणित में महिलाओं का प्रतिनिधित्व क्रमश: 10 प्रतिशत और 8 प्रतिशत ही है।
भारत में स्थिति
- वर्ष 2020 में भारत में किये गए एक सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA) के 1,044 सदस्यों में से केवल 89 महिलाएँ हैं, जोकि 9 प्रतिशत है। जबकि, वर्ष 2015 में 864 सदस्यों में से 6 प्रतिशत महिला वैज्ञानिक सदस्य थीं।
- इसी तरह, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के शासी निकाय में 2020 में 31 सदस्यों में से सात महिलाएँ थीं, जबकि वर्ष 2015 में कोई महिला सदस्य नहीं थीं।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारतीय विज्ञान अकादमी और राष्ट्रीय अकादमियों द्वारा पेशेवर निकायों और संबंधित संस्थानों सहित विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
- इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2019 में, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने चंद्रिमा शाह के रूप में पहली महिला अध्यक्ष को चुना।
प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की पहल
भारतीय विज्ञान अकादमी की कुछ हालिया पहलें इस संदर्भ में उल्लेखनीय और आशान्वित करने वाली हैं। अकादमी ने संविधान में निहित लैंगिक समानता और भेदभाव, यौन उत्पीड़न, लैंगिक पूर्वाग्रह और संस्थागत बुनियादी ढाँचे में अपर्याप्तता की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए पाँच नीतिगत प्रतिबद्धताओं को अपनाया है, जोकि निम्नवत् हैं-
- एक स्पष्ट मानवाधिकार के रूप में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
- विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की उन्नति के लिये प्रणालीगत और संरचनात्मक बाधाओं को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं की पहचान करना और उन्हें समाप्त करना।
- महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में सक्षम बनाने के लिये उनका सशक्तीकरण करना।
- विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिये संभावित जोखिमों और बाधाओं की पहचान करना और उन्हें समाप्त करने के लिये रणनीतियों को लागू करना।
- इसके अतिरिक्त, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार, वैज्ञानिक संस्थानों और नागरिक समाज के साथ कार्य करना।
निष्कर्ष
- विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक समानता को सुदृढ़ता प्रदान करने संबंधी प्रयास विज्ञान अकादमियों तक सीमित नहीं होने चाहिये। इसमें सभी हितधारकों को प्रयास करने की आवश्यकता है।
- भारत की आगामी ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति’ (एस.टी.आई.पी.) में लैंगिक समानता और समावेश पर ज़ोर देने की भी बात की गई है। इसमें सुझाई गई सिफारिशों को लागू करने में विज्ञान अकादमियों की भूमिका के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा, ताकि विज्ञान के क्षेत्र में एक सक्षम वातावरण निर्मित होने के साथ लैंगिक समानता सुनिश्चित हो सके।